[ प्रो. संदीप मिश्रा ]: कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देश 14 अप्रैल तक घरों में कैद है। हालांकि कुछ लोग अभी भी मामले की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं और लॉकडाउन को तोड़ने का अपराध कर रहे हैं। यदि सभी लोगों ने सरकार के निर्देशों का पालन नहीं किया तो लॉकडाउन का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। इससे देश को भीषण संकट का सामना करना पड़ सकता है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आने वाले हफ्तों में संक्रमण में तेज वृद्धि की आशंका जताई है।

भारत में घनी आबादी के चलते कोरोना वायरस का प्रकोप बदतर हो सकता है

उन्होंने यह भी आशंका जताई है कि भारत में घनी आबादी को देखते हुए यहां कोरोना वायरस का प्रकोप बदतर हो सकता है। विश्व बैंक के अनुसार भारत में 455 लोग प्रति वर्ग किमी में रहते हैं, जबकि इसकी तुलना में चीन में 148 लोग, इटली में 205 और ईरान में 50 लोग इतने क्षेत्र में निवास करते हैं। इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक ताजा आंकड़ा जारी किया गया है जो बताता है कि प्रति 84,000 भारतीयों पर एक आइसोलेशन बेड है। एक दूसरी रिपोर्ट कहती है कि भारत में सिर्फ 40,000 वेंटिलेटर हैं। कोविड-19 की भयावहता के बीच इस तरह की यही दर्शाती है कि यदि यह बीमारी भारत में व्यापक पैमाने पर कम्युनिटी में फैल गई तो हम इसका सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं। 

उन्नत देश इस बीमारी से लड़ने में नाकाम साबित हो रहे

ऐसे में एक काल्पनिक स्थिति की कल्पना करें कि क्या होगा अगर भारत में सामुदायिक संक्रमण से यह महामारी और तेजी से फैलती है। क्या भारतीय स्वास्थ्य-सेवा प्रणाली कोरोना वायरस जैसे एक तेजी से फैलती संक्रामक बीमारी के निदान, रोकथाम और इलाज के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है, जबकि चिकित्सीय रूप से इटली, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कहीं ज्यादा उन्नत देश इस बीमारी से लड़ने में नाकाम साबित हो रहे। मौजूदा परिदृश्य में यूनिवर्सल हेल्थ केयर पाने की भारत की महत्वाकांक्षा दूर का सपना ही नजर आती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा योजना-आयुष्मान भारत का मकसद, पहुंच और सामर्थ्य में वृद्धि करना है, बगैर गुणवत्ता और नवाचार पर ध्यान दिए।

खराब स्वास्थ्य सेवाएं

क्या यह उस देश के लिए उचित है, जहां ज्यादातर भारतीय खराब स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से मरते हैं, बजाय स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच से। मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार एक करोड़ 60 लाख भारतीय स्वास्थ्य सेवा की खराब गुणवत्ता के कारण मरते हैं, जो कि स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग न करने से मरने वालों की संख्या से लगभग दोगुनी है। किसी भी स्वास्थ्य सेवा के केंद्र में गुणवत्ता होनी चाहिए और गुणवत्ता और सामर्थ्य के बीच कोई तुलना नहीं होनी चाहिए। कोई भी स्वास्थ्य सेवा बेकार, अप्रभावी और अनैतिक होगी, यदि उसमें से गुणवत्ता का पहलू नदारद हो।

कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए भारत को कमर कसने की जरूरत

विशाल आबादी और त्रुटिपूर्ण आधारभूत संरचना के साथ भारत जैसे विकासशील देश के लिए विश्वस्तरीय गुणवत्तापूर्ण और नवाचार युक्त स्वास्थ्य सेवा पाए बगैर कोरोना वायरस संकट से निकलना संभव नहीं होगा। भारत को भविष्य के लिए कमर कसने और खुद को तैयार करने की जरूरत है। सीमित संसाधनों वाले देश में हमें अभिनव समाधानों और विश्वस्तरीय सामंजस्यपूर्ण नीतियों के साथ आने की जरूरत है। यह भारत के लिए सही समय है कि वह अपने स्वास्थ्य-सेवा क्षेत्र पर पुनर्विचार करे, जो न सिर्फ उत्पादों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है, बल्कि मरीजों के लाभ के लिए विनिर्माण और शोध की पारिस्थितिकी भी तैयार करता है। यह समय की मांग है कि एक सुदृढ़ स्वास्थ्य-सेवा तंत्र पर काम किया जाए, जिससे मौजूदा स्वास्थ्य सेवा के अंदर क्षमता का निर्माण कर और उसे मजबूत बनाकर हासिल किया जा सकता है।

( कार्डियोलॉजी विभाग, एम्स )