[ श्रीराम अग्रवाल ]: सभी इससे परिचित हैैं कि मात्र पांच साल में भारतीय अर्थव्यवस्था 2.7 लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर पहुंचकर विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। अब अगले पांच वर्षों में पांच लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर पहुंचाकर उसे इंग्लैंड एवं जर्मनी से आगे ले जाने का लक्ष्य है परंतु यह आसान काम नहीं। भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को अमेरिकी डॉलर में व्यक्त करना भारतीय मन की समझ से परे ही है। शायद केवल वैश्विक स्तर पर अपनी महत्वाकांक्षा प्रकट करने के लिए ऐसा किया गया है। आम बजट भी वैश्विक महत्वाकांक्षा की ओर बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के जीडीपी लक्ष्य को प्राप्त करने की आर्थिक रणनीति का ही संकेत दे रहा है।

आर्थिक विकास और आम आदमी

दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय अर्थनीति-एक दिशा नामक अपनी पुस्तक में आर्थिक प्रगति को राष्ट्रीय सकल उत्पाद (जीडीपी) को औसतन प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय के रूप में प्रस्तुत करने को एक भ्रमपूर्ण विसंगति बताया था। उनका मानना था कि आर्थिक विकास का वास्तविक मानक होना चाहिए आम आदमी की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि। आम आदमी का सरोकार इससे होता है कि विकसित होती अर्थव्यवस्था में वह अपनी आय से पहले की अपेक्षा आवश्यक एवं सम्मानपूर्ण जीवन स्तर जीने के लिए कितनी अधिक वस्तुएं एवं सेवाएं खरीद पा रहा है।

आर्थिक विकास और जनसंख्या वृद्धि

यह देखना आवश्यक है कि आर्थिक विकास का आम आदमी की वास्तविक क्रय शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। समग्र आर्थिक लक्ष्यों को आम आदमी की उपलब्धियों में परिभाषित करने के लिए हमें अगले पांच वर्षों में होेने वाली जनसंख्या वृद्धि को भी ध्यान में रखना होगा। यह वृद्धि प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय के औसत को कम कर सकती है। उपभोक्ता को उच्चतम क्रय शक्ति प्रदान करने वाली उपभोग योग्य ही वास्तविक आय मानी जाती है। यह आय प्रभावित होती है-परिवार की सदस्य संख्या, बाजार में मूल्य स्तर, अधिकतम आय देने वाला क्षमतापरक रोजगार और सक्षम बेरोजगारों को रोजगार। वास्तविक उपभोग आय पर समाज कल्याणकारी योजनाओं का भी अप्रत्यक्षत: सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैै।

बीमा क्षेत्र तथा बैंक सावाधिक जमा में शिथिलता

यदि अमीर/अति अमीर वर्ग की लगभग दस प्रतिशत जनसंख्या को छोड़ दिया जाए तो शेष 90 प्रतिशत जनसंख्या में से मात्र 30 प्रतिशत कमाऊ मध्यमवर्गीय जनसंख्या ही उपभोक्ता बाजार की प्रभावी मांग को प्रभावित करती है। कहना न होगा कि यही वर्ग है जिसकी वास्तविक उपयोग आय ही समग्र मांग को प्रभावित करती है। इन्हीं उद्योगों की वस्तुओं एवं सेवाओं पर व्यय की गई आय का अंश बाजार के माध्यम से उपरोक्त उद्योगों से जुडे़ करोड़ों स्वरोजगारी मध्यमवर्ग को वास्तविक आय प्रदान करते हैं। इस मध्यम आय वर्ग की वास्तविक उपभोग आय के घटने का ही परिणाम है आटो क्षेत्र, वित्तीय सेवा क्षेत्र, बीमा क्षेत्र तथा बैंक सावाधिक जमा में शिथिलता।

आम आदमी की आय में अप्रत्यक्ष वृद्धि

इसमें संदेह नहीं कि बीते पांच वर्षों में उज्ज्वला योजना, घर-घर में विद्युत एवं जलापूर्ति योेजना, कन्या विवाह योजना, स्वसहायता समूह योजना, कौशल विकास योजना, आयुष्मान योजना आदि से आम आदमी और गरीब लोगों की वास्तविक आय में अप्रत्यक्ष वृद्धि की है। बजट में इन योजनाओं को आगे भी चलाते रहने और नए लक्ष्य आपूर्ति करने की बात कही गई है। इनमें से कई योजनाओं में कई राज्यों के द्वारा समयावधि के पूर्व ही सौ प्रतिशत या अधिक लक्ष्यपूर्ति की घोषणा भी समाचारों में आती रही है, परंतु इसकी धरातलीय वास्तविकता जानने के लिए सरकार द्वारा कोई भी सार्थक प्रयास नहीं किए गए कि कहीं कार्यपालक अधिकारियों द्वारा मात्र कागजी खानापूर्ति कर लक्ष्य प्राप्ति के आंकड़े तो नहीं दिए गए?

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य राम भरोसे

आयुष्मान योजना के तहत लाखों गरीब परिवारों ने सरकारी अस्पतालों में उन्नत चिकित्सा सुविधा का नि:शुल्क लाभ उठाया है पर बजट में डाक्टरों की कमी दूर करने और ग्रामीण क्षेत्रों में एक निर्धारित दूरी के अंदर नए उन्नत सरकारी चिकित्सालयों को खोलने के लिए कोई प्राविधान नहीं किया गया। प्राइमरी से लेकर सामान्य, तकनीकी एवं व्यावसायिक उच्च शिक्षा को निजी व्यावसीयकरण क्षेत्र के सहारे छोड़ दिया गया है।

युवाओं को रोजगार देने की अधूरी जानकारी

कौशल विकास योजना में प्रशिक्षित युवाओं के आंकड़े तो गिनाए गए, लेकिन उनमें से कितने युवाओं को प्रभावी एवं सार्थक रोजगार प्राप्त हुआ है, यह जानने का प्रयास नहीं किया गया। सरकार की स्टार्टअप योजना के तहत रोजगार बहुल विनिर्माण इकाइयां कम बल्कि डिजिटल मार्केटिंग, फाईनेंस सर्विस इकाइयां अधिक खोली गईं और उनकी भी सफलता दर कितनी है और उनमें कितने युवाओं को रोजगार मिला, यह जानना भी जरूरी था।

बजट में नए रोजगार पर स्थिति स्पष्ट नहीं

बजट में नए रोजगार अवसर सृजन, जो मध्यम आयवर्ग की उपभोग आय में वास्तविक वृद्धि करते हैं, की स्थिति स्पष्ट नहीं है। एफडीआई के तहत आने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां और घरेलू उद्योग समूह अपनी लागत को कम करने के लिए रोजगार बहुल तकनीक की अपेक्षा, पूंजीगहन उन्नत तकनीक अपनाते हैं ताकि वे अंतरराष्ट्रीय बाजार की प्रतियोगिता में बने रह सकें। ऐसे में इनसे देश में बहुत अधिक नए रोजगार सृजन अवसरों की आशा रखना व्यर्थ है।

सार्वजनिक बैंकों में नई नियुक्तियां नहीं

रेलवे जैसे सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाले सार्वजनिक उपक्रम में क्रमश: निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने पर वह भी तकनीक गहन होता चला जाएगा। सार्वजनिक बैंकों में भी लगातार सेवानिवृत्त होते जा रहे कर्मचारियों से रिक्त स्थानों पर कई वर्षों से नियुक्तियां नहीं की जा रही हैं। चुनाव पूर्व रेलवे, डाकतार विभाग एवं सरकारी बैैंकों की ओर से हजारों की संख्या में रोजगार के विज्ञापन दिए गए पर बजट में उनका कोई उल्लेख नहीं है।

आर्थिक नीतियों के निर्धारण का फंडा

आर्थिक न्याय एवं तार्किक दृष्टि से विचार करें तो प्रति दस साल में जो वेतन पुनरीक्षण किया जाता रहा है, वह विगत दस वर्षों में बढ़ी हुई मंहगाई के सापेक्ष बढ़ाए गए मंहगाई भत्ते का समायोजन मात्र ही होता हैं। सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि यदि वास्तविक प्रभावी मांग ही कम होती गई तो बढ़ते उत्पादन को खरीदेगा कौन? सरकार आम आदमी की वास्तविक उपभोग योग्य आय को ध्यान में रखकर ही प्रभावी आर्थिक नीतियों का निर्धारण करे।

बजट में आम आदमी की आर्थिक सीमाओं का नजरंदाज

आम बजट से पहले आए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि बजट निर्धारण रणनीति में नोबल विजेता अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर के व्यावहारिक अर्थशास्त्र को भी ध्यान में रखा जाएगा, लेकिन बजट में आम आदमी की आर्थिक एवं वित्तीय सीमाओं और उसके उपभोग एवं बाजार व्यवहार को गंभीरता से नहीं लिया गया। महात्वाकांक्षी होना अपनी क्षमताओं पर विश्वास का परिचायक है, पर जिन बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की होड़ में हम तेज गति के घोड़े पर सवार हो रहे हैं उसी के चलते अब चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी जा रही है।

( लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैैं )