[प्रो. निरंजन कुमार] प्रसिद्ध चिंतक मारकस गार्वी लिखते हैं कि अपने अतीत, मूल और संस्कृति के ज्ञान के बिना व्यक्ति अथवा समाज एक जड़हीन वृक्ष की तरह है। अतीत की ओर देखने का अर्थ भविष्य से मुंह मोड़ना नहीं है, क्योंकि अतीत भविष्य की प्रशस्त राह बनाता है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो वामपंथियों, छद्म उदारवादियों और औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त अंग्रेजीपरस्त बुद्धिजीवियों ने अपने गौरवशाली अतीत को न केवल हमेशा नकारा, बल्कि उसे हिकारत भरी दृष्टि से भी देखा। इसका ताजा उदाहरण है चेन्नई के अन्ना यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग कोर्स में भगवद्गीता को शामिल करने पर उठा विवाद।

बुद्धिजीवियों ने खड़ा किया विवाद

द्रमुक नेता स्टालिन और वामपंथी नेता सीताराम येचुरी के साथ-साथ कई बुद्धिजीवियों ने इसे आरआरएस और भाजपा का हिंदुत्ववादी एजेंडा बताकर इसके विरोध में विवाद खड़ा कर दिया। इसके कई पहलू हैं। एक तो यह कि इंजीनियरिंग कोर्स में दर्शनशास्त्र और भगवद्गीता का क्या औचित्य? दूसरे, भगवद्गीता के माध्यम से हिंदू धर्म को आरोपित किया जा रहा है। दर्शनशास्त्र ही पढ़ाना हो तो इसमें कुरान, बाइबिल आदि क्यों नहीं शामिल हों? यह भी कहा जा रहा है कि भगवद्गीता पलायनवाद को बढ़ावा देगी। एक आरोप यह भी है कि भगवद्गीता के माध्यम से संस्कृत द्वारा तमिल और द्रविड़ संस्कृति पर हमला है।

AICTE ने भगवद्गीता को पाठ्यक्रम में किया शामिल 

ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार अन्ना यूनिवर्सिटी ने इंजीनियरिंग में भगवद्गीता को शामिल किया। AICTE देश में इंजीनियरिंग और टेक्निकल शिक्षा का नियमन करती है। उसके मॉडल पाठ्यक्रम के अनुसार इंजीनियरिंग में मानविकी और सामाजिक विज्ञान भी पढ़ाए जाएंगे, ताकि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो।

AICTE ने ऐसे 32 विषय सुझाए हैं जिनमें अन्ना विश्वविद्यालय ने ‘भारतीय संविधान’, ‘अंग्रेजी’, ‘व्यावसायिक संचार’, ‘फिल्म मूल्यांकन बोध’ और ‘दर्शन और नैतिकता’ जैसे छह कोर्स शुरू किए हैं। इनमें से कोई अनिवार्यता नहीं है, छात्र किसी भी विकल्प का चयन कर सकते हैं। फिर भी प्रश्न उठाया गया कि इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में दर्शनशास्त्र या फिल्म मूल्यांकन-बोध आदि क्यों? दरअसल एक संतुलित और सर्वांगीण व्यक्तित्व निर्माण में ऐसे कोर्स बहुत सहायक होते हैं। विभिन्न नवीनतम शोधों में पाया गया है कि जीवन में सफल होने के लिए व्यक्ति में बौद्धिक गुणांक के अतिरिक्त भावात्मक गुणांक, सामाजिक गुणांक और विपरीत परिस्थिति गुणांक होना भी आवश्यक है। 

शिक्षा पर भगवाकरण का आरोप

गीता या दर्शनशास्त्र अथवा मानविकी और सामाजिक विज्ञान के विषय इसमें बहुत सहायक होते हैं। अमेरिका के विश्वविद्यालयों में इंजीनियरिंग डिग्री के लिए सामाजिक विज्ञान के कई विषय पढ़ने अनिवार्य हैं। अपने यहां भी आइआइटी में मानविकी का पूरा एक विभाग है। एक आरोप यह भी है कि यह शिक्षा का भगवाकरण या हिंदुकरण है। यहां यह समझना जरूरी है कि भगवद्गीता बाइबिल या कुरान की तरह विशुद्ध धार्मिक ग्रंथ नहीं है।

इसे एक दर्शन ग्रंथ के रूप में देखा जाता है जो कर्म और ज्ञान का संदेश देता है। महात्मा गांधी से लेकर प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक-दार्शनिक एल्डस हक्सले, अमेरिकी चिंतक एवं गांधीजी के दार्शनिक गुरु हेनरी डेविड थोरो, अमेरिकी वैज्ञानिक एवं परमाणु बम के जन्मदाता रॉबर्ट ओपेनहाइमर और स्विट्जरलैंड के विख्यात मनोविश्लेषक कार्ल जंग और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भगवद्गीता के बड़े प्रशंसक रहे हैं।

दर्शनशास्त्र का हिस्सा है भगवद्गीता

यह भी ध्यान रहे कि अन्ना विश्वविद्यालय में भगवद्गीता एक स्वतंत्र कोर्स के रूप में नहीं, बल्कि दर्शनशास्त्र का हिस्सा है जिसमें भारतीय और पश्चिमी दर्शन का मिश्रण है। इसमें सुकरात, प्लेटो और फ्रांसिस बेकन और मिशेल फूको पर अध्याय भी शामिल हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि अनेक देशों में इंजीनियरिंग आदि में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य है।

दक्षिण कोरिया में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में ईसाई मजहब की शिक्षा अनिवार्य है। एक आरोप यह भी है कि भगवद्गीता के माध्यम से तमिल भाषा और द्रविड़ संस्कृति पर संस्कृत और तथाकथित आर्य संस्कृति को थोपा जा रहा है। यह बेतुका आरोप है, क्योंकि खुद अन्ना यूनिवर्सिटी ने कहा है कि यह कोर्स अनिवार्य विषय नहीं है। तब इसमें संस्कृत थोपने जैसी बात कहां से आती है?

सियासी फायदे के लिए खड़ा किया जा रहा बवाल 

फिर यह भी कि गीता को तमिल या अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाएगा। दरअसल आगामी तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में सियासी फायदे के लिए द्रमुक तरह-तरह की तिकड़म कर रही है। इसी क्रम में तमिल-संस्कृत अथवा द्रविड़-आर्य संस्कृति का नकली विवाद खड़ा कर रही है।

यहां यह जानना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि जिस तमिल- संस्कृत का द्वंद्व पैदा करने की कोशिश की जा रही है उसके बारे में इंडो-यूरोपीय तुलनात्मक ऐतिहासिक भाषाविज्ञान और द्रविड़ भाषा विज्ञान के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ प्रो. थॉमस बरो का शोधकार्य ‘लोनवर्डस इन संस्कृत’ (1946) और ‘कलेक्टेड पेपर्स ऑन द्रविड़ियन लिंग्विस्टिक्स' (1968) दर्शाता है कि संस्कृत के हजारों शब्द कुछ परिवर्तनों के साथ तमिल भाषा में शामिल हो चुके हैं और इसी तरह संस्कृत ने बड़ी संख्या में तमिल से शब्द ग्रहण किए हैं।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के दावे को किया खारिज 

भगवद्गीता को आर्य संस्कृति से जोड़ना और द्रविड़ संस्कृति को इससे अलग बताते हुए इस पर हमले का झूठा वितंडा खड़ा करना वामपंथी और छद्म उदारवादी बुद्धिजीवियों का पुराना शगल रहा है। इसी क्रम में ये आर्यों को बाहर से आया बताते हैं, जबकि हाल में हरियाणा के राखीगढ़ी की खोदाई में मिले नरकंकाल-अवशेषों के डीएनए अध्ययन में हार्वर्ड और प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के अध्येताओं ने इस दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया है कि आर्य बाहर से भारत में आए थे।

वामपंथी व उदारवादी बुद्धिजीवियों को भारतीय परंपरा-संस्कृति में से कुछ भी ठीक नहीं लगता, जबकि भगवद्गीता का चिंतन सार्वदेशिक, सार्वकालिक और सार्वभौमिक है। अमेरिकी चिंतक व गांधी जी के दार्शनिक गुरु हेनरी डेविड थोरो के इस कथन को ये लोग न भूलें कि वेद-उपनिषद के महान शिक्षण में संप्रदायवाद-अलगाव का कोई स्पर्श नहीं है। यह सभी युगों और राष्ट्रीयताओं के लिए है और महान ज्ञान की प्राप्ति के लिए उत्तम मार्ग है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)