[प्रमोद भार्गव]। मनुष्य को सुरुचिपूर्ण जीवन देने के लिए उन्नत विज्ञान की चाह में हरेक देश इस कोशिश में है कि उसके उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित हो जाएं। इनकी बढ़ती संख्या और बेकार हो चुके उपग्रह अंतरिक्ष में कबाड़ का सबब भी बन रहे हैं। इन्हें जब प्रक्षेपास्त्र से नष्ट किया जाता है, तो ये लाखों टुकड़ों में बदलकर तेज गति से अंतरिक्ष में ही घूमते रहते हैं। अंतरिक्ष में कबाड़ के रूप में 17 करोड़ टुकड़े गतिशील हैं, जो किसी भी वक्त सक्रिय उपग्रह से टकराकर उन्हें नष्ट कर सकते हैं।

अंतरिक्ष विशेषज्ञों के अनुसार पुराने रॉकेट और बेकार हो चुके उपग्रहों का मलबा तेजी से पृथ्वी की कक्षा में घूमता है। यह जल्दी ही वातावरण की ऊपरी सतह को बेकार कर सकता है। वर्तमान में पृथ्वी की इस कक्षा में 3,000 से भी ज्यादा उपग्रह चलायमान हैं। यह मानव समाज के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि इनके जरिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की सतत जानकारी तो ली ही जा रही है, संचार व्यवस्था भी इन्हीं उपग्रहों से संचालित होती है। इनसे रक्षा के क्षेत्र में निगरानी भी की जाती है। भारत ने अंतरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने की प्रौद्योगिकी हासिल की है, तब से वह भी इस व्यापार से करोड़ों डॉलर कमा रहा है। ऑस्ट्रेलिया में अंतरिक्ष पर्यावरण शोध केंद्र का कहना है कि अंतरिक्ष में इतना मलबा इकट्ठा हो गया है कि उनके परस्पर टकराने से यह कबाड़ एक सेंटीमीटर तक के टुकड़ों में परिवर्तित होता जा रहा है। नतीजन यह आशंका बन रही है कि यह खतरनाक अंतरिक्ष कबाड़ चक्कर लगा रहे सभी उपग्रहों को कहीं नष्ट न कर दे? अंतरिक्ष कबाड़ के 17 करोड़ टुकड़ों में से फिलहाल सिर्फ 22,000 टुकड़ों को ही सूचीबद्ध किया जा सका है।

 

नासा के मुताबिक मलबे के पांच लाख से भी ज्यादा टुकड़े या स्पेस जंक पृथ्वी की कक्षा में 17,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रहे हैं। यह मलबा इतना शक्तिशाली है कि इसका एक छोटा सा टुकड़ा भी किसी उपग्रह या अंतरिक्ष यान को क्षतिग्रस्त करने के लिए सक्षम है। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को भी इन टुकड़ों से बचकर निकलना होता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अंतरिक्ष में मलबा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है और इसे जल्दी नहीं हटाया गया तो इससे भविष्य में अंतरिक्ष यान और उपयोगी उपग्रह नष्ट हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो अंतरिक्ष अभियानों पर भी प्रतिबंध लगाना जरूरी हो जाएगा। दूसरी तरफ अमेरिकी खगोल विज्ञानियों ने एक सर्वेक्षण करके बताया है कि अंतरिक्ष से प्रत्येक वर्ष एक हजार टन कबाड़ धरती पर गिरता है। इसकी ठीक से पहचान नहीं हो पा रही है। अंतरिक्ष का यह कबाड़ प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव निर्मित भी।

अंतरिक्ष में मलबे का ढेर लगने से छोटी- मोटी घटनाओं से परे कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष में कचरे का अंबार लगा दिया है। वर्ष 2007 में चीन ने एक साथ बड़ी मात्रा में अपने उपग्रह भेद कर अंतरिक्ष में कबाड़ एकत्रित कर दिया था। चीन ने इसी साल उपग्रह भेदी मिसाइल बनाकर उसका परीक्षण करने के लिए अपने ही बेकार हो चुके उपग्रह नष्ट किए थे। मौसम की जानकारी देने वाले एक व्यर्थ हो चुके उपग्रह के तो करीब डेढ़ लाख टुकड़े कर दिए थे। इस कबाड़ का प्रत्येक टुकड़ा एक सेंटीमीटर के बराबर है। कालांतर में यह कचरा न केवल अंतरिक्ष अभियानों को संकट में डालेगा, बल्कि धरती पर भी यह कचरा आफत का सबब बन सकता है। बेकार उपग्रह और यान कभी भी धरती पर गिर सकते हैं। वर्ष 2016 में छह टन वजनी एक उपग्रह पृथ्वी पर गिरा था। इससे पहले 1989 में 100 टन वजनी स्काइलैब उपग्रह हिंद महासागर में और 2001 में रूस का स्पेस स्टेशन मीर दक्षिणी महासागर में गिरा था।

हालांकि अब तक अंतरिक्ष अभियान के इतिहास में यह संतोष की बात है कि इन कबाड़ों के धरती या समुद्र में गिरने से कोई मानवीय क्षति नहीं हुई है। इसका कारण है कि ज्यादातर कचरा धरती पर पहुंचने से पहले ही जलकर खाक हो जाता है। बावजूद जान-माल की हानि की आशंकाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हैं कि अंतरिक्ष से जो कबाड़ धरती की ओर गिरते हैं, उन्हें फिर से वायुमंडल में वापस पहुंचा दिया जाए। इस नाते स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने ‘क्लीन स्पेस वन’ नामक उपग्रह के निर्माण की घोषणा की है। इसका निर्माण स्विस स्पेस सेंटर द्वारा किया जा रहा है। इस पर करीब 1.1 करोड़ डॉलर खर्च आएगा। इसे तीन से लेकर पांच साल के भीतर तैयार करके प्रयोग किया जाएगा।

इन वैज्ञानिकों का कहना है कि 10 सेंटीमीटर से बड़े आकार के 16,000 और इससे छोटे टुकड़े लाखों की संख्या में पृथ्वी के आस-पास चक्कर लगा रहे हैं। इस सफाई उपग्रह का आविष्कार होने के बाद सबसे पहले दो स्विस उपग्रहों को पकड़ने के लिए भेजा जाएगा। ये उपग्रह 2009 और 2010 में अंतरिक्ष में छोड़े गए थे, जो अब निष्क्रिय अवस्था में पड़े हैं। बहरहाल अंतरिक्ष में बढ़ता कबाड़ धरती के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है।
[वरिष्ठ पत्रकार]