रिजवान अंसारी। डिजिटल इंडिया अभियान को आगे बढ़ाते हुए इसमें राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन को भी शामिल किया गया है। डिजिटल हेल्थ मिशन इन दिनों खासा चर्चा में है। इसकी वजह है कि यह एक अनूठी परियोजना है और इससे स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक बदलाव होने का दावा किया गया है। दरअसल इस योजना में प्रत्येक नागरिक को एक स्वास्थ्य पहचान पत्र मिलेगा, जिसमें उसकी बीमारी से संबंधित सभी रिकॉर्ड डिजिटल रूप में संकलित होंगे, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता तक वह सुगमता से पहुंच सके। इससे कहीं भी, कभी भी डॉक्टर मरीज की स्वास्थ्य रिकॉर्ड की तमाम जानकारी से वाकिफ हो सकेगा।

सरकार का यह कदम स्वागतयोग्य है, लेकिन याद रखने की जरूरत है कि यह अपर्याप्त चिकित्सक और बुनियादी अवसंरचना की कमी को पूरा करने का विकल्प नहीं है। कोरोना काल में जब इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधा की कमी के चलते ऑनलाइन क्लास की संकल्पना फीकी पड़ रही है, तब डिजिटल हेल्थ मिशन को सफल बनाना सरकार के लिए बेहद मशक्कत भरा काम होगा। फिर भी सफलतापूर्वक स्वास्थ्य सुविधाओं को मुहैया कराना भर ही सवाल नहीं है, सवाल इससे भी आगे का है कि रोगियों से जुड़े व्यक्तिगत आंकड़ों की सुरक्षा के लिए क्या तैयारी है?

सरकार जिस हेल्थ आइडी की बात कर रही है, दरअसल वह एक बैंक खाते जैसी होगी, जिसमें व्यक्ति की बीमारी से जुड़ी सभी डिटेल्स एक ही क्लिक में कंप्यूटर स्क्रीन पर दिखेगी। अगर सरकार की यह पहल कामयाब रहती है, तो यकीनन नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन क्रांतिकारी कदम साबित होगा। लेकिन यह मिशन कई प्रकार की चुनौतियों से भी घिरा है। इंटरनेट की अपर्याप्त सुविधा इसकी राह में सबसे बड़ी बाधा है। भले ही एक ही क्लिक में रोगी की सभी जानकारी का स्क्रीन पर उभर आने का दावा किया जा रहा हो, लेकिन देश के ग्रामीण क्षेत्रों की हालत किसी से छुपी नहीं है। इंटरनेट के बुनियादी ढांचे के अभाव में यह कैसे सुनिश्चित होगा कि हर स्वास्थ्य केंद्र में बैठा डॉक्टर आसानी से हेल्थ कार्ड से जानकारी निकाल सके।

थोड़ी देर के लिए मान लें कि इंटरनेट की समस्या खत्म हो जाएगी और डिजिटल हेल्थ मिशन सफलतापूर्वक काम करने लगेगा। लेकिन सवाल यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र की जर्जर बुनियादी अवसंरचना को ठीक किए बिना डिजिटल मिशन अपनी चमक कैसे बिखेर पाएगा? अधिकांश राज्यों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति बेहद खराब है। इस कोरोना काल में ही विभिन्न अस्पतालों में बुनियादी ढांचे की कमी के चलते उपजे हालात से हर कोई परिचित है। लिहाजा डर इस बात का है कि पहले से ही जर्जर चिकित्सा प्रणाली स्वास्थ्य आइडी कार्ड वाली योजना की सफलता को खासा प्रभावित करेगा।

नागरिकों को उपचार के बारे में निर्णय लेने में मदद करने के लिए मेडिकल रिकॉर्ड रखरखाव, स्वास्थ्य सेवा डाटा और इसी तरह की स्वास्थ्य देखभाल प्रक्रियाओं को साझा करने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करना एक अच्छी सोच है, लेकिन यह पहल कई चिंताओं को भी जन्म देती है। इस मिशन में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों, दोनों के अस्पतालों, प्रयोगशालाओं, बीमा फर्मो, फार्मेसियों और टेलीमेडिसिन के बीच सहयोग शामिल है। ऐसे में व्यक्तिगत स्वास्थ्य डाटा के वाणिज्यिक दुरुपयोग की चिंता बढ़ जाती है। इन चुनौतियों के बारे में भी सोचना होगा, मसलन नागरिकों के स्वास्थ्य डाटा के केंद्रीकृत भंडार की निगरानी और उसका प्रबंधन कौन करेगा, डाटा पर सरकार या व्यक्ति विशेष का नियंत्रण होगा? इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और डिजिटल रिकॉर्ड तक लोगों की पहुंच एक विशेष चिंता का विषय है।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]