सतीश सिंह। एयर इंडिया के निजीकरण की तैयारी चल रही है। इसकी 76 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदने के लिए इंडिगो अकेले बोली लगा सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि टाटा संस सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर बोली लगा सकती है। एयर इंडिया की स्थापना टाटा संस लिमिटेड की एक इकाई के रूप में हुई थी। 1946 तक इसका संचालन टाटा एयरलाइंस ही कर रही थी जो बाद में सार्वजनिक क्षेत्र की लिमिटेड कंपनी बन गई। एक समय विमानन कंपनियों में एयर इंडिया की हैसियत महाराजा की थी। अब सरकार मान रही है कि एयर इंडिया के कायाकल्प का एक मात्र विकल्प निजीकरण है। इसका पुनर्जन्म असंभव है, लेकिन क्या यह संकल्पना सही है। पूर्व में घाटे में चलने के कारण अनेक निजी कंपनियों का विलय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में किया जा चुका है। इंडियन एयरलाइंस के विलय के वक्त एयर इंडिया 100 करोड़ रुपये के लाभ में थी, लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण यह घाटे में आ गई। अनियमितता, गलत प्रबंधन और अंदरूनी गड़बड़ियों के कारण एयर इंडिया की स्थिति खराब होती गई है।

जानबूझकर घाटे की तरफ धकेली गई एयर इंडिया
अदालत में दायर एक जनहित याचिका के मुताबिक 2004-08 के दौरान विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गए, करोड़ों रुपये खर्च करके विमान पट्टे पर लिए गए एवं निजी विमानन कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए फायदे वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया की उड़ानों को जानबूझकर बंद कर दिया गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी अपनी रिपोर्ट में इन अनियमितताओं की पुष्टि की है। दरअसल निजी विमानन कंपनियों को लाभ पहुंचाने वाली नीतियों व एयर इंडिया में व्याप्त कुप्रबंधन के कारण घरेलू मैदान में इंडिगो, स्पाइसजेट और जेट एयरवेज की जेटलाइट ने कमाई में एयर इंडिया से बढ़त हासिल कर ली हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी घरेलू विमानन कंपनी जेट एयरवेज एयर इंडिया को कड़ी टक्कर दे रही है। विदेशी विमानन कंपनियों में लुफ्तहंसा समूह, ब्रिटिश एयरवेज, केएलएम इत्यादि से भी इसको कड़ी चुनौती मिल रही है।

बार-बार की हड़ताल से भी हुई हालत खराब
देखा जाए तो विमानन कंपनियों की आय का जरिया यात्री किराया होता है एवं व्यय के मद हैं- ईंधन, रख-रखाव और मानव संसाधन। यात्रियों को लुभाने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जा सकता है। यात्री किराया में कमी करना भी एक अच्छा विकल्प माना जाता है। त्योहारों में या रूटों के हिसाब से या पीक सीजन के अनुसार एयर इंडिया अपने बेसिक किराये में कमी करके या सौगात देने वाली योजनाओं के माध्यम से यात्रियों को लुभा सकती है। कम किराये की भरपाई विमानों के अधिक फेरे लगा कर की जा सकती है। प्रतिबद्ध तथा गुणवत्तापूर्ण सेवा के द्वारा भी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। मानव संसाधन के स्तर पर असंतुलन होने के कारण पायलट आए दिन हड़ताल करते हैं। उनके रोष का प्रमुख कारण है-इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के बीच हुए विलय के उपरांत उनके वेतन, भत्ते एवं प्रोन्नति से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं किया जाना। वार्ता एवं खुले दृष्टिकोण से इस समस्या का हल निकाला जा सकता है।

फायदे में आ सकती है एयर इंडिया
हालांकि कुछ लोगों द्वारा एयर इंडिया के कायाकल्प की संभावना न्यून बताई जा रही है, लेकिन कुशल नेतृत्व एवं संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से यह कंपनी पूर्व में भी लाभ में आई है। अगर सरकार चाहे तो यह फिर से मुनाफे में आ सकती है। भारतीय रेल में भी ऐसा करिश्मा हो चुका है। सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक कंपनियां फायदे में चल रही हैं। आज बैंक, बीमा और तेल क्षेत्र की सरकारी कंपनियां मुनाफे में हैं। इस तरह लाभ कमाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की एक लंबी फेहरिस्त है। अभी एयर इंडिया के पास दर्जनों बड़े और छोटे विमान हैं। इन विमानों में सीटों की संख्या 122 से 423 तक हैं। इस तरह देखा जाए तो एयर इंडिया के बेड़े में हर श्रेणी के विमान उपलब्ध हैं। 256 सीटों वाला ड्रीमलाइनर 10 से 13 घंटे बिना किसी परेशानी के उड़ान भर सकता है। इसका उपयोग करके एयर इंडिया ज्यादा लाभ कमा सकती है। इसके अलावा आधारभूत संरचना के मोर्चे पर भी एयर इंडिया निजी विमानन कंपनियों से बेहतर स्थिति में है।

ये उपाय आजमाए जा सकते हैं
जाहिर है विमानों के बुद्धिमतापूर्ण इस्तेमाल से एयर इंडिया के राजस्व में इजाफा किया जा सकता है। इसके लिए जिन मार्गों पर यात्रियों का आवागमन अधिक है, वहां एक से अधिक विमानों का उपयोग किया जाना चाहिए। वैसे विमानों का ज्यादा इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिसमें कम ईंधन की खपत होती हो। अभी विमानों का उपयोग तार्किक तरीके से नहीं किया जा रहा है। लंबी दूरी वाले विमानों का उपयोग मध्यम तथा छोटी दूरी वाले मार्गों में उड़ान भरने के लिए किया जा रहा है। बोइंग 777-200 एलआर लंबी दूरी तय करने वाला विमान है। यह लगातार 15 से 16 घंटों तक उड़ान भर सकता है, लेकिन अभी इसका इस्तेमाल मध्यम दूरी वाले स्थानों, जहां पहुंचने में केवल नौ से 10 घंटे लगते हैं, के लिए किया जा रहा है। विमानों के गलत इस्तेमाल से ईंधन की ज्यादा खपत होती है। वर्तमान में करीब 550-600 यात्री दिल्ली से सिडनी और मेलबर्न प्रति दिन यात्रा करते हैं। इस मार्ग पर भारत से कोई सीधी उड़ान नहीं है। इसलिए गंतव्य स्थान तक पहुंचने में यात्रियों को 25 से 35 घंटे लगते हैं। चीन एवं दक्षिण अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार विगत वर्षों में बढ़ा है। दोनों देशों के बीच यात्रियों की आवाजाही बढ़ी है। इन देशों के लिए एयर इंडिया अपनी उड़ान सेवा शुरू कर सकती है।

कायाकल्प नहीं, सरकार की दिलचस्पी निजीकरण
यूरोपीय देशों में भी एयर इंडिया की उपस्थिति नगण्य है। इसका दायरा फिलवक्त फ्रैंकफर्ट, पेरिस और लंदन तक सीमित है। ड्रीमलाइनर की बदौलत एयर इंडिया अपना दायरा ब्रसेल्स, मिलान, रोम आदि देशों तक बढ़ा सकती है। साफ है एयर इंडिया की बदहाली के लिए मूल रूप से नेता और नौकरशाह जिम्मेदार हैं, परंतु योजनाबद्ध तरीके से काम करके इसकी स्थिति सुधारी जा सकती है, लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार की दिलचस्पी एयर इंडिया के कायापलट से ज्यादा उसके निजीकरण में है।

लेखक: मुख्य प्रबंधक, आर्थिक अनुसंधान विभाग, एसबीआइ