[ डॉ. भरत झुनझुनवाला ]: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बैंकों के माध्यम से ईरान से खरीदे गए तेल का भुगतान करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। उन्होंने ईरान द्वारा भेजे गए तेल के टैंकरों का बीमा करने के लिए भी अमेरिकी कंपनियों को मना किया है। ट्रंप का उद्देश्य है कि ईरान के लिए तेल का निर्यात मुश्किल बना दें। तब ईरान की आय घटेगी, लोगों में असंतोष बढ़ेगा और ईरान को अमेरिका के बताए अनुसार अपने परमाणु कार्यक्रम में और कटौती करनी होगी। कुछ अर्सा पहले ईरान ने अमेरिका के अलावा कई यूरोपीय देशों से यह करार किया था कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम का दायरा घटाएगा।

वैश्विक जांच एजेंसियों के अनुसार ईरान ने उस समझौते का पालन किया है। ट्रंप पूर्व के समझौते को निरस्त करके और कठिन समझौते को लागू कराना चाहते हैं, लेकिन चीन, यूरोप, भारत और रूस को ईरान का तेल चाहिए। वे यदि ईरान से तेल नहीं खरीदेंगे तो विश्व में तेल की आपूर्ति कम होगी। इससे तेल के दाम बढ़ेंगे और इन देशों के लिए मुश्किलें पैदा होंगी। इसलिए ये देश चाहते हैं कि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद ईरान से तेल की खरीद जारी रहे। इस दिशा में 2012 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने तेल का निर्यात कैसे जारी रखा था, इसे देखना जरूरी है।

तब ईरान ने अपना एक खाता यूको बैंक की कोलकाता शाखा में खोला था। भारतीय तेल आयातकों ने तेल का लगभग आधा भुगतान रुपयों में यूको बैंक की इस शाखा में ईरान सरकार के खाते में जमा करा दिया। इस रकम का उपयोग ईरान ने भारत से बासमती चावल जैसी सामग्री खरीदने के लिए किया। इस प्रकार भारत ने ईरान से तेल का आयात और ईरान ने भारत से बासमती चावल का आयात सीधे रुपये के माध्यम से किया। इस द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर की कोई भूमिका नहीं रह गई।

अब भारत ने ईरान के दो बैंकों को भारत में अपनी शाखा खोलने की स्वीकृति दे दी है। इन बैंकों में ईरान से खरीदे गए तेल का भुगतान भारत रुपयों में कर सकता है। ईरान उस रकम का उपयोग भारत से माल का आयात करने में कर सकता है। अमेरिकी बैंकों के माध्यम से यह भुगतान नहीं होगा। यह अमेरिकी प्रतिबंधों के बाहर रहेगा। ईरान भारत से माल का आयात न करना चाहे तो भी रास्ता है। मान लीजिए ईरान ने भारत को तेल निर्यात किया और उस रकम से ईरान जर्मनी से ट्रक खरीदना चाहता है। ऐसे में भारत द्वारा ईरान को भुगतान यूरो में किसी जर्मन बैंक में डाला जा सकता है। उन यूरो का उपयोग ईरान द्वारा जर्मनी से ट्रक खरीदने के लिए हो सकता है। इस प्रकार अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध मूल रूप से निष्प्रभावी हो सकते हैं।

जिस प्रकार हम अमेरिकी प्रतिबंधों से प्रभावित हैं उसी प्रकार चीन, यूरोप और रूस भी। इन देशों ने मन बनाया है कि एक वैकल्पिक बैंकिंग व्यवस्था बनाई जाए जिसमें अमेरिकी बैंकों का हिस्सा न हो। वर्तमान में विश्व के वित्तीय लेनदेन में डॉलर का हिस्सा 39 प्रतिशत और यूरो का 35 प्रतिशत है। यदि यूरोपीय देश वैकल्पिक बैंकिंग व्यवस्था बना लेते हैं तो अमेरिका का हिस्सा और कम हो जाएगा। इससे विश्व अर्थव्यवस्था पर अमेरिका का वर्चस्व कम हो जाएगा। ईरान पर प्रतिबंध लगाना एक और कारण से अमेरिका के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

अमेरिकी सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रपति ओबामा के समय अमेरिकी सरकार का वार्षिक घाटा 600 अरब डॉलर था। वर्तमान में यह बढ़कर 890 अरब डॉलर हो गया है। वित्तीय घाटे का अर्थ हुआ कि अमेरिकी सरकार की आय कम और खर्च ज्यादा है। इस बढ़े हुए खर्च से राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिका में रोजगार के अवसर सृजित कर रहे हैं। वह बड़ी कंपनियों को छूट दे रहे हैं जिससे उनके द्वारा अधिक लाभांश का भुगतान किया जा रहा और शेयर बाजार उछल रहा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था तीन प्रतिशत की तेज गति से बढ़ रही है, लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था की यह गति ऋण पर आधारित है। वर्तमान में अमेरिका ने 21,000 अरब डॉलर की विशाल राशि ऋण के रूप में ले रखी है। इसमें चीन और जापान प्रत्येक द्वारा 1,000 अरब डॉलर की राशि अमेरिका में जमा कराई गई है। अपनी अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए अमेरिका के लिए जरूरी है कि उसे भारी मात्रा में ऐसा विदेशी ऋण निरंतर मिलता रहे।

सभी देश अपने बाहरी व्यापार को संचालित करने के लिए कुछ रकम अंतरराष्ट्रीय बैंकों में जमा कराकर रखते हैं जिसे ‘विदेशी मुद्रा भंडार’ कहा जाता है। इस भंडार को बनाए रखने के लिए अब तक अधिकांश देश अपनी मुद्रा को अमेरिकी बैंकों में जमा रखते थे, लेकिन अमेरिका द्वारा ईरान पर एकतरफा प्रतिबंध लगाने से अमेरिका की विश्वसनीयता में गिरावट आई है। मिसाल के तौर पर रूस ने 150 अरब डॉलर की राशि विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में अमेरिका में जमा करा रखी थी। इसमें से उसने 85 अरब डॉलर निकाल कर उसे दूसरी मुद्राओं में जमा कराया है। यदि चीन, जापान, भारत समेत अन्य देश भी अपने विदेशी मुद्रा भंडार को अमेरिकी डॉलर के बजाय दूसरी मुद्राओं अथवा सोने में निवेश करते हैं तो वर्तमान में अमेरिका को जो ऋण मिल रहा है उसका प्रवाह उलट जाएगा। घाटा पूरा करने के लिए अमेरिकी सरकार को ऋण मिलना बंद हो जाएगा। ऐसी स्थिति में अमेरिकी अर्थव्यवस्था घुटने टेकने को मजबूर हो जाएगी।

ईरान पर प्रतिबंध लगाने से यह संभावना बढ़ गई है कि विश्व के प्रमुख देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को डॉलर में रखने के स्थान पर दूसरी मुद्राओं में रखना शुरू कर देंगे। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त हो सकती है।

वर्तमान में अमेरिका विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था है। अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध शेष विश्व के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं, लेकिन दीर्घकाल में यह परिस्थिति पलट सकती है। यदि यूरोपीय देशों ने वैकल्पिक बैंकिंग व्यवस्था बना ली अथवा विश्व के प्रमुख देशों ने अपना विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर के बजाय अन्य मुद्राओं में रखना शुरू कर दिया तो फिर अमेरिकी अर्थव्यवस्था के समक्ष संकट उत्पन्न हो जाएगा। इस परिस्थिति में भारत को अपना रास्ता बनाना है। तात्कालिक रूप से हमें ईरान से तेल आयात करते रहना चाहिए।

हम ईरान को इसके लिए मनाएं कि वह रुपये में भुगतान स्वीकार करे। उसके एवज में यदि हमें ईरान को कुछ अधिक दाम भी देने पड़ें तो उसमें भी कोई हर्ज नहीं, क्योंकि ईरान द्वारा रुपये में किए गए इस भुगतान का इस्तेमाल भारत से वस्तुओं का आयात करने के लिए किया जाएगा। इससे भारत के निर्यातकों का धंधा बढ़ेगा।

दीर्घकाल में भारत को यूरोपीय देशों द्वारा बनाए जा रहे वैकल्पिक बैंक का साथ देना चाहिए और अपने विदेशी मुद्रा भंडार को डॉलर के बजाय दूसरी मुद्राओं में रखना चाहिए। ऐसा करने से अमेरिका पर दबाव पड़ेगा और हम बहुध्रुवीय विश्व अर्थव्यवस्था बनाने की ओर बढ़ेंगे। अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद हम ईरान से तेल की खरीद जारी रख सकेंगे। तब तेल के बढ़ते दामों से जनता को भी राहत मिलेगी।

[ लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलूर के पूर्व प्रोफेसर हैं ]