[कैलाश बिश्नोई]। Data Protection Bill 2019: हाल के वर्षों में इंटरनेट के उपयोग में व्यापक बढ़ोतरी हुई है। इससे डाटा चोरी की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इसलिए सरकार देश में पहली बार डाटा संरक्षण कानून लाने जा रही है। भारतीय अर्थव्यस्था का जिस तरह से डिजिटलीकरण हो रहा है और पूरी दुनिया में डाटा की सुरक्षा को सशक्तीकरण, प्रगति और नवाचार की कुंजी माना जाने लगा है, उससे यह विधेयक काफी महत्वपूर्ण है।

डाटा प्रोटेक्शन विधेयक में डाटा के स्थानीय भंडारण पर बल दिया गया है। इसके लिए देश भर में कई डाटा केंद्र बनाने होंगे। इसके माध्यम से देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक इकोसिस्टम बन पाएगा और रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।

कंपनियों पर सख्ती बढ़ाने की बात

निजी डाटा संरक्षण विधेयक में निजी डाटा की चोरी करने वाली कंपनियों पर सख्ती बढ़ाने की बात कही गई है। नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर 15 करोड़ रुपये या वैश्विक कारोबार के चार फीसद तक के जुर्माने के साथ ही जेल का प्राविधान है। अगर उल्लंघन का मामला छोटा है तो पांच करोड़ रुपये या वैश्विक कारोबार का दो फीसद तक जुर्माना लगाया जा सकता है। इन सब नियमों के कारण फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों को भारत में ही सूचनाओं को संग्रहित और संसाधित करने हेतु बाध्य किया जा सकता है।

डाटा स्थानीयकरण को बढ़ावा

अभी भारतीयों का डाटा प्राप्त करने के लिए भारत और अमेरिका के बीच म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटीज (एमएलएटी) की व्यवस्था है जिस पर अमेरिकी कंपनियों का नियंत्रण है। परंतु डाटा सुरक्षा कानून लाकर केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर डाटा स्थानीयकरण को बढ़ावा देना चाहती है जिससे विदेशों से होने वाली जासूसी आदि को रोका जा सके। ऐसी उम्मीद है कि इस विधेयक से कंपनियां देश में ही डाटा प्रोसेसिंग करने को प्रोत्साहित होंगी और भारत दुनिया की सबसे बड़ा डाटा रिफाइनरी का केंद्र बन सकेगा।

डाटा प्रोटेक्शन के लिए कोई अलग कानून नहीं

डिजिटल अर्थव्यवस्था में डाटा को देश की संपत्ति के रूप में देखा जाने लगा है। ऐसे में भारत अपने नागरिकों को उन कंपनियों से बचाना चाहता है, जो डाटा के बदले सेवाएं प्रदान करती हैं जिससे उनके डाटा के दुरुपयोग की आशंका बढ़ जाती हैं। भारत में डाटा प्रोटेक्शन के लिए कोई अलग कानून नहीं है और ना ही कोई संस्था है जो डाटा की गोपनीयता को सुरक्षा प्रदान करती हो। हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा-43ए के तहत डाटा संरक्षण हेतु उचित दिशा-निर्देश दिए गए हैं, पर यह धारा नाममात्र का संरक्षण प्रदान करती है।

कौन डाटा से लाभ कमाता है?

असल में डाटा के संदर्भ में कई आयाम महत्वपूर्ण होते हैं, जैसे इसका संग्रह कहां होता है, इसे कहां भेजा जाता है, इसे कहां उपयोगी डाटा में बदला जाता है, डाटा तक किनकी पहुंच है, कौन डाटा से लाभ कमाता है? दरअसल एप्पल, गूगल, फेसबुक, ट्विटर एवं वाट्सएप जैसी कंपनियां व्यापार के माध्यम से बड़े पैमाने पर लाभ कमा रही हैं, परंतु भारत में इन कंपनियों के दफ्तर नहीं होने से उन पर भारत के कानून लागू नहीं होते।

अलग-अलग माध्यमों से साझा किए गए भारतीयों के डाटा को सुरक्षित रखे जाने पर बहस तेज हुई है। इसकी गंभीरता ‘क्या आपका डाटा निजी है’ से ‘आपका डाटा कितना निजी है’ तक बढ़ गई है। हाल के दिनों में सोशल साइट कंपनी वाट्सएप पर डाटा की सुरक्षा में लगी सेंध के बाद सरकार भी और सतर्क हो गई है। इस मामले को लेकर काफी बवाल भी मचा था।

सरकार निजता को गंभीरता से लेती है 

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि सरकार निजता को गंभीरता से लेती है और सूचना की गोपनीयता इसी का हिस्सा है। इससे पहले भी एक बार फेसबुक ने डाटा गोपनीयता की बात को स्वीकार किया था कि भारत के ही लगभग साढ़े पांच लाख उपभोक्ताओं के डाटा को कैंब्रिज एनालिटिका के साथ अनधिकृत तरीके से साझा किया गया। हमारे देश में फेसबुक का उपयोग करने वाले लगभग 24 करोड़ लोग हैं।

डाटा संरक्षण विधेयक को दोधारी तलवार की संज्ञा दे रहे

डाटा सुरक्षा के अभाव में इतने लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां दांव पर लगी हुई हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक एटीएम, डेबिट-क्रेडिट कार्ड, नेटबैंकिग में फर्जीवाड़ा होने की घटनाओं में हालिया वर्षों में तेजी आई है। इन घटनाओं का असर इंटरनेट के उपभोग की विश्वसनीयता पर पड़ रहा है। इसके अलावा चुनाव और नीति निर्धारण के संदर्भ में सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा भी इस प्रकार के डाटा में रुचि दिखाई जाती है। इसलिए डाटा संरक्षण को वैधानिकता प्रदान करना जरूरी हो चला है। हालांकि कई विशेषज्ञ डाटा संरक्षण विधेयक को दोधारी तलवार की संज्ञा दे रहे हैं, जिसमें एक तो भारतीयों के डाटा को सुरक्षित रखने की बात की गई है, वहीं दूसरी ओर यह केंद्र सरकार को रियायत देकर नागरिकों की निगरानी करने की मंज़ूरी देता है।

डेटा सेंटरों और डेटा प्रोसेसिंग के आधार

इसी तरह की चिंता कई नागरिक समाज संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी जाहिर की है, ऐसे में जरूरी है कि इस कानून को पारित करने से पहले सभी हितधारकों से विमर्श कर विधेयक में व्याप्त कमियों को दूर किया जाए। पूरी दुनिया में इस समय डाटा के प्रवाह (हस्तांतरण) पर बहस चल रही है और इसकी सुरक्षा से जुड़ी हुई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए विकसित और विकासशील देशों की सरकारें अपने घरेलू कानूनों को विकसित कर रही हैं। चीन ने अपने घरेलू  कानूनों को इस तरीके से विकसित किया है जो विदेशी कंपनियों को घरेलू बाजार में प्रवेश करने से ना केवल रोकती हैं, वरन डेटा सेंटरों और डेटा प्रोसेसिंग के आधार पर एक समृद्ध घरेलू अर्थव्यवस्था का संवर्धन करती हैं। यही कारण है कि कई भारतीय कंपनियां डाटा स्थानीयकरण का समर्थन करती हैं।

दूसरी तरफ यूरोपीय संघ ने भी डाटा सुरक्षा को लेकर कठोर कानून बनाया है। इसके साथ ही सभी देश वैश्विक मंचों पर एक-दूसरे के साथ बातचीत कर रहे हैं जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और गोपनीयता से जुड़े मूल्यों का संवर्धन हो सके। ऐसे में हमारे देश में इसे प्रभावी बनाने के लिए एक सशक्त नियमन ढांचा चाहिए। यह ऐसा हो, जो भले ही जटिल डिजिटल सेटअप वाला हो, जिसमें चाहे सहमति के लिए अनेक स्तर रखे जाएं, परंतु वह हमारे मूल अधिकारों की हर हाल में रक्षा करे। इसके अलावा हमें हमारे शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों को बिग डाटा साइंस और डाटा सेंटर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए।

[अध्येता, दिल्ली विश्वविद्यालय]