अमेरिकी मध्यावधि चुनाव के नाटकीय नतीजे, डेमोक्रेटिक पार्टी का यह प्रदर्शन किसी चमत्कार से कम नहीं
पिछले 100 वर्षों में केवल एक बार ऐसा हुआ कि राष्ट्रपति की सत्ताधारी पार्टी ने विपक्षी पार्टी को मध्यावधि चुनाव में सीनेट की सीटों राज्य गवर्नरों के चुनावों और राज्य विधानसभा के चुनावों में हराया हो। इससे पहले ऐसी सफलता 1934 में राष्ट्रपति रूजवेल्ट की डेमोक्रेटिक पार्टी को मिली थी।
शिवकांत शर्मा : अमेरिका के मध्यावधि चुनाव में भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। अमेरिकी संसद या कांग्रेस का कार्यकाल केवल दो वर्ष का होता है। इसलिए संसद के चुनाव एक बार राष्ट्रपति के चुनाव के साथ होते हैं और एक बार राष्ट्रपति के कार्यकाल के बीच में। इसी कारण उन्हें मध्यावधि चुनाव कहते हैं। संसदीय चुनावों में निचले सदन यानी प्रतिनिधि सभा के सभी सांसदों, प्रवर सदन अर्थात सीनेट के एक तिहाई सीनेटरों, लगभग आधे राज्यों के गवर्नरों और उनकी विधान सभाओं और राज्य अधिकारियों को चुना जाता है।
मध्यावधि चुनावों का पिछले 25 वर्षों का इतिहास देखें तो सत्ताधारी पार्टी को प्रतिनिधि सभा की औसतन 20 सीटों, सीनेट की 4-5 सीटों, 3-5 गवर्नरों और विधानसभाओं का नुकसान होता है, परंतु ताजा नतीजों से जो तस्वीर उभरी, वह चौंकाने वाली है। डेमोक्रेटिक पार्टी ने सीनेट में हारने के बजाय रिपब्लिकन पार्टी से पेंसिलवेनिया की सीनेट सीट छीनकर अपना बहुमत पक्का कर लिया। अपने राज्यों में गवर्नरों के चुनाव हारने के बजाय रिपब्लिकन पार्टी के दो राज्यों में गवर्नर के चुनाव जीत लिए हैं। तीन राज्यों की विधानसभाओं में रिपब्लिकन पार्टी को हरा कर बहुमत हासिल किया है। प्रतिनिधि सभा में जहां 20 से ज़्यादा सीटें हारने की आशंका थी, वहां डैमोक्रेटिक पार्टी को अधिक से अधिक 6 सीटों का नुकसान होगा और रिपब्लिकन पार्टी 219 सीटें जीत कर मुश्किल से एक सीट का बहुमत हासिल कर पाएगी। सुनने में भले ही यह बहुत नाटकीय न लगता हो, लेकिन अमेरिका के चुनावी इतिहास के परिप्रेक्ष्य में डेमोक्रटिक पार्टी का यह प्रदर्शन किसी चमत्कार से कम नहीं है।
पिछले 100 वर्षों में केवल एक बार ऐसा हुआ कि राष्ट्रपति की सत्ताधारी पार्टी ने विपक्षी पार्टी को मध्यावधि चुनाव में सीनेट की सीटों, राज्य गवर्नरों के चुनावों और राज्य विधानसभा के चुनावों में हराया हो। इससे पहले ऐसी सफलता 1934 में राष्ट्रपति रूजवेल्ट की डेमोक्रेटिक पार्टी को मिली थी। सवाल उठता है कि यह चमत्कार हुआ कैसे और इसका असर क्या होगा? चुनावी पंडितों का मानना है कि इस चुनाव में युवाओं, महिलाओं और छात्रों की भूमिका अहम रही, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के गर्भपात अधिकार विरोधी निर्णय, गन नियंत्रण कानून और छात्र कर्ज माफी में डाली जा रही रुकावटों से चिंतित होकर वोट दिया। ट्रंप की चुनाव और लोकतंत्र विरोधी हरकतों को नापसंद करने वाले रिपब्लिकन पार्टी समर्थकों ने भी या तो वोट नहीं डाला या ट्रंप के वफादार उम्मीदवारों के खिलाफ वोट डाला।
अमेरिका के चुनाव भारत की तरह किसी केंद्रीय चुनाव आयोग की देखरेख में नहीं होते। हर राज्य को अपने यहां चुनाव के नियम बनाने और चुनाव कराने का अधिकार है। चुनाव कराने का दायित्व राज्य के प्रधान सचिव का होता है, जो चुना जाता है। यदि राज्यों में ट्रंप के वफ़ादार गवर्नर और प्रधान सचिव चुन लिए जाते तो अगले संसदीय और राष्ट्रपति चुनावों में पिछले चुनावों जैसी रुकावटें खड़ी कर सकते थे, परंतु डेमोक्रेटिक पार्टी के मजबूत प्रदर्शन ने ट्रंप के राजनीतिक भविष्य को भी धूमिल कर दिया है। रिपब्लिकन पार्टी में उनके ख़िलाफ़ आवाज मुखर हो रही है और अगले राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के लिए नए नाम मैदान में आ गए हैं। फ़्लोरिडा राज्य में भारी बहुमत से जीत कर आए रान देसांतोस उनमें प्रमुख हैं, जिनकी जम कर प्रशंसा हो रही है।
इसका मतलब यह नहीं है कि बाइडन और उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनौतियां दूर हो गई हैं। सरकार के वार्षिक खर्च का प्रस्ताव प्रतिनिधि सभा पारित करती है और इस सभा में अब विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत होने जा रहा है। रिपब्लिकन सरकार पर ख़र्च में कटौती करने का दबाव डाल सकती है और उसे न मानने पर प्रस्ताव पारित करने से इन्कार कर सकती है, जिससे सरकारी कामकाज ठप हो सकता है। अमेरिका में सरकारें तय सीमा से ज़्यादा कर्ज़ नहीं ले सकतीं और सीमा को बढ़ाने के लिए संसद से कानून पारित कराना पड़ता है। बाइडन सरकार का कर्ज़ सीमा के करीब पहुंच चुका है। रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने पहले से कह रखा है कि वे कर्ज़ की सीमा नहीं बढ़ने देंगे। यदि वे अड़ते हैं तो ब्रिटेन की तरह अमेरिका के लिए भी कर्ज़ लेना महंगा हो सकता है। अमेरिकी बांडों की यील्ड या आय दरों में उछाल आ सकता है जिसके चलते अमेरिकी केंद्रीय बैंक समेत सारी दुनिया के बैंकों को ब्याज दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं।
जहां तक अमेरिका की विदेश नीति का प्रश्न है तो प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत का उस पर ख़ास असर नहीं पड़ेगा। रूस के साथ हो रहे युद्ध में यूक्रेन की सहायता जारी रहेगी, पर रिपब्लिकन पार्टी उस सहायता का हिसाब ज़रूर मांगेगी। चीन की नाराजगी के बावजूद ताइवान के साथ सहयोग की नीति पर भी डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी में कोई मतभेद नहीं हैं। चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति बाइडन भी निश्चिंत होकर अपना ध्यान विदेश नीति पर केंद्रित कर सकते हैं। बाली में हो रहे जी20 देशों के सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई शिखर बैठक इसी का संकेत है। बैठक से पहले बाइडन ने कहा कि वे चीन के साथ प्रतिस्पर्धा चाहते हैं टकराव नहीं। बैठक से पहले दोनों नेताओं के बीच पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था जिसमें जलवायु परिवर्तन को लेकर सहयोग में पैदा हुई रुकावट को खोलने के बारे में भी चर्चा हुई।
भारत के साथ रिश्तों के मामले में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी में एक राय है। आतंकवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर रिपब्लिकन पार्टी भारत की चिंताओं को ज़्यादा अच्छी तरह समझती रही है। भारतवंशी उम्मीदवारों को ट्रंप विरोधी लहर के कारण इन चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी से भले ही कोई उल्लेखनीय सफलता न मिली हो पर सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी से पांच भारतवंशी प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए हैं। कैलिफ़ोर्निया से डॉ. अमरीश बेरा और रो खन्ना, वाशिंगटन से प्रमिला जयपाल और इलिनोए से राजा कृष्णमूर्ति तो दोबारा चुनाव जीते हैं जबकि मिशिगन से श्री थानेदार पहली बार चुने गए हैं। इसी तरह अरुणा मिलर मैरीलैंड राज्य की पहली भारतवंशी लेफ़्टिनेंट गवर्नर बनी हैं और दर्जनों भारतवंशी राज्यों की एसेंबलियों, सीनेटों और अदालतों के लिए भी चुने गए हैं।
(बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)














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