[राजीव शुक्ला]। अटलजी पर बहुत लोग बहुत कुछ कह रहे हैं, लेकिन किसी के लिए भी उनके जीवन से जुड़े सभी पहलुओं पर प्रकाश डालना संभव नहीं। वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके बारे में जितना कहा जाए कम है। मेरी उनसे प्रगाढ़ता उस समय बढ़ी जब मेरे ससुर पूर्व मंत्री ठाकुर प्रसाद के निधन पर वह उनके घर पटना आकर रुके। ठाकुर प्रसाद जी से उनके अंतरंग संबंध थे। वह हमेशा उन्हीं के घर रुकते थे और कार के बजाय रिक्शे पर बैठकर उनके साथ अक्सर रेस्त्रां में जाकर कीमा समोसा और रसगुल्ला खाते थे। इतना बड़ा कद होने के बावजूद उनकी कोशिश एक आम आदमी की तरह रहने की होती थी। वह कम बोलते थे, सुनते ज्यादा थे, लेकिन भाषण देते वक्त सब कुछ कह जाते थे। उनके विरोधी दल के लोग भी उनका भाषण सुनने उनकी सभाओं में जाते थे। भाषण में हास्य-व्यंग्य के साथ वह गंभीर बातें भी कह जाते थे।

मुझे याद है कि मुशर्रफ के साथ आगरा वार्ता विफल होने के बाद राज्यसभा में जोरदार बहस हुई और दो दिन तक अटल जी को कोसा गया कि उन्होंने मुशर्रफ को क्यों बुलाया, लेकिन जब वह जवाब देने खड़े हुए तो एक मिनट में माहौल बदल गया। वह बोले, ‘पहले मैं जब ट्रेन से दिल्ली आता-जाता था तब दोनों तरफ दीवारों पर लिखा रहता था, रिश्ते ही रिश्ते, कम से कम मिल तो लें-प्रो. अरोड़ा। यदि हम मुशर्रफ साहब से रिश्ते बनाने के लिए मिले तो उसमें कौन सा गुनाह किया?’ पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा और बहस समाप्त हो गई। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद मेरे उनसे रिश्ते और प्रगाढ़ हो गए। मैं अक्सर उनसे मिलने लगा। उन्होंने मुझे समन्वय समिति में भी नामित किया। कलाम साहब को राष्ट्रपति बनाने का फैसला इसी समिति ने उन्हीं के प्रयासों से किया। कठिन से कठिन समस्या आने पर भी वह घबराते नहीं थे। एक बार समिति की बैठक में चंद्रबाबू नायडू ने गुजरात दंगों को लेकर समर्थन वापस लेने की धमकी दी, लेकिन अटल जी विचलित नहीं हुए। उन्होंने सहजता से कहा कि राजधर्म निभाएंगे, लेकिन दबाव में नहीं झुकेंगे। उन्होंने सबको समोसा, खस्ता और मिठाई खिलाई। सरकार जाने का उन्हें तनिक भी भय नहीं था।

अपने घर वह एक आम इंसान की तरह रहते थे। हफ्ते में एक बार यूपी वाला खाना-पूड़ी-कचौड़ी और आलू टमाटर या फिर कद्दू की सब्जी खाते थे। वह चाहे प्रधानमंत्री रहें हों या नेता विपक्ष, सर्दियों में लॉन में खटिया बिछाकर धूप में बैठते थे। उन्होंने अपने बंगले में शिवलिंग स्थापित किया था जिस पर नियमित जल चढ़ाते थे। उनके कक्ष में परिवार के अलावा सिर्फ एक शख्स को जाने-रहने की इजाजत थी और वह थे उनके मित्र भैरोसिंह शेखावत। उनकी जिंदगी में राजकुमारी कौल, जिन्हें हम सब कौल आंटी कहते थे और उनकी बेटी नमिता का बहुत योगदान रहा। अटल जी की देखरेख की जो जिम्मेदारी कौल परिवार ने निभाई वह एक मिसाल है। नमिता के पति रंजन रात-दिन उनकी सेवा में रहते थे। करीब चार वर्ष पहले कौल आंटी की मृत्यु हो गई थी। वह घर आने वालों का ख्याल अटल जी से भी ज्यादा रखती थीं।

अटलजी हर साल राष्ट्रसंघ की बैठक में न्यूयार्क जाना पसंद करते थे। वह वहां काफी समय तक रहते थे। इंदिराजी, राजीवजी, नरसिम्हा राव सहित हर प्रधानमंत्री ने उन्हें इस प्रतिनिधिमंडल में भेजा। जब वह प्रधानमंत्री बने तो न्यूयार्क के साथ वाशिंगटन भी जाने लगे। राष्ट्रपति क्लिटंन उन्हें बहुत सम्मान देते थे। उन्होंने व्हाइट हाउस के लॉन में तंबू लगवाकर सिर्फ दो लोगों के लिए शाही भोज दिया- एक चीनी राष्ट्रपति कोऔर दूसरा अटल जी को। उन दिनों अटल जी के घुटनों में दर्द रहता था। मैंने खुद देखा कि क्लिटंन अटल जी का हाथ पकड़कर पूरे समय उन्हें सहारा देते रहे।

अटलजी को फिल्म देखने का भी शौक था। उनके प्रधानमंत्री रहते समय कई बार विशेष शो होते थे जिनमें अक्सर मैं भी जाता था। वह शाहरुख, सलमान को पसंद करते थे। शाहरुख मेरे साथ कई बार बीमार अटल जी को देखने गए। एक बार उन्होंने मेरे जरिये अपने पसंदीदा क्रिकेटर इरफान पठान को भी पीएम हाउस बुलाया। जब 2003 में गृह मंत्रालय ने भारत पाक-क्रिकेट सीरीज का विरोध किया तो मैंने अटल जी से मिलकर टीम को पाकिस्तान भेजने का आग्रह किया। उन्होंने अनुमति दिला दी। इसके बाद सबको पता है कि उस दौरे ने भारत-पाक संबंधों को बेहद मजबूत किया।

अटल-आडवाणी के संबंधों को लेकर तमाम तरह की बातें होती हैं, लेकिन उनकी दोस्ती अनोखी थी। यदि कोई एक किसी बात पर अड़ जाता था तो दूसरा झुक जाता था। शायद इसीलिए यह दोस्ती 65 साल तक चली। विवादित ढांचे के ध्वंस के दूसरे दिन अटल जी बेहद दुखी थे। संसद के केंद्रीय कक्ष में अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा, आज हमारा सिर शर्म से झुका हुआ है। जब 2004 के चुनाव चल रहे थे तो मैंने उनसे कहा कि ज्यादातर सर्वे आपको जिता रहे हैं। इस पर वह तपाक से बोले, कोई सर्वे कुछ भी कहे, मेरी सरकार नहीं आ रही है। समय से पहले चुनाव कराकर बहुत गलती हो गई। मैं उनकी बात सुनकर अवाक रह गया। बाद में वही सच साबित हुए।

(लेखक पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं क्रिकेट प्रशासक हैं)