अभिषेक कुमार सिंह। देश में नवरात्र-दीपावली के आसपास त्योहारों की शुरुआत क्या होती है, अखबार, टीवी, रेडियो, इंटरनेट पर डिजिटल दुकानों में लगने वाली सेल के विज्ञापनों की भरमार हो जाती है। ये डिजिटल दुकानें सिर्फ ग्राहकों को ही अपनी ओर आकर्षित करने का प्रबंध नहीं करती हैं, बल्कि खुद को एक दूसरे से होड़ में आगे बताने का दावा भी करती हैं। इस साल जब ‘द बिग बिलियन डेज’ नाम से ऑनलाइन शॉपिंग का उत्सव शुरू हुआ तो वालमार्ट के पैसे से चल रही वेबसाइट फ्लिपकार्ट ने दावा किया कि प्रतिस्पर्धी ई-कॉमर्स पोर्टल अमेजन भारतीय उपभोक्ताओं के लिए खास प्रासंगिक नहीं है। इसका जवाब अमेजन ने यह कहकर दिया कि वेबसाइट पर ग्राहकों के हिट्स और खरीदारी के मामले में वह भारत में सबसे आगे है। छूट और होड़ के इन दावों-प्रतिदावों के बीच जहां ऑफलाइन सामान बेचने वाले दुकानदार हैरान-परेशान नजर आते हैं तो वहीं ग्राहक भी चकराया सा दिखता है।

बढ़ रहे हैं ऑनलाइन खरीददार

भारत में ऑनलाइन खरीदारी के मुरीदों की कमी नहीं है। घर-दफ्तर की दौड़ में थकते-हांफते और वक्त की कमी से परेशान लोगों को खरीदारी का यह डिजिटल इंतजाम मनमांगी मुराद के पूरा होने जैसा लगता है। मोबाइल फोन या कंप्यूटर-लैपटॉप के जरिये इन डिजिटल दुकानों को खंगालकर अपने मन माफिक सामान, मनचाही कीमत पर घर बैठे ऑर्डर देने का चलन ऐसे लोगों को ही नहीं सुहा रहा, बल्कि इसके बल पर ई-कॉमर्स पोर्टल दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। इन सब से ग्राहकों को फायदा हुआ तो ई-कॉमर्स का कुल कारोबार भी बढ़ा और आगे भी तेजी से बढ़ने के आसार हैं। संस्था-इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के मुताबिक भारत में ई-कॉमर्स बाजार का आकार 2017 के 38.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2026 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। केवल खुदरा बिक्री की बात करें तो वर्ष 2018 में इसके 31 फीसद की तेजी के साथ 32.7 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।

इलेक्‍ट्रानिक सामान का 48 फीसद कारोबार

उल्लेखनीय है कि डिजिटल दुकानों से होने वाली खरीद का करीब आधा (48 फीसद) इलेक्ट्रॉनिक सामान (मोबाइल, टीवी वगैरह) के नाम है तो कपड़े 29 फीसद के साथ दूसरे स्थान पर हैं। यह देखते हुए कि मोबाइल की बदौलत देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 50 करोड़ तक पहुंच गई है और अगले तीन सालों में यह संख्या 82 करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगी, ऑनलाइन शॉपिंग में और विस्तार की गुंजाइश बनी हुई है। बहरहाल अब हर साल त्योहारी सीजन में बिग बिलियन डेज जैसे खरीदारी के उत्सव तो ग्राहकों की हर इच्छा पूरी करने को तैयार लगते हैं। जो टीवी किसी दुकान पर दुकानदार से मोलभाव करने के बावजूद 32-34 हजार रुपये से कम में नहीं मिलता, खोजने पर त्योहारी सीजन में डिजिटल दुकान पर 25-27 हजार तक में नजर आ जाता है। मोबाइल फोन तो इन वेबसाइटों पर ऐसे बिकते नजर आते हैं, मानो उन्हें अभी नहीं खरीदा गया तो ताउम्र इसके लिए तरसना पड़ेगा। ऐसे में ग्राहक ऐसे मोबाइल के नए-नए मॉडल एक के बाद एक करके खरीदता चला जाता है।

ऑनलाइन बाजार का फायदा

सवाल यह है कि ये डिजिटल दुकानें या सामानों की बिक्री का ऑनलाइन प्रबंध आखिर किसका और कितना फायदा करा रही हैं। इनमें पहला सवाल तो यही पैदा होता है कि सामानों को 50 से लेकर 80-90 फीसद छूट पर बेच कर ये ई-कॉमर्स कंपनियां क्या वास्तव में कोई मुनाफा कमाती हैं। या फिर ये सालों-साल ग्राहक बढ़ने की उम्मीद में पैसा झोंकती चली जाती हैं, जिससे सवाल यह पैदा होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इन वेबसाइटों से जुड़े नौजवानों की नौकरियां इन कंपनियों के बढ़ते घाटे की भेंट चढ़ जाएंगी। इसी तरह कहीं ऐसा तो नहीं है कि छूट के लालच में ज्यादातर ग्राहक वे फालतू सामान भी खरीद लेते हों, जिनकी उन्हें असल में जरूरत ही नहीं है। इसमें तो संदेह नहीं कि त्योहारों के दौरान आम लोग ज्यादा खरीदारी करते हैं। कुछ अध्ययन बताते हैं कि 50, 70 या 80-90 फीसद छूट पर सामान मिलने का प्रलोभन लोगों को कई गैरजरूरी सामान खरीदने को भी प्रोत्साहित करता है।

विश्लेषकों का मत

न्यूरोमार्केटिंग के विश्लेषकों का मत है कि सेल (भारी छूट) का बोर्ड हमारे जेहन में खरीदारी का एक खास जज्बा पैदा करता है। ऐसी स्थिति में लोग यह फैसला सोच-समझकर नहीं करते कि उन्हें वास्तव में क्या खरीदना है और क्या नहीं। ऐसे ज्यादातर मौकों पर खरीदारी यह सोचकर की जाती है कि अभी खरीदा गया सामान बाद में काम आएगा, लेकिन अक्सर ऐसे गले में पड़े फालतू सामान अंतत: किसी प्रियजन को जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ पर तोहफे में दे दिया जाता है। अब तो ऐसी ज्यादातर वेबसाइटें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) की मदद से ग्राहकों की रुचियों और खोजबीन के पैटर्न पर नजर रखकर उन्हीं के मुताबिक सामानों की लिस्ट उपभोक्ताओं के सामने पेश करने लगी हैं। कह सकते हैं कि ये ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां एक तरह का जाल अपने संभावित ग्राहकों के इर्दगिर्द बुन देती हैं, जिससे बचकर बाहर आना आसान नहीं होता। इधर समय की कमी ने भी लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग की तरफ प्रेरित किया है।

ऑनलाइन शॉपिंग का उत्सव

ऊपरी तौर पर ऑनलाइन शॉपिंग के उत्सव में सभी का फायदा दिखता है। ग्राहक को कम कीमत पर सामान मिलता है तो रिटेलर को बिना झंझट सामान बेचने का आसान जरिया। चूंकि इसमें सप्लाई चेन (उत्पादित सामान को उपभोक्ता तक पहुंचाने की श्रृंखला) बेहद छोटी होती है, इसलिए कमीशन और ट्रांसपोर्टेशन पर होने वाले खर्च में कटौती हो जाती है। इससे कोई सामान बेहद कम कीमत में बेचने के बाद भी मुनाफा होता है, लेकिन कइयों की निगाह में यह एक गलत परंपरा है। असल में सामान बेचने की ई-कॉमर्स कंपनियों की रणनीति साफ है, ये वेंचर फंड और बाहरी निवेशकों से पैसा लेती हैं। भारी छूट देने से नकारात्मक (निगेटिव) मार्जिन में भी बिक्री बढ़ती है। इस बिक्री या टर्नओवर के आधार पर ये कंपनियां बैंक से अरबों का कर्ज लेती हैं। कर्ज का इस्तेमाल फिर बिक्री बढ़ाने में करती हैं और एक बार फिर कर्ज लेती हैं।

शेयर बाजार में अपना आइपीओ

इसी दौरान ये शेयर बाजार में अपना आइपीओ लाकर आम जनता से पैसा लेती हैं। आगे चलकर हो सकता है कि कंपनियां अपने सारे घाटे का बोझ आम आदमी की जेब पर डालकर चंपत हो जाएं। ये चिंताएं बेमानी नहीं हैं। बाजार के विशेषज्ञ दो-तीन साल से ऑनलाइन खरीदारी के मर्ज की तरफ इशारा कर रहे हैं। वे चेता रहे हैं कि ऑनलाइन शॉपिंग के कारोबार किसी गहरे संकट में फंस सकते हैं, क्योंकि इनमें पैसा लगाने वाले निवेशक अपनी पूंजी वापस मांगना शुरू कर सकते हैं, जिससे दिक्कतें पैदा होने लगेंगी। ऐसी एक भविष्यवाणी बिड़ला समूह के एक चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने भी वर्ष 2017 में की थी। उन्होंने कहा था कि ऑनलाइन शॉपिंग डिस्काउंट देने वाले जिस बिजनेस मॉडल पर खड़ा हुआ है, वह ज्यादा दिन तक चल नहीं सकता है। इसकी वजह यह है कि जिन निवेशकों की पूंजी की बदौलत ये शॉपिंग वेबसाइटें भारी छूट पर सामान बेच रही हैं, वे जल्द ही अपनी पूंजी पर रिटर्न मांगना शुरू कर सकते हैं। ऐसा हुआ तो ऐसी ही बुरी खबरें ऑनलाइन शॉपिंग की वेबसाइट चलाने वालों और इनके जरिये नौकरी या कामधंधा पाने वालों का इंतजार करते मिलेंगी।

ऑनलाइन बाजार से सहमे छोटे दुकानदार

अभी देश में भले ही ऑनलाइन शॉपिंग का तेज विस्तार होता हुआ दिख रहा है और छोटे-छोटे दुकानदार इनके त्योहारी आयोजनों से सहमे हुए नजर आते हैं। हालांकि बड़े कारोबारियों का मत है कि जीत आखिर में ऑफलाइन व्यापार की ही होगी। इस बारे में कुछ समय पहले फ्यूचर ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) किशोर बियानी ने कहा था कि देश में उभर रहे ऑनलाइन रिटेल बिजनस को असल में ऑफलाइन खुदरा आउटलेट्स से खतरा है। बियानी के मुताबिक ऑनलाइन खुदरा कारोबार की बाजार हिस्सेदारी कम है, पर इसकी लागत अधिक है। ऑनलाइन दुकानदारों यानी ई-कॉमर्स कंपनियों के पास एक प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी भी नहीं है और कारोबार की लागत अधिक है। ऑनलाइन शॉपिंग के बुखार के जल्द उतर जाने का अनुमान दुनिया के कई नामी कारोबारी भी लगा रहे हैं। जैसे- चीन की मशहूर ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा सिर्फ ऑफलाइन खुदरा कारोबार ही खरीद रही है। अमेजन के मालिक जेफ बेजोस भी यही कर रहे हैं। इसका संकेत साफ है कि धीरे-धीरे वक्त बदल जाएगा और एक स्थिति यह आ सकती है कि चीजों की कीमत और क्वॉलिटी में आगे कोई फर्क नहीं होगा, चाहे उन्हें ऑनलाइन खरीदा गया हो या ऑफलाइन।

(लेखक एफआइएस ग्लोबल संस्था से संबद्ध हैं)