[ डॉ. सुरजीत सिंह गांधी ]: कोविड-19 महामारी ने हमें आर्थिक पुनर्संरचना की एक नई सोच दी है। इसके साथ ही आत्मनिर्भरता का मंत्र हमें विकास की एक नई दिशा दिखा रहा है। ऐसे में यदि आर्थिक नीतियों को जनसांख्यिकीय लाभांश के साथ समायोजित कर दिया जाए तो देश को विकसित देशों की श्रेणी में सम्मिलित होने से कोई नहीं रोक सकता। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार आने वाला समय भारत का होगा, क्योंकि भारत के पास सशक्त लोकतंत्र, मांग और जनसांख्यिकीय लाभांश जैसी संपत्तियां हैं।

जनसांख्यिकीय लाभांश भारत के विकास के इंजन के रूप में कार्य कर सकता है

आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, गरीबी को खत्म करने तथा समावेशी समाज के निर्माण में मानव पूंजी ने हमेशा से ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परंतु प्रश्न यह है कि क्या बेहताशा बढ़ती जनसंख्या भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश दिलाने की स्थिति में है? 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 15 से 64 वर्ष आयु की कार्यशील जनसंख्या 76.1 करोड़ थी जो 2020 में बढ़कर लगभग 86.9 करोड़ हो गई। इतनी अधिक श्रम शक्ति को हम एक अवसर के रूप में कैसे बदलते हैं, यह हमारे नीति निर्धारकों की सोच पर निर्भर करेगा। आज जब विश्व के तमाम देश मानव संसाधन की समस्या से जूझ रहे हैं तब भारत जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति में है जो अगले कुछ दशकों में भारत के विकास के इंजन के रूप में कार्य कर सकता है।

कोरोना महामारी के बाद श्रमशक्ति की विश्व में बढ़ेगी मांग

कोरोना महामारी के बाद श्रमशक्ति की विश्व में मांग बढ़ेगी, इसके लिए हमें अभी से तैयारी करनी होगी। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की 2019 की रिपोर्ट की मानें तो देश के दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में अधिक उम्र के लोग बढ़ रहे हैं इसलिए जनसांख्यिकीय लाभांश लेने के लिए वहां पांच साल ही बचे हैं। दूसरी ओर जनसांख्यिकीय लाभांश अधिकांशत: उत्तर-मध्य राज्यों में संकेंद्रित है जिनमें बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश लेना है तो प्रतिवर्ष कार्यशील जनसंख्या में होने वाली अनुमानित वृद्धि के अनुरूप समानांतर रोजगार को बढ़ाने के लिए सुनियोजित निवेश और संरचनात्मक विकास के मॉडल को अपनाना होगा।

हर सेक्टर के लिए यूनिक डेवलपमेंट मॉडल विकसित करना होगा

हर सेक्टर के लिए यूनिक डेवलपमेंट मॉडल विकसित करना होगा। इसके साथ ही प्रत्येक राज्य की आवश्यकताओं, उसके संसाधनों एवं बेरोजगार युवाओं में सामंजस्य बैठाने के लिए आयु एवं लैंगिक संरचना के अनुसार सामाजिक-र्आिथक नीतियों का निर्माण करना होगा। भारत के उत्तरी राज्यों को दक्षिणी राज्यों से सीख लेते हुए महिलाओं की साक्षरता, स्वास्थ्य और कार्यबल में भागीदारी जैसे कुछ बुनियादी सुधार करने होंगे।

मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर अधिक बल देना होगा, 35 फीसद लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे

अपने संसाधनों को कुशल एवं योग्य बनाकर उसका रचनात्मक तरीके से इष्टतम प्रयोग करने के लिए मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर अधिक बल देना होगा। इससे भारत की लगभग 30 से 35 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्योग, हस्तशिल्प, आइटी, पर्यटन आदि पर अत्यधिक फोकस करने पर जहां एक तरफ आत्मनिर्भरता का उद्देश्य पूरा होगा वहीं दूसरी ओर अत्यधिक रोजगार के अवसरों का सृजन भी होगा।

चीन से व्यवसाय समेटने वाली कंपनियों को आकर्षित किया जा सकता है

विश्व स्तर पर चीन के खिलाफ बन रहे माहौल को एक अवसर के रूप में बदलने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के उत्पादों की मांग पैदा करनी होगी। इसके लिए उत्पादन की मात्रा एवं गुणवत्ता को बढ़ाने के साथ-साथ लागत को कम करने की दिशा में सरकार को विशेष प्रोत्साहन एवं ध्यान देना होगा। इसके साथ ही चीन से व्यवसाय समेटने वाली कंपनियों को आकर्षित किया जा सकता है। हमारी अर्थव्यवस्था एक उपभोग आधारित अर्थव्यवस्था है इसलिए निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए नए क्षेत्रों की पहचान करनी होगी, ताकि युवा बेरोजगारों को नियोजित करने के साथ-साथ र्आिथक विकास को भी बढ़ाया दिया जा सके।

2030 में भारत के 47 फीसद युवाओं के पास बाजार के अनुकूल आवश्यक शिक्षा एवं कौशल नहीं होगा

2019 में प्रकाशित यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 में भारत के 47 प्रतिशत युवाओं के पास बाजार के अनुकूल आवश्यक शिक्षा एवं कौशल नहीं होगा। किसी भी देश की युवा आबादी न सिर्फ देश के र्आिथक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, बल्कि उत्पादन, उपभोग, निवेश, नवाचार एवं अनुसंधान और निर्यात के अवसर भी पैदा करती है। यदि काम लायक हाथों को काम नहीं मिलता तो फिर युवा आबादी एक समस्या भी बन जाती है।

देश में 21-35 आयु वर्ग की 10 करोड़ आबादी ऐसी है, जिसके पास कोई कौशल क्षमता नहीं है

देश में 21-35 आयु वर्ग की लगभग 10 करोड़ आबादी ऐसी है, जिसके पास कोई कौशल क्षमता नहीं है या कम कौशल क्षमता है इसलिए वह अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त साबित हो रही है। अकुशल एवं रोजगारविहीन कुंठित युवा सामाजिक सद्भाव एवं कानून व्यवस्था और आर्थिक विकास के मार्ग में बाधा बन जाते हैं। भारत में कौशल विकास की कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, किंतु बाजार के अनुकूल प्रशिक्षण और कौशल विकास की कमी के कारण अभी भी उसका सुनियोजित लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिला कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की गुणवत्ता के स्तर को बनाए रखने और लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्योगों में आवश्यक श्रमशक्ति के बीच तालमेल के लिए एक नोडल अधिकारी अथवा डीएम को जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए।

आइटीआइ में आज भी ऐसे पाठ्यक्रमों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिनकी प्रासंगिकता खत्म हो चुकी

आइटीआइ में आज भी ऐसे पाठ्यक्रमों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिनकी प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है। ऐसे पाठ्यक्रमों को समयानुकूल बनाना हमारी पहली आवश्यकता है। विश्व के अन्य देशों में बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से नर्सों एवं पैरामेडिकल सेवाओं की मांग आने वाले समय में अत्यधिक बढ़ जाएगी। इसके लिए युवाओं को अभी से कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर तैयार किया सकता है।

व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण की उपलब्धता को आसान बनाना होगा

ऋण की उपलब्धता को आसान बनाने एवं व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के लिए बैंकों की कागजी प्रक्रिया को सरल बनाना होगा। यह प्रक्रिया जितनी आसान होगी, उतने ही अधिक लोग स्वरोजगार व्यवसाय के लिए अधिक जोखिम लेने के लिए भी तैयार होंगे। इस सबके साथ ही सरकार को लोगों के साथ मिलकर एक जनसंख्या नीति बनानी होगी, जिससे आर्थिक विकास की दर एवं बढ़ती आबादी के बीच तालमेल कायम हो सके, अन्यथा आने वाले समय में हमारे पास इतने संसाधन नहीं होंगे कि हम बढ़ती जनसंख्या का भार उठा सकें।

( लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं )