राज कुमार सिंह। भारतीय राजनीति में वंशवाद नया मुद्दा नहीं, पर इसका बढ़ते जाना बड़े खतरे की ओर इशारा है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर परिवारवाद के आरोप लगाते हैं, पर सच यह है कि कोई किसी से पीछे नहीं। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में उनकी बेटी इंदिरा गांधी को आगे बढ़ाए जाने के साथ ही परिवारवाद का सवाल उठने लगा था।

इंदिरा के प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस तरह पहले संजय और फिर राजीव गांधी को आगे बढ़ाया गया, उसके बाद तो वंशवाद का आरोप कांग्रेस पर स्थायी रूप से चस्पा हो गया। विडंबना है कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को वंशवाद में कोई बुराई नजर नहीं आती। आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस परिवारों का समूह ज्यादा नजर आती है।

सबसे बड़े लोकतंत्र की विद्रूपता देखिए कि जो दल और नेता वंशवाद के लिए कभी कांग्रेस को कोसते थे, वे अपनी वंशबेल बढ़ाने में उससे भी आगे निकल गए। क्षेत्रीय दल तो हैं ही परिवार केंद्रित, बाकी का हाल भी अलग नहीं। देश के लिए निर्णायक बताए जा रहे 2024 के लोकसभा चुनाव में भी वंशवाद सर्वत्र है।

अक्सर विकृतियों के लिए उत्तर भारत को जिम्मेदार मान लिया जाता है, पर भ्रष्टाचार की तरह वंशवाद में भी पूरा भारत एक है। उत्तर प्रदेश में स्व. मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश और पुत्रवधू डिंपल के अलावा भाई-भतीजों समेत कई अन्य स्वजन चुनाव मैदान में हैं। आकाश आनंद बसपा सुप्रीमो मायावती के उत्तराधिकारी भतीजा होने के नाते ही हैं।

एनडीए में शामिल संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर को अपने हिस्से आई एक-एक सीट पर अपने बेटों से बेहतर उम्मीदवार नहीं मिले। भाजपा उम्मीदवार राजवीर सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेटे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज विधानसभा चुनाव लड़ते रहे हैं। बिहार में तो लालू यादव के चुनाव लड़ने वाले परिजनों की बढ़ती सूची ने आइएनडीआइए पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। चिराग पासवान की पहचान रामविलास पासवान का बेटा होना भी है। रामविलास स्वजनों और रिश्तेदारों को राजनीति में लाने से नहीं चूके। यह कैसा सामाजिक न्याय है, जो परिवार से आगे नहीं देख पाता?

राजस्थान में भी वंशवाद में किसी ने कसर नहीं छोड़ी है। भाजपा एक परिवार में एक टिकट के तर्क के सहारे अपने परिवारवाद का बचाव करती है, लेकिन विधायक विश्वनाथ सिंह की पत्नी को राजसमंद से लोकसभा टिकट दिया गया है। जयपुर शहर में भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद बेटी उम्मीदवार है। कभी तीसरी धारा की राजनीति के बड़े चेहरे रहे नाथूराम मिर्धा की पौत्री ज्योति मिर्धा भाजपा के टिकट पर नागौर से चुनाव मैदान में हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह झालावाड़ से फिर चुनाव लड़ रहे हैं।

कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे शीशराम ओला के बेटे बृजेंद्र झुंझुनू से चुनाव लड़ रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव जालोर-सिरोही से मैदान में हैं। झालावाड़-बारा सीट पर पूर्व मंत्री प्रमोद जैन की पत्नी उर्मिला उम्मीदवार हैं। मध्य प्रदेश में पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कमल नाथ के बेटे नकुल नाथ फिर छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में हैं तो सीधी से पूर्व मंत्री इंद्रजीत पटेल के बेटे कमलेश्वर चुनाव लड़ रहे हैं। विधायक अभय मिश्रा की पत्नी नीलम रीवा से उम्मीदवार हैं।

हिमाचल प्रदेश के मंडी में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य को उतारा है। हमीरपुर से भाजपा प्रत्याशी अनुराग ठाकुर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं तो चंडीगढ़ से उम्मीदवार संजय टंडन भी पंजाब के पूर्व मंत्री बलरामजी दास टंडन के बेटे हैं। दिल्ली में बांसुरी स्वराज को सुषमा स्वराज की बेटी के नाते ही भाजपा का टिकट मिला है। हरियाणा में रतनलाल कटारिया के निधन के बाद उनकी पत्नी बंतो को अंबाला से टिकट दिया गया।

बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी माने जा रहे भतीजे अभिषेक डायमंड हार्बर से चुनाव लड़ रहे हैं तो सुवेंदु अधिकारी के भाई सौमेंदु अधिकारी कांथी से भाजपा उम्मीदवार हैं। महाराष्ट्र में खुद वंशवाद के सहारे आगे आए उप मुख्यमंत्री अजित पवार अब पत्नी सुनेत्रा को भी चुनाव लड़ाने जा रहे हैं तो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का बेटा भी फिर चुनाव लड़ रहा है। भाजपा उम्मीदवारों में पीयूष गोयल, रक्षा खडसे, पंकजा मुंडे, सुजय विखे पाटिल समेत अनेक नाम परिवारवाद की ही देन हैं।

कर्नाटक में कांग्रेस ने कम से कम नौ मंत्रियों समेत दर्जन भर नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट दिया है, जिसे मुख्यमंत्री सिद्दरमैया जनता की मांग बता रहे हैं। मल्लिकार्जुन खरगे अपने बेटे प्रियांक के कर्नाटक में मंत्री होने के बावजूद दामाद राधाकृष्ण को गुलबर्गा से चुनाव लड़ाने का मोह नहीं छोड़ पाए। उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के भाई सुरेश बेंगलुरु ग्रामीण से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा ने अपने बेटे को टिकट न मिलने पर पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे बीवाई राघवेंद्र के विरुद्ध निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है।

येदियुरप्पा के दूसरे बेटे बीवाई विजयेंद्र विधायक के साथ-साथ कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष भी हैं। भाजपा ने दावणगेरे से पूर्व केंद्रीय मंत्री जीएम सिद्धेश्वर का टिकट काट कर उनकी पत्नी गायत्री को दे दिया। लोकसभा चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई के बेटे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के बेटे पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और पौत्र प्राज्वल रेवण्णा अपनी पार्टी जद (एस) के उम्मीदवार हैं, तो बेंगलुरु ग्रामीण सीट पर देवेगौड़ा के दामाद सीएन मंजूनाथ भाजपा के। यह सूची लंबी है।

वंशवाद के पोषक तर्क देते हैं कि आखिरकार तो जनता ही चुनती है, पर वे यह नहीं बताते कि दशकों तक काम करने वाले कार्यकर्ताओं से पद और टिकट की बाजी नेता का परिजन कैसे मार ले जाता है? यह अध्ययन वंशवाद को बेनकाब करनेवाला है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 30 प्रतिशत सदस्य राजनीतिक परिवारों से रहे। दलों और राज्यों की दृष्टि से भी ज्यादा फर्क नहीं दिखता। मसलन कांग्रेस ने 31 प्रतिशत टिकट वंशवाद के चलते दिए, तो भाजपा में यह प्रतिशत 21 रहा। महिला सशक्तीकरण के नाम पर भी राजनीतिक परिवारों की महिलाएं ही लाभार्थी बन रही हैं। सपा, टीडीपी, द्रमुक और बीआरएस जैसे दलों में तो सौ प्रतिशत ऐसा ही होता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)