संजय गुप्त

अमेरिका, जापान समेत अन्य देश अपने कारखाने चीन से बाहर लाने की जो तैयारी कर रहे हैं वह भारत के लिए एक सुनहरा मौका है। भारत सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए तीन सप्ताह के जिस लॉकडाउन की घोषणा की थी उसकी समय सीमा खत्म होने के पहले ही उसे बढ़ाने की मांग तेज हो गई। ओडिशा, पंजाब आदि कुछ राज्य सरकारों ने तो अपने-अपने यहां लॉकडाउन की अवधि बढ़ा भी दी। प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की वीडियो कांफ्रेंसिंग में भी कई मुख्यमंत्री इस पक्ष में रहे कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जाए। मौजूदा हालात भी इसकी जरूरत रेखांकित कर रहे हैं। 

तब्लीगी जमात वालों के गैर जिम्मेदाराना रवैए से बढ़े कोरोना संक्रमित 

प्रधानमंत्री ने जब लॉकडाउन की घोषणा की थी तब देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या पांच सौ के करीब थी, लेकिन अब वह आठ हजार पहुंच रही है। इसकी एक बड़ी वजह तब्लीगी जमात वालों का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार रहा। आंकड़े बता रहे कि देश में कोरोना मरीजों की संख्या एक अप्रैल के बाद तेजी से बढ़ी। ज्ञात हो कि इसी समय तब्लीगियों को दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित उनके मरकज से बाहर निकाला गया था। उन्हें खुद को अलग- थलग रखने की हिदायत दी गई थी, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इन्कार करने के साथ ऐसी हरकतें कीं जिससे संक्रमण तेजी से फैला। दुख, शर्म और चिंता की बात यह है कि तब्लीगियों के छिपने, असहयोग का सिलसिला अभी भी कायम है।

सघन आबादी में हो अधिक अधिक जांच 

संक्रमितों की बढ़ती संख्या इसलिए गहन चिंता का विषय है, क्योंकि भारत एक तो बड़ी आबादी वाला देश है और दूसरे उसका स्वास्थ्य ढांचा पर्याप्त सक्षम नहीं। चूंकि देश में अपेक्षित संख्या में लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हो पा रहा है इसलिए कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आए लोगों की सही संख्या जानने में कठिनाई आ रही है। हैरानी नहीं कि देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या मौजूदा संख्या से दोगुना हो। शायद इसीलिए लॉकडाउन अवधि बढ़ाने की मांग हो रही है। यह समय की मांग है कि कोरोना प्रभावित इलाकों और खासकर शहरों में जहां सघन आबादी है वहां अधिक से अधिक संख्या में लोगों की जांच हो। जरूरी हो तो ऐसे इलाकों में कर्फ्यू लगाकर जांच की जाए।

अर्थव्‍यवस्‍था को जल्‍द पटरी पर लाने की चुनौती 

कोरोना का कहर देश के साथ दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी चोट पहुंचा रहा है। दुनिया का मंदी की चपेट में आना अब एक हकीकत है। यह स्पष्ट है कि लॉकडाउन जितना बढ़ेगा, अर्थव्यवस्था की चुनौतियां भी उतनी ही बढ़ेंगी। लॉकडाउन की घोषणा करते समय भारत सरकार ने उद्योग-व्यापार जगत से यह अपेक्षा की थी कि वह अपने कर्मचारियों का मार्च माह का वेतन न रोके, लेकिन उसके लिए अप्रैल माह के वेतन को लेकर ऐसी अपेक्षा करना कठिन होगा।

उद्योग-व्यापार जगत की ओर से यह अपेक्षा पूरी किया जाना आसान भी न होगा, क्योंकि हर कारोबारी इतना समर्थ नहीं कि वह बंद कारोबार के बाद भी अपने कर्मियों के वेतन दे सके। इसी कारण लाखों लोगों की नौकरियों पर तलवार लटक गई है। यह स्थिति पूरी दुनिया में है। कोरोना के कहर से निपटने के साथ ही भारत और दुनिया के अन्य देशों को इसकी भी चिंता करनी होगी कि अर्थव्यवस्था को जल्द से जल्द कैसे पटरी पर लाया जाए?

कोरोना संकट के समय भारत की भूमिका की पूरे विश्‍व में सराहना 

यह देखना सुखद है कि इस गहन संकट के समय विश्व भारत की ओर उम्मीदों से देख रहा है। इसका कारण प्रधानमंत्री की ओर से पहले सार्क और फिर जी-20 के जरिये इसके लिए सक्रियता दिखाना रहा कि कोरोना के कहर से मिलकर कैसे निपटा जाए। भारतीय प्रधानमंत्री ने कोरोना से उपजी कोविड-19 बीमारी के उपचार में सहायक मानी जाने वाली मलेरिया की दवा जिस तरह तमाम देशों को उपलब्ध कराई उससे उनके साथ-साथ भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और अधिक निखरी है।

संक्रमण को थामने के लिए युद्धस्‍तर पर जुटना होगा  

विश्व समुदाय भारत की सराहना करने के साथ इस पर भी निगाह लगाए है कि वह कोरोना संकट से कैसे पार पाता है? स्पष्ट है कि कोरोना के कहर को थामकर भारत एक मिसाल कायम करने के साथ उन उम्मीदों को पूरा कर सकता है जो विश्व समुदाय उससे लगाए हुए है। यह मिसाल तभी कायम की जा सकती है, जब संक्रमण को थामने के लिए युद्धस्तर पर जुटा जाए। चूंकि यह एक कठिन लड़ाई है इसलिए उसमें आम लोगों का योगदान जरूरी है।

चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका कठघरे में

आज जब विश्व भारत की ओर निहार रहा है तब वह चीन के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन को कठघरे में भी खड़ा कर रहा है, क्योंकि इस संगठन ने चीन के सुर में सुर मिलाकर दुनिया को समय रहते चेताया नहीं। उसने चीन की गोद में बैठने का जो काम किया, उसके कारण ही उसकी फजीहत हो रही है। यह फजीहत होनी भी चाहिए, क्योंकि उसके कारण दुनिया बहुत गहरे संकट में फंस गई है। बेहतर हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपनी गलती का अहसास हो। विश्व समुदाय को यह देखना ही होगा कि भविष्य में यह संगठन सही तरह काम करे।

वायरस को विश्‍व में फैलाने को लेकर विश्‍व समुदाय से खेद व्‍यक्‍त करे चीन 

हालांकि चीन ने कोरोना वायरस के गढ़ वुहान के लॉकडाउन को खत्म करने की घोषणा कर दी है, लेकिन इसमें संदेह है कि उसने महामारी बन गई कोविड-19 बीमारी पर वास्तव में काबू पा लिया है। इन दिनों तमाम वैज्ञानिक इसकी पुष्टि कर रहे हैं कि कोरोना वायरस चमगादड़ या फिर पैंगोलिन के जरिये वुहान के लोगों के शरीर में आया और फिर वहां से दुनिया में फैला। कायदे से चीन को अपने लोगों को वन्य जीवों को खाने से रोकने के साथ कोरोना वायरस का संक्रमण फैलाने के लिए विश्व समुदाय से खेद व्यक्त करना चाहिए।

 एक तो इसके आसार कम हैं और दूसरे दुनिया यह स्मरण करने को विवश है कि इसके पहले किस तरह सार्स और एच-1एन-1 वायरस ने दुनिया पर कहर ढाया था। जैसे आज कोरोना के कारण विश्व अर्थव्यवस्था घुटनों के बल आ गई है वैसे ही सार्स और एच-1एन-1 के संक्रमण के दौरान भी उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ा था।

चीन के कारखानों को भारत में लाने का सुनहरा अवसर   

चूंकि चीन न तो लोकतांत्रिक तौर-तरीके अपनाने को तैयार है और न ही अपने सामाजिक-राजनीतिक व्यवहार को बदलने के लिए इसलिए अमेरिका, जापान समेत अन्य अनेक विकसित देश अपने कारखाने चीन से बाहर लाने की तैयारी कर रहे हैं। यह उचित भी है, क्योंकि इसका औचित्य नहीं कि चीन दुनिया का कारखाना बना रहे। विकसित देशों की ओर से अपने कारखाने चीन से बाहर निकालने की तैयारी भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है। इस अवसर को भुनाने के लिए हरसंभव कदम उठाए जाने चाहिए। यदि विकसित देशों के चीन में स्थापित कारखाने भारत आ सकें तो इससे देश के आर्थिक भविष्य को कहीं अधिक आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है।

(लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं।)