[ राजीव सचान ]: राजधानी दिल्ली के नारायणा इलाके में बीते शुक्रवार को एक संदिग्ध चोर की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। उसे मोबाइल चोरी के आरोप में कुछ लोगों ने पकड़ा और फिर एक पार्क में पेड़ से बांधकर लोहे की छड़ और डंडों से इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। हालांकि एक शख्स ने इस संदिग्ध चोर की पिटाई करने वालों को रोका, लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी। वे गुस्से में थे, क्योंकि इस संदिग्ध चोर का साथी मोबाइल लेकर भाग गया था। यह घटना पुलिस थाने से चंद कदमों की दूरी पर हुई। पुलिस इस संदिग्ध चोर को मरणासन्न हालत में अस्पताल ले गई, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। बाद में पुलिस ने उसकी हत्या के आरोप में मुश्ताक, सिराज, अनीस और इश्तिहार नामक चार युवकों को गिरफ्तार किया। चूंकि देश में इस तरह की घटनाएं होती ही रहती हैं इसलिए इस घटना पर ध्यान नहीं दिया गया। अगले दिन संदिग्ध चोर की पिटाई से मौत की खबर दिल्ली के अखबारों में छपी और दो दिन बाद सब भूल गए कि कहां क्या हुआ था? इस घटना का कोई वीडियो भी नहीं था, इसलिए टीवी चैनलों ने भी उसकी कोई सुध नहीं ली।

दिल्ली में चोर हुआ भीड़ की हिंसा का शिकार

आखिर इतने बड़े देश में एक संदिग्ध चोर की मौत पर कौन आंसू बहाता है? यह संदिग्ध चोर पहले भी तीन-चार बार चोरी के आरोप में जेल जा चुका था। वह कुछ दिन पहले ही जेल से बाहर आया था। सहज ही इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि वह चोर ही था, क्योंकि उसकी पत्नी का कहना है कि पास-पड़ोस में जब कहीं चोरी होती थी तो पुलिस उसे पकड़ कर ले जाती थी। जैसे यह एक संदिग्ध चोर था वैसे ही झारखंड के सरायकेला का तबरेज अंसारी भी था। दोनों अभागे थे और दोनों भीड़ की हिंसा का शिकार हुए। तबरेज को खंभे से बांधकर पीटा गया था। उसे मोटरसाइकिल की चोरी के आरोप में लोगों ने पकड़ लिया था, लेकिन तबरेज की मौत की खबर हफ्तों तक चर्चा और बहस का विषय बनी रही।

देश में बढ़ती असहिष्णुता का जीता जागता सुबूत 

उसकी मौत को भारत में बढ़ती असहिष्णुता का एक और सुबूत भी माना गया और भीड़ की हिंसा के बढ़ते सिलसिले का परिचायक भी। उसकी पिटाई का वीडियो खूब वायरल हुआ। इस वीडियो के मुताबिक उसे पीटने वाली भीड़ ने उससे जय श्रीराम कहने को कहा था। चूंकि उन दिनों झारखंड में भाजपा सरकार थी इसलिए वह तो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया के निशाने पर आई ही, केंद्र सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया गया-इस हद तक कि प्रधानमंत्री को संसद में बयान देना पड़ा। विपक्ष और खासकर कांग्रेस और वामपंथी नेता प्रधानमंत्री के बयान के बाद भी संतुष्ट नहीं हुए। असदुद्दीन ओवैसी तो बिल्कुल नहीं हुए। उन्होंने लोकसभा में झारखंड सरकार को भी कोसा और मोदी सरकार को भी। बाद में रांची दौरे के दौरान उन्होंने तबरेज की पत्नी से मुलाकात कर हरसंभव सहायता देने की बात कही। राहुल गांधी ने तबरेज की मौत को मानवता पर धब्बा बताया और आइआइएम बेंगलुरु के छात्रों एवं शिक्षकों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर झारखंड पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए। तबरेज की मौत पर देश के साथ विदेशी अखबारों में ऐसे लेख लिखे जाते रहे कि क्या प्रधानमंत्री मोदी यह सुनिश्चित करेंगे कि फिर कभी कोई तबरेज भीड़ की हिंसा का शिकार न हो?

भारत में भीड़ की हिंसा खतरनाक रूप ले रही, अंग्रेजी अखबारों ने तबरेज की मौत पर किए थे पन्ने काले

अंग्रेजी अखबारों ने तबरेज की मौत पर खासतौर से पन्ने काले किए। उनकी ओर से इस पर चिंता और क्षोभ व्यक्त किया जाता रहा कि भारत में भीड़ की हिंसा और वह भी सांप्रदायिक किस्म की हिंसा खतरनाक रूप ले रही है। तबरेज की मौत का संज्ञान न्यूयार्क टाइम्स के साथ बीबीसी ने भी लिया और विकिपीडिया ने भी। कुल मिलाकर देश में खबरों से दो-चार रहने वाला शायद ही कोई नागरिक हो जिसे यह पता न हो कि तबरेज कौन था और उसके साथ क्या हुआ? जो खबरों के जरिये परिचित नहीं हो सके वे विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से हो गए। दिल्ली के साथ देश के अन्य हिस्सों में हुए इन विरोध प्रदर्शनों के जरिये कहा गया था कि हिंदुस्तान को ‘लिंचिस्तान’ बनाया जा रहा है।

भीड़ की हिंसा का शिकार तबरेज का मामला अब भी चर्चा में है

भले ही चार दिन पहले भीड़ की हिंसा का शिकार हुए संदिग्ध चोर के बारे में देश तो क्या, पूरी दिल्ली भी अवगत न हो, लेकिन तबरेज का मामला अब भी चर्चा में है। तबरेज की पत्नी ने इसी 18 अगस्त को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर पति की हत्या की जांच सीबीआइ से कराने के साथ अपने लिए 25 लाख रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी मांगी है। इस आशय की खबर को दक्षिण भारत के अखबारों ने भी महत्व दिया है।

दिल्ली में मारे गए संदिग्ध चोर की कोई चर्चा नहीं

दिल्ली में मारे गए संदिग्ध चोर को लेकर शायद ही भूले से भी कोई चर्चा हो रही हो। हो भी क्यों? उसकी मौत से सेक्युलरिज्म, सहिष्णुता वगैरह को तो कोई खतरा ही नहीं। शायद यह खतरा तब पैदा किया जाता और असहिष्णुता भी तभी बढ़ती दिखती जब राहुल की जगह कोई तबरेज भीड़ की हिंसा का शिकार होता है। दिल्ली में पीट-पीटकर मारे गए संदिग्ध चोर का नाम राहुल था। कल्पना करें और यह अवश्य करें कि अगर राहुल की बजाय रहीम या रईस भीड़ की हिंसा का शिकार हुआ होता और उसे पीटने वाले दूसरे समुदाय के होते तो अब तक आसमान किस हद तक सिर पर उठाया जा चुका होता?

सेक्युलरिज्म मक्कारी और ढोंग का पर्याय बन गया

दरअसल इसीलिए सेक्युलरिज्म मक्कारी और ढोंग का पर्याय बन गया है, लेकिन चिंता की बात केवल यह नहीं कि सेक्युलरिज्म पर ढोंग बहुत होने लगा है। चिंता की बात यह है कि कानून अपना काम सही तरह नहीं करता। देश की राजधानी में भीड़ की हिंसा में किसी की और यहां तक कि एक चोर की भी जान जाना उतनी ही खतरनाक बात है जितनी सरायकेला में थी। यह इसके बाद भी है कि असहिष्णुता का शोर नहीं मचाया जा रहा है।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं )