नई दिल्ली [ समीर चंद्रा ]। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की 14 जनवरी से शुरू हुई भारत यात्रा सिर्फ एक राष्ट्राध्यक्ष की राजनयिक यात्रा भर न होकर भारतीय और यहूदी सभ्यता के ढाई हजार साल पुराने मित्रतापूर्ण संबंधों को आगे बढ़ाने का एक और अवसर भी है। सितंबर 2003 में एरियल शेरोन ने इजरायली प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार भारत की यात्रा की थी। संयोगवश उस समय भी केंद्र में राजग की सरकार थी। अब एक बार पुन: भाजपा नीत राजग सरकार ने ही इजरायली प्रधानमंत्री का स्वागत किया। इसके पहले नरेंद्र मोदी ने बीते साल बतौर प्रधानमंत्री पहली बार इजरायल का दौरा किया था। नेतन्याहू की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनकी यात्रा को विशेष महत्व दिया जाना एक तरह से भारतीय मानस की इजरायल के प्रति भावनाओं का वास्तविक प्रदर्शन है।

भारत की पहचान अब वैश्विक खिलाड़ियों की अग्रिम पंक्ति में होने लगी है

शताब्दियों पुराने संबंधों की पृष्ठभूमि के अतिरिक्त जो बात इस यात्रा को महत्वपूर्ण बनाती है वह है इसका समय और मौजूदा वैश्विक भूराजनीतिक परिस्थितियां। दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति पर जिस वैश्विक व्यवस्था ने जन्म लिया था उसमें सोवियत संघ के विघटन से कुछ परिवर्तन तो अवश्य आया, परंतु वैसा कोई खतरा नहीं उभरा जैसा आज उभरता दिख रहा है और जिससे विश्व आशंकित भी है। चीन की बढ़ती ताकत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय नियमों की अवहेलना वाले उसके रवैये ने पश्चिमी देशों के साथ-साथ उसके एशियाई पड़ोसियों को भी सशंकित कर रखा है। ऐसे में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और उभरती वैश्विक ताकत के रूप में भारत एक आशा के केंद्र के रूप में सामने आया है। पूर्व अमेरिकी उपविदेश सचिव स्ट्रोब ट्रालबोट ने अप्रैल 2014 में कहा था कि भारत एक वैश्विक ताकत है, लेकिन वह अपनी इस क्षमता को कम करके आंकता रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल भारत को उसकी अपनी क्षमता याद दिलाई है, बल्कि उनकी विदेश नीति से भारत की पहचान अब वैश्विक खिलाड़ियों की अग्रिम पंक्ति में होने लगी है। इसका एक प्रमाण महाशक्ति अमेरिका द्वारा एशिया प्रशांत क्षेत्र को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रूप में संबोधित करने से मिला। हाल में भारत में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में चीन को विस्थापित करने के लिए भारत को आमंत्रित किया। उल्लेखनीय है कि चीन की वर्तमान ताकत और प्रभाव के पीछे अमेरिकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख योगदान है, लेकिन अब अमेरिका यह चाह रहा है कि भारत चीन का स्थान ले।

इजरायली स्टार्टअप कंपनियों की क्षमता सारे विश्व में प्रमाणित है
इजरायली स्टार्टअप कंपनियों की क्षमता सारे विश्व में प्रमाणित है। उनके मूल में नवीन अन्वेषण और उद्यमिता की संस्कृति है जो इजरायल के समाज में गहरे पैठी हुई है। गूगल और आइबीएम जैसी अनेक अग्रणी अमेरिकी कंपनियों के अनुसंधान केंद्र इजरायल में स्थित हैं जो वहां के युवाओं की क्षमता का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। भारत में भी स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। मुद्रा जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर कई युवा अपने-अपने स्टार्टअप खोल रहे हैं। भारत के शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने में और देश केऔद्योगिक ढांचे को मजबूत करने में ये स्टार्टअप महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान स्टार्टअप के क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझौते
प्रधानमंत्री नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान स्टार्टअप के क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं जो दोनों देशों के बीच इस क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाएंगे। जहां भारतीय युवा उद्यमी अपने इजरायली समकक्षों के अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकते हैं वहीं इजरायली स्टार्टअप कंपनियां भारत में उपलब्ध संसाधनों और निर्यात क्षमता का लाभ उठा सकती हैं। यह सहयोग न केवल वृहद स्तर पर रोजगार उत्पन्न करेगा, बल्कि भारत की वह औद्योगिक क्षमता विकसित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा जिसकी अपेक्षा अमेरिका जैसे विकसित देश कर रहे हैं। चीन के वैश्विक ताकत के रूप में उभार के पीछे उसकी अपनी कुशल औद्योगिक क्षमता और ढांचे का विकास है। अगर भारत को वैश्विक व्यवस्था में अपनी वास्तविक हैसियत प्राप्त करनी है तो यह अर्थव्यवस्था के जरिये ही होगी।

इजरायल-फलस्तीन विवाद के हल की ठोस शुरुआत

नेतन्याहू की भारत यात्रा का एक प्रभाव मध्य-पूर्व में इजरायल-फलस्तीन विवाद के हल की ठोस शुरुआत के रूप में सामने आ सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अब तक कच्चे तेल पर बहुत हद तक निर्भर थी। यह अर्थव्यवस्था अब ऊर्जा के वैकल्पिक साधन तेजी से तलाश रही है। ऐसे माहौल में युवराज मोहम्मद बिन सलमान की ओर से सऊदी अरब के समाज को उदारवादी बनाने के प्रयास काफी दूरदर्शी हैं। उदार समाज ही वैश्विक अर्थव्यवस्था का लाभकारी हिस्सा बन सकता है। मध्य-पूर्व क्षेत्र की स्थिरता वहां की अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए बहुत आवश्यक है और युवराज सलमान भी इससे भलीभांति परिचित हैं। ऐसे में इजरायल अरब देशों के लिए पश्चिमी जगत और अर्थव्यवस्था का द्वार बन सकता है। भारत की वैश्विक साख और बढ़ती अर्थव्यवस्था और उसके इजरायल, अमेरिका एवं मध्य-पूर्व के देशों के साथ संबंध फलस्तीन विवाद के हल की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अगर इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान हो जाता है तो यह न केवल मध्य-पूर्व में शांति एवं स्थिरता लाएगा, बल्कि इस क्षेत्र को कच्चे तेल पर निर्भरता वाली अर्थव्यवस्था से निकलने का भी अवसर प्रदान करेगा।

इजरायल और भारत के बीच साइबर सुरक्षा को लेकर समझौता हुआ
एक और क्षेत्र जिसमें इजरायल और भारत के सहयोग की ठोस शुरुआत हो सकती है वह है साइबर सुरक्षा का। आज महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को बमों और बंदूकों से अधिक खतरा बिट्स और बाइट्स से है जो उत्तरी कोरिया जैसे देशों के संदिग्ध हैकरों की गतिविधियों के रूप में अक्सर सामने आता रहता है। इजरायली और भारतीय एजेंसियों का इस क्षेत्र में कुछ न कुछ सहयोग चलता रहा है, लेकिन जरूरत थी संयुक्त रूप से एक ऐसे प्रतिष्ठान को स्थापित करने की जो पूर्ण रूप से साइबर सुरक्षा के प्रति समर्पित हो। इस दिशा में छिटपुट विमर्श होते रहे हैं और वह भी अनाधिकारिक स्तर पर। इस पर हैरत नहीं कि दोनों देशों के बीच साइबर सुरक्षा को लेकर भी एक समझौता हुआ।

इजरायली पर्यटकों का भारत आना और सुगम हुआ

यह उम्मीद की जाती है कि नेतन्याहू की भारत यात्रा दोनों देशों की जनता के बीच पारस्परिक विमर्श की जरूरत की तरफ भी ध्यान आकर्षित करेगी। इस ओर दोनों देशों की सरकारों का ध्यान कम ही रहा है। भारत सरकार की आगमन पर वीजा मिलने की नीति से इजरायली पर्यटकों का भारत आना और सुगम हुआ है, परंतु भारतीयों को ऐसी कोई सुविधा इजरायल से नहीं प्राप्त है। सुरक्षा कारणों से इसकी वजह समझी जा सकती है, परंतु इजरायल इसकी शुरुआत प्रतिष्ठित भारतीय उद्यमियों को आसान वीजा देकर कर सकता है और धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ाया जा सकता है।


[ लेखक वाशिंगटन स्थित यूएस-इंडिया सिक्योरिटी फोरम में विश्लेषक हैं ]