राखी सरोज। आज समूचा देश महामारी और उससे पैदा हुई तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। लगभग डेढ़ माह पहले होली के आसपास ऐसा महसूस हो रहा था कि हमने महामारी पर विजय प्राप्त कर ली है, लेकिन उसके बाद आई दूसरी लहर ने हम सभी के सामने एक बार फिर से बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। कोरोना संक्रमितों की रोजाना की लाखों की संख्या का आंकड़ा हमें डर और खौफ के साये में जीने के लिए मजबूर कर रहा है। वहीं दूसरी ओर इस समस्या से जूझ रहे लोगों को अस्पतालों में बिस्तरों की कमी, दवाइयों की किल्लत, आक्सीजन की समस्या और प्लाज्मा आदि दिक्कतों से दो-चार होना पड़ रहा है। ऐसे में कई लोग अपने हाथ मदद के लिए आगे बढ़ा रहे हैं तो कई ऐसे लोग भी हैं जो ऑनलाइन ऐसे लोगों के नंबर और पते बांट रहे हैं जिनसे आप इस समय मदद ले सकते हैं। हालांकि कालाबाजारी करने वाले भी हमारे समाज में बहुत हैं, लेकिन लाखों की संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो दान और मदद करने के लिए तत्पर हैं।

इस समस्या के दौर में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी मानसिक विकृति को दिखाने का मौका नहीं खोना चाहते हैं। भारत में इंटरनेट मीडिया के विभिन्न मंचों पर मदद के लिए अपना नंबर डालने वाली लड़कियों को ऐसी विकृत मानसिक अवस्था के लोग परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। कोई लड़की प्लाज्मा या आक्सीजन की मदद के लिए जब अपना पर्सनल नंबर इंटरनेट मीडिया के किसी मंच पर साझा करती है तो उसे मदद करने के लिए हाथ बढ़ाने वालों से ज्यादा ऐसे लोगों के हाथ सामने आते हैं जो उसका मानसिक शोषण कर रहे हैं।

अर्पिता (बदला हुआ नाम) ने अपने पिता की तबीयत खराब होने पर प्लाज्मा के लिए अपना नंबर फेसबुक पर शेयर करा। इसे कई और लोगों ने भी साझा किया, ताकि उसके पिता को प्लाज्मा मिल सके। इसके बाद उसके पास कई लोगों के संदेश आने लगे जिसमें उससे उसकी तस्वीरें मांगी जा रही थीं। एक व्यक्ति ने तो उसे डेट पर जाने तक के लिए पूछ लिया। कई लोगों के अश्लील मैसेज भी आने लगे। बहुत से लोग उसे वीडियो कॉल करने लगे। अर्पिता ने इसकी शिकायत पुलिस से की। पुलिस ने अर्पिता के मैसेज को शेयर करने वालों को उस मैसेज को डिलीट करने के लिए कहा। अर्पिता के साथ हुई इस घटना ने हमें समझाया कि हमारे समाज में किस तरह की मानसिक अवस्था वाले पुरुष भी रहते हैं, जिन्हें समस्या से घिरी लड़की एक मौका दिखाई देती है अपनी विकृत मानसिकता को दिखाने का। कितनी शर्म की बात है कि हम एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहां एक बेटी जब अपने पिता के लिए मदद मांगती है तो हम उससे उसके शरीर का भाव पूछते हैं।

जहां एक ओर हम आपातकाल जैसी परिस्थिति से गुजर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के साथ इस तरह की वारदात पर पुलिस को शिकायत देना आम बात होती जा रही है। जहां एक ओर आज हम कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं जिनके भीतर इंसानियत जिंदा है। वहीं जब इस तरीके की घटनाओं को देखते हैं तो शर्म आती है यह सोच कर कि क्या हम इतने नीचे गिर गए हैं कि किसी भी परिस्थिति में हमें केवल स्त्री के अंगों के इलावा उसकी कोई ओर पहचान नजर ही नहीं आती है। इंटरनेट मीडिया के विविध मंचों पर अपना पर्सनल नंबर डालकर मदद मांगने वाली लड़कियों के साथ यही हो रहा है, उन्हें अश्लीलता से भरे मैसेज और वीडियो कॉल इस तरह से आ रहे हैं कि वे बुरी तरह से डर जा रही हैं।

जिस तरह की परिस्थितियों का सामने मुझे करना पड़ा है, ऐसे में उन सभी लड़कियों को मैं सलाह देना चाहती हूं कि अपना फोन नंबर इस तरह से इंटरनेट मीडिया पर सार्वजनिक रूप से साझा करने से पहले भविष्य में आने वाली इस तरह की समस्या के बारे में भी सोच लें। आज यह विचार करने का समय है कि क्या इस तरीके की आजादी और विकास सच में हमारे लिए सही है, जहां पर महिलाओं के अंगों के आगे अपनी सोच, समझ और विवेक को खोकर एक इंसान, पशु के समान व्यवहार करता है? हम किसी भी स्त्री को इस तरीके के अश्लील संदेश या तस्वीरें भेज कर कैसे परेशान कर सकते हैं, वह भी ऐसी अवस्था में जब वह अपने किसी के पीड़ित होने की परिस्थिति से गुजर रही हो, यह एक ऐसा सवाल है जो हम खुद से कभी नहीं करेंगे, क्योंकि अधिकांश लोगों को आंखों मूंदकर जीवित रहना सिखाया जाता है। यह सिखाया जाता है कि जब तक हमारे स्वयं के साथ कुछ नहीं होता, वह समस्या हमें महत्वपूर्ण नहीं लगती है।

आखिर हम कब तक पुरुषों की गलतियों की सजा स्त्रियों को देते रहेंगे और स्त्रियों को ही यह समझाते रहेंगे कि वह ऐसा न करें ताकि उनके साथ ऐसा न हो। यह विचार पुरुषों के लिए करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि वह उनकी समस्या नहीं है। किंतु महिलाओं के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह समस्या महिलाओं की है। अगर हम आज यही समझेंगे कि हम किस समस्या से जूझ रहे हैं तो यह आग कल हमारे घर तक पहुंच जाएगी। हम जिन पुरुषों को जन्म देते हैं, उनकी मानसिक स्थिति अपने साथ जन्मी स्त्रियों के लिए इस तरीके की क्यों है? अच्छी शिक्षा देकर आखिर हम उन्हें बदलने का प्रयास क्यों नहीं करते?

[सामाजिक मामलों की जानकार]