मनीषा सिंह। हमारे देश में अंधविश्वास के कई स्तर हैं। एक अंधविश्वास वह है जो सदियों से परंपरा के रूप में ज्यादातर समाजों में मौजूद है और शुभ-अशुभ की बात कहकर उनका पक्ष लिया जाता है। हालांकि ऐसा अंधविश्वास किसी दूसरे का अहित नहीं करता, लेकिन इससे मानसिक पिछड़ेपन का पता चलता है। एक अंधविश्वास वह है जिसमें खुद की रक्षा करने या लाभ कमाने के लिए दूसरों को प्रताड़ित किया जाता है। बलि देने की प्रथा और महिलाओं को डायन कहकर मार देने की प्रथा इसी के उदाहरण हैं।

इधर यूपी-बिहार के कुछ हिस्सों में कोरोना माई की पूजा के नाम पर अंधविश्वास का एक नया ही रूप दिखाई दिया है। वे कोविड-19 महामारी की समाप्ति के लिए कोरोना माई की पूजा कर रही हैं। यह हमारे ग्रामीण समाज की महिलाओं के जीवन का एक सच है। इन महिलाओं को कोरोना माई की पूजा का ख्याल यूं ही नहीं आया है। देश के विभिन्न हिस्सों से जितने मजदूरों की काम-धंधा ठप्प होने के बाद वापसी हुई है, उनमें से ज्यादातर यूपी-बिहार के हैं। वे महामारी से बच जाएंगे, पर बेरोजगारी से कैसे बचेंगे-यह चिंता उनके घर की महिलाओं को खाए जा रही है। यही चिंता महिलाओं को गंगा किनारे कोरोना माई की पूजा के लिए ले गई है।

कहने को कोरोना का संकट इसका इलाज उपलब्ध नहीं होना है, पर ज्यादा बड़ा संकट वह है, जिससे देश की ग्रामीण और कस्बाई महिलाएं अब गुजर रही हैं। ये महिलाएं उस आसन्न बेरोजगारी को देखकर चिंतित हैं जो अब उनके घर-समाज में पैदा होने वाली है। गांव-देहात में अगर रोजगार होते तो मजदूरों का इतनी बड़ी खेप न तो शहरों में जाती और न कोरोना काल में उसे इस तरह लौटना पड़ता। अब तो यह भी कहना मुश्किल है कि इन मजदूरों की शहरों की तरफ आने वाले समय में कब वापसी होगी।

शहर से गांव लौटे मजदूरों में कुछ को मनरेगा के तहत सौ दिनों की रोजी मिल तो गई है, लेकिन ऐसे भाग्यवान बहुत कम हैं। सवाल यह भी है कि सिर्फ सौ दिन के मेहनताने से उनके परिवार का भरण-पोषण आखिर कैसे होगा? भविष्य का यही अनिश्चय महिलाओं को कोरोना माई की पूजा की प्रेरणा दे रहा है। समाजशास्त्री अगर देख पाएं तो कोरोना माई की इस पूजा में उन्हें महिलाओं के भीतर बैठी आशंकाएं और डर नजर आएंगे। ग्रामीण समाजों की महिलाएं यूं ही सदियों से धार्मिक रीति-रिवाजों, परंपराओं, रूढ़ियों या अंधविश्वासों में फंसी नहीं हैं। खुद के अनिष्टकारी भविष्य की चिंता ही उन्हें अंधविश्वास की शरण में ले जाती है।सवाल यह है कि समाज में कायम कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ आखिर कोई जंग कैसे छेड़ी जाए? इसका एक उपाय कानून बनाना हो सकता है जिसमें अंध श्रद्धा फैलाने वालों को दंडित करने का प्रावधान हो।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)