शंभु सुमन। कोरोना वायरस के अभूतपूर्व संक्रमण काल में रोजमर्रा के अधिकांश कामकाज ऑनलाइन माध्यम से ही हो रहे हैं। हालांकि इससे जिंदगी को सामान्य बनाए रखने में मदद मिली है, लेकिन इसका एक दुष्परिणाम यह भी सामने आ रहा है कि वे साइबर अपराधियों के निशाने पर आ चुके हैं और डिजिटल धोखाधड़ी के मामले काफी बढ़ गए हैं।

इस महामारी के दौर में हैकर्स का असली रंग तेजी से सबके सामने आ रहा है। उन्होंने लोगों में बीमारी के डर, बदली हुई आदतें और जरूरतों को मिलाकर बैंक खातों पर डाका डालने की तकनीक विकसित कर ली है। वे अब नए तरीके से कोविड थीम बनाकर सक्रिय हैं। इसके लिए वास्तविक दिखने जैसे कई बदलाव किए गए हैं। वे हैकिंग, मेल फिशिंग से लेकर इमोशनल हिप्नोटाइजिंग के जरिये वसूली की रकम हासिल करने का काम एक बड़े संगठन के तौर पर कर रहे हैं जिसमें रेफरेंस और सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन करने वाले कई बिचौलिये भी शामिल हैं।

साइबर ठगों ने कंप्यूटर, स्मार्टफोन या बैंक अकाउंट हैकिंग की साजिश रच डाली है। उनकी कोशिश वैश्विक महामारी का सार्वजनिक आतंक फैलाकर लोगों को अपना शिकार बनाने की है। हालांकि इस संबंध में बंगलुरु की एक आइटी कंपनी के विशेषज्ञों ने मार्च में ही चेतावनी दे दी थी। गूगल ने भी चेतावनी दी थी कि महामारी के कारण दुनिया भर में फिशिंग की बाढ़ आ गई है। शिकार की तलाश में हर दिन जीमेल यूजर्स को कोविड-19 की महामारी के बारे में एक करोड़ 80 लाख ईमेल भेजे गए। गूगल ने बड़ी तादाद वैसे ईमेल ब्लॉक भी किए। जालसाजों द्वारा भेजे जाने वाले फिशिंग ईमेल्स कई तरह के होते हैं जिनमें कुछ विश्व स्वास्थ्य संगठन, सरकारी संस्थाओं, एनजीओ आदि के नाम भेजे होते हैं। इसे देखते ही शिकार झांसे में आ जाता है। जैसे ही कोई उससे संबद्ध लिंक के साफ्टवेयर पर क्लिक करता है तो जालसाज उससे फिरौती मांगते हैं।

इनकी तकनीकी जांच में पाया गया कि साइबर अपराधियों ने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का उपयोग किया, जो अमेरिका में कोरोना वायरस के बारे में जानकारी देने वाले ईमेल स्नोत के रूप में एक वास्तविक संगठन है। जब तक कोई उसके डोमेन पर क्लिक नहीं करता है तो यह पहली नजर में वैध लगता है। उसके बाद एक आउटलुक लॉग इन पेज खुल जाता है। यही फिशिंग पेज होता है जिसका मतलब है ईमेल क्रेडेंशियल्स का चोरी हो जाना। फिशिंग ईमेल से डरे हुए इंसान की भावनाओं का दोहन किया जाता है। कई बार लुभावने ऑफर की जाल में भी फंस जाता है। खासकर ओटीटी प्लेटफॉर्म, गेम्स, डिजिटल डेटिंग, बंपर इनाम आदि के ऑफर भी फंसाते हैं। ऑफर की शुरुआत के समय में डेबिट या क्रेडिट कार्ड की पूरी डिटेल जमा करवा लेते हैं। इस तरह से ऑफर मिलने से पहले ही वे अपने आगामी प्लान का ग्राहक बना लेते हैं।

फिशिंग एक ऐसा शब्द है, जिसका उपयोग वैध दिखने वाले ईमेल को ध्यान में रखकर आपके बैंक खाते के विवरण या पासवर्ड जैसी संवेदनशील जानकारियां हासिल करने के लिए बनाया जाता है। इसे देखकर एकबारगी ऐसा लगता है मानो यह किसी विश्वसनीय संस्था, बैंक या सरकार के विभाग आदि द्वारा भेजा गया हो, लिहाजा उस पर आसानी से भरोसा हो सके। फिशिंग का ही एक अलग रूप स्मिशिंग है, जिसकी तकनीक उसी के समान होती है, बस सम्मोहित करने वाली बातें फोन कॉल के द्वारा की जाती हैं।

इस बीच साइबर अपराधियों ने नई तकनीक अपनाकर एशियाई देशों के लोगों को निशाना बना लिया है। एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है कि महामारी फैलने के साथ-साथ साइबर अपराधी भारत समेत बांग्लादेश एवं वियतनाम और मलेशिया में कोरोना वायरस से संबंधित मैलवेयर का जाल बिछा चुके थे।  

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)