[ समीर चंद्रा ]: डोनाल्ड ट्रंप भारत का दौरा करने वाले आठवें अमेरिकी राष्ट्रपति होंगे। दुनिया में आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य शक्ति के लिहाज से अमेरिका शीर्ष पर काबिज है। विश्व व्यवस्था में उसके इस कद के पीछे उसकी दूरगामी आर्थिक-रणनीतिक सोच एवं नीतियों की अहम भूमिका रही है। बदलते दौर में अमेरिका की नीति में भारत का महत्व बढ़ा है। ट्रंप के पूर्ववर्ती बराक ओबामा के दो भारत दौरों से यह रेखांकित भी होता है। हालांकि ट्रंप अपने कार्यकाल के अंतिम पड़ाव पर ही भारत आ रहे हैं। उन्हें आठ महीने बाद चुनावी रण में उतरना है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नौ महीने पहले ही प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा प्रधानमंत्री बने हैं। ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप जहां इस यात्रा में अमेरिका के रणनीतिक एवं व्यावसायिक हित साधने में जुटेंगे ताकि उनका चुनावी फायदा लिया जा सके वहीं मोदी की कोशिश ऐसे समझौतों पर ध्यान केंद्रित करने की होगी जो भारत के दीर्घकालिक हितों को पोषित कर सकें।

यूरेशिया में किसी बड़ी शक्ति का उभरना अमेरिकी हितों के प्रतिकूल होगा

जहां तक अमेरिकी विदेश नीति के मूल सिद्धांतों की बात है तो इसमें 19वीं शताब्दी के अमेरिकी विचारक निकोलस स्पाइकमैन की यह अवधारणा बहुत अहम मानी जाती है कि यूरेशिया में किसी बड़ी शक्ति का उभरना अमेरिकी हितों के प्रतिकूल होगा। ऐसी किसी शक्ति का आंतरिक कलह या बाहरी संकटों में उलझे रहना ही अमेरिकी हितों के अनुकूल माना गया। अतीत में जर्मनी और सोवियत संघ के रूप में ऐसी शक्तियों के उदय और इनके पराभव में अमेरिकी भूमिका का सक्रिय योगदान रहा। फिलहाल ऐसा खतरा चीन के रूप में उभर रहा है जो अपनी आर्थिक और सामरिक ताकत तेजी से बढ़ा रहा है। बेल्ट एंड रोड योजना के जरिये चीन न केवल मध्य एशिया और यूरोप तक अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है, बल्कि अफ्रीका में अपने निवेश और जिबूती में सैन्य अड्डा बनाकर अफ्रीकी देशों में भी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा चुका है।

यूरेशिया और अफ्रीका में चीन का बढ़ता प्रभाव

यूरेशिया और अफ्रीका में चीन के बढ़ते प्रभाव के आगे लोकतांत्रिक अमेरिकी प्रभुत्व पर कम्युनिस्ट चीनी प्रभुत्व हावी हो सकता है। यह अमेरिकी नीति नियंताओं के लिए चिंता का विषय है। इसका निदान उन्हें एक बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के रूप में दिख रहा है। अगर चीन के आर्थिक और सामरिक सामथ्र्य को संतुलित करने की क्षमता किसी देश में है तो वह भारत ही है। आर्थिक विकास को लेकर उठाए जा रहे ठोस कदमों के अलावा डोकलाम और बालाकोट जैसे फैसलों ने पीएम मोदी के नेतृत्व वाले भारत में विश्व समुदाय का विश्वास मजबूत किया है।

भारत की आर्थिक-सामरिक क्षमता में बढ़ोतरी बेहद जरूरी

अमेरिकी नीति निर्धारकों को अब अहसास हो चला है कि वैश्विक व्यवस्था में किसी नकारात्मक बदलाव को रोकने के लिए भारत की आर्थिक-सामरिक क्षमता में बढ़ोतरी बेहद जरूरी है और इसे बढ़ाने के लिए अमेरिका को तत्पर रहना होगा। इसे देखते हुए ट्रंप के दौरे में कुछ सामरिक, तकनीकी साझेदारी और उनके साझा विकास को लेकर समझौते होने की प्रबल संभावना है। कुछ समझौते भारत को ईरान और रूस आदि देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट देने के लिए हो सकते हैं जिससे भारत को तेल आपूर्ति और अन्य जरूरतों की पूर्ति पर कम असर पड़े।

हिंद प्रशांत मुक्त व्यापार क्षेत्र एक बड़ा मैदान है

चूंकि भारत और अमेरिका, दोनों वैश्विक व्यापार के बड़े खिलाड़ी हैं तो व्यापारिक मोर्चे पर भी कुछ पहल की संभावना है। हिंद प्रशांत मुक्त व्यापार क्षेत्र एक बड़ा मैदान है जहां अमेरिका का तकरीबन 35 देशों के साथ 1.9 ट्रिलियन डॉलर का दांव लगा हुआ है। यह इलाका ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकताओं में है। वर्ष 2017 में अपनी वियतनाम यात्रा के दौरान ही ट्रंप ने इसे लेकर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी।

आसियान देशों में अमेरिका ने 271 अरब डॉलर का निवेश किया

वर्ष 2018 के आंकड़ों के अनुसार आसियान देशों में अमेरिका ने लगभग 271 अरब डॉलर का निवेश किया है जो चीन और जापान में कुल अमेरिकी निवेश से कहीं ज्यादा है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते दखल को ध्यान में रखते हुए उसकी मुक्त एवं खुले व्यापार वाली यथास्थिति में कोई भी बदलाव अमेरिकी हित में नहीं होगा। अमेरिका का भारत सहित इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ पहले से ही सहयोग चल रहा है। ऐसे में उसे और धार देने के लिए ट्रंप के दौरे र्में ंहद-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त अभ्यास और निगरानी तंत्र को लेकर भी कुछ समझौते होने के आसार हैं।

व्यापार को लेकर ट्रंप का रवैया कुछ सख्त

इसमें कोई संदेह नहीं कि व्यापार को लेकर ट्रंप का रवैया कुछ सख्त है। वह मानते हैं जिन देशों के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा चल रहा है, वे एक तरह से अमेरिका से अवांछित लाभ उठा रहे हैं। इस स्थिति को पलटने के लिए वह प्रयास भी कर रहे हैं। चूंकि भारत भी अमेरिका के दस शीर्ष व्यापारिक सहयोगियों में से एक है और वह भी व्यापार अधिशेष वाला, तो इस नाते अपने दौरे में ट्रंप की कोशिश होगी कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क कम करने के साथ ही कृषि और चिकित्सा संबंधित अमेरिकी उत्पादों के लिए अपने बाजार को और खोले। इससे जुड़े किसी समझौते की घोषणा उनके चुनाव अभियान के लिए महत्वपूर्ण होगी।

मोदी के साथ नजदीकियां दिखाकर ट्रंप भारतीय मूल के 14 लाख मतदाताओं का वोट लेना चाहते हैं

चुनाव की बात उठी है तो ट्रंप के इस दौरे के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। अमेरिका में भारतीय मूल के तकरीबन 14 लाख मतदाता हैं जो स्विंग स्टेट्स में निर्णायक भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं। यह बात भी छिपी नहीं कि इन मतदाताओं में पीएम मोदी की खासी लोकप्रियता है। ऐसे में मोदी के साथ नजदीकियां दिखाकर ट्रंप कोई ऐसी बात कह सकते हैं जिससे इन मतदाताओं में उनके प्रति सकारात्मक संदेश जाए। वैसे भी ट्रंप की विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ सदस्यों द्वारा अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून जैसे फैसलों को लेकर भारत विरोधी टिप्पणियों से यह तबका क्षुब्ध है। 

ट्रंप की यात्रा भारत-अमेरिका संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत करेगी

ट्रंप की यात्रा न केवल भारत-अमेरिका संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत करेगी, बल्कि वैश्विक व्यवस्था में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले नए भारत की भूमिका को और मजबूती से स्थापित करेगी। बदलती वैश्विक व्यवस्था में दोनों देशों के तमाम साझा हित जुड़े हुए हैं जिसमें दोनों नेताओं की ‘इंडिया फर्स्ट’ और ‘अमेरिका फर्स्ट’ की अवधारणाएं भी मेल खाती हैं। ट्रंप की भारत यात्रा के अंत में दिया गया साझा बयान इसी ‘साझा हित प्रथम’ के उद्बोधन को रेखांकित करने के साथ ही वैश्विक परिवर्तन की प्रस्तावना लिखेगा।

( लेखक वाशिंगटन डीसी स्थित यूएस इंडिया सिक्योरिटी फोरम में नीति विश्लेषक हैं )