[ डॉ. एके वर्मा ]: मध्यप्रदेश में कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि राजस्थान में उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यह ध्यान रहे कि राजस्थान में पार्टी अध्यक्ष के रूप में सचिन पायलट के प्रयासों से कांग्रेस की जीत हुई थी। उन्हेंं उम्मीद थी कि उन्हीं को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत में टकराव चरम पर है

लोकसभा चुनावों में जब कांग्रेस को राजस्थान में एक भी सीट नहीं मिली तो सचिन पायलट और अशोक गहलोत में टकराव और बढ़ गया। अब यह टकराव अपने चरम पर है। बीते दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र बुलाने की दोबारा मांग की, पर उसका उद्देश्य स्पष्ट नहीं किया। राज्यपाल कलराज मिश्र ने उनको जल्दबाजी न करने और कोरोना के चलते वांछित व्यवस्था करने को कहा है।

जानिए, राजस्थान सियासी प्रकरण में तीन प्रमुख सवाल क्या हैं?

इस प्रकरण ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। तीन सवाल प्रमुख हैं। पहला, क्या सचिन पायलट और 18 अन्य विधायकों ने दलबदल निरोधक कानून का उल्लंघन किया है? दूसरा, क्या राजस्थान विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने सचिन पायलट और अन्य विधायकों को दलबदल कानून के तहत व्हिप का उल्लंघन करने पर सदन की सदस्यता के अयोग्य घोषित करने की कार्यवाही शुरू कर कानून की गलत व्याख्या की? तीसरा, क्या राज्यपाल कलराज मिश्र ने मुख्यमंत्री द्वारा सदन की बैठक बुलाने की मांग में शर्तें लगा कर संविधान का उल्लंघन किया है?

जानें, दलबदल कानून के तहत दलबदलू होने की तीन शर्तें क्या हैं?

पहले सवाल के संदर्भ में यह ध्यान रहे कि सचिन पायलट द्वारा गहलोत के नेतृत्व को चुनौती देना वास्तव में दलीय विद्रोह है, जिसे पार्टी के विरुद्ध अनुशासनहीनता की संज्ञा दी जा सकती है। दलबदल कानून के तहत दलबदलू होने की तीन शर्तें हैं। पहली, कोई दलीय विधायक निर्वाचित होने के बाद अपने दल से स्वेच्छा से त्यागपत्र दे। दूसरी, विधायक अपने दल के व्हिप का उल्लंघन कर सदन में उपस्थित न हो। तीसरी, विधायक व्हिप के निर्देशों के अनुरूप सदन में मतदान न करे। इसके अलावा अन्य किसी भी आधार पर दलीय विधायक को दलबदलू नहीं माना जा सकता।

सचिन और उनके साथी विधायकों ने दलबदल निरोधक कानून का नहीं किया उल्लंघन

सचिन और उनके साथी विधायकों ने इसमें से किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है। दलबदल निरोधक कानून दल विरोधी गतिविधियों को दलबदल की परिधि से बाहर रखता है। संविधान निर्वाचित विधायकों को कुछ स्वतंत्रता देता है ताकि वे अपनी पार्टी के बंधुआ मजदूर न हो जाएं, लेकिन देश में संसदात्मक व्यवस्था है जिसमें सरकार को अपने विधायकों की स्वतंत्रता और विधायकों के बहुमत में संतुलन बनाना पड़ता है।

दलीय व्हिप का उल्लंघन कर सदन में मतदान करने या अनुपस्थित रहने पर दलबदल होता है

दूसरे सवाल के सिलसिले में यह उल्लेखनीय है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के सचेतक ने व्हिप जारी किया था जो कांग्रेस विधायक दल की बैठक में भाग लेने के संबंध में था। वह बैठक किसी होटल या निवास पर हुई, जबकि दलबदल निरोधक कानून का पैरा 2(1) ख दलीय व्हिप का उल्लंघन कर सदन में मतदान करने या अनुपस्थित रहने को ही दलबदल की संज्ञा देता है। हैरानी है कि इतनी सीधी बात विधानसभा अध्यक्ष को समझ में नहीं आई।

विधानसभा अध्यक्ष ने अपने दायित्वों का निष्पक्षता से पालन नहीं किया

साफ है कि उन्होंने अध्यक्ष के दायित्वों का निष्पक्षता से पालन नहीं किया और पार्टी प्रतिबद्धताओं को प्राथमिकता दी। संभव है भाजपा ने इस प्रकरण में कोई भूमिका अदा की हो, लेकिन आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस अपने ही योग्य और युवा नेताओं को साथ नहीं रख पा रही? क्या राहुल गांधी के नेतृत्व के लिए उन्हेंं चुनौती के रूप में देखा जाता है?

कांग्रेस ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में विवादों को हलके ढंग से नहीं लिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट, दोनों ही कांग्रेस के उदीयमान युवा नेता थे और पार्टी को उन्हेंं आगे करना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया- कमलनाथ-दिग्विजय सिंह और राजस्थान में अशोक गहलोत-सचिन पायलट के विवादों को हलके ढंग से लिया। इन्हीं दो राज्यों में कांग्रेस मजबूत थी।

राज्यपाल के विशेषाधिकार पर न्यायिक पुनर्निरीक्षण नहीं हो सकता

तीसरा सवाल राज्यपाल की भूमिका को लेकर है। पूछा जा रहा है कि क्यों वह मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा अधिवेशन बुलाने के आग्रह को टाल रहे हैं? क्या संविधान उन्हेंं ऐसा करने का अधिकार देता है? संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार राज्यपाल की शक्तियां राष्ट्रपति से भी ज्यादा हैं। सामान्यत: तो वह राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करता है, लेकिन कुछ अन्य मामलों में वह अपने विशेषाधिकार के अनुसार कार्य करता है। यदि इस पर कोई विवाद होता है कि कोई विषय उसके विशेषाधिकार में आता है या नहीं तो यह निर्णय भी वह अपने विशेषाधिकार के अनुसार करता है जिस पर न्यायिक पुनर्निरीक्षण नहीं हो सकता।

जानिए, राज्यपाल की तीन बातें क्या हैं? 

राज्यपाल का रुख इस पर भी निर्भर करता है कि सरकार को पूर्ण बहुमत है या नहीं? राज्यपाल कलराज मिश्र ने मुख्यमंत्री के प्रस्ताव को दो बार यह कह कर लौटा दिया कि आपदा प्रबंधन कानून लागू होने के कारण उसमें तीन बातों का ध्यान रखा जाए-विधायकों को 21 दिन का नोटिस दिया जाए। यदि सरकार विश्वास मत प्राप्त करना चाहती है तो सदन की कार्यवाही की वीडियो रिकॉडिंग की जाए और उसका सजीव प्रसारण किया जाए और विधायकों और कर्मचारियों के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित किया जाए।

कांग्रेस का आरोप- राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं

कांग्रेस का आरोप है कि राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं। ऐसे आरोप 1950 से ही राज्यपालों पर लगते रहे हैं। यह कोई नई बात नहीं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि जब विपक्ष सरकार के अल्पमत में होने का उल्लेख कर अविश्वास प्रस्ताव की मांग नहीं कर रहा तो मुख्यमंत्री को सदन बुलाने की जल्दी क्यों है? क्या उन्होंने भी अपनी पार्टी के विधायकों को बंधक बनाया हुआ है? क्या उन्हेंं भय है कि वे उन्हेंं छोड़कर सचिन के कैंप में चले जाएंगे?

भारतीय लोकतांत्रिक संस्थाओं में आती गिरावट

राजस्थान में जो भी हो, लेकिन वहां का घटनाक्रम भारतीय लोकतांत्रिक संस्थाओं में आती गिरावट, राजनीतिक समस्याओं का विधिक समाधान करने की भूल और कांग्रेस द्वारा दलीय लोकतंत्र और नेतृत्व की चुनौतियों को समुचित रूप से हल न कर पाने का मिश्रित प्रतिबिंब है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक हैं )