क्षमा शर्मा

हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर-प्रोड्यूसर हार्वे वीनस्टीन पर जिस तरह के आरोप बहुत सी मशहूर अभिनेत्रियों ने लगाए हैं उससे अमेरिका समेत हर देश के फिल्म जगत में तूफान सा आ गया है। अभिनेत्रियां और ग्लैमर की दुनिया से जुड़ी स्त्रियां अपने-अपने शोषण की कहानी बता रही हैं कि काम के बदले उन्हें किस-किस तरह के समझौते करने के लिए कहा जाता था। भारत में प्रियंका चोपड़ा, पूजा भट्ट और कई अन्य अभिनेत्रियों ने भी कहा है कि यहां बॉलीवुड में भी अनेक वीनस्टीन हैं। सोशल मीडिया में मी टू नाम से एक अभियान चल रहा है जिसमें हर क्षेत्र की महिलाएं अपने अनुभव बयान कर रही हैं। कुछ पुरुष भी यौन प्रताड़ना के अपने अनुभव को बयान कर रहे हैं। दस साल पहले अश्वेत महिला तराना बुर्के ने मी टू कैंपेन शुरू किया था।वह खुद यौन प्रताड़ना की शिकार रह चुकी हैं।

फिलहाल अभिनेत्री अलीशा मिलानो ने इसे शुरू किया और औरतों से अपने अनुभव साझा करने को कहा। सोशल मीडिया पर हॉलीवुड को रेपवुड नाम से भी पुकारा जा रहा है। हालांकि इस तरह के नामकरण पूरी इंडस्ट्री को बदनाम करते हैं, जबकि हॉलीवुड में हर एक तो ऐसा नहीं होगा। हॉलीवुड की जिन अभिनेत्रियों ने वीनस्टीन पर आरोप लगाए उनकी आलोचना भी हो रही है। बहुत सी महिलाएं कह रही हैं कि आरोप लगाने वाली इन अभिनेत्रियों में कुछ ऐसी हैं जिनकी फिल्मों में काम करने की उम्र निकल चुकी है। काम के दिनों में इन्होंने कभी मुंह नहीं खोला। अगर ये ऐसा करतीं तो हो सकता था, बहुत सी लड़कियां वीनस्टीन जैसे लोगों से बच जातीं। इनमें कई महिलाएं ऐसी भी हैं जो वीनस्टीन से भारी-भरकम मुआवजा पहले ही वसूल चुकी हैं। बॉलीवुड में इस तरह के किस्से गुपचुप कहे जाते हैं। अभिनेत्रियां कभी मुंह नहीं खोलतीं, क्योंकि न तू मेरी कह न मैं तेरी कहूं वाला किस्सा प्रसिद्धि के स्थानों पर बहुत चलता है।

अमेरिका में ही इन दिनों औरतें यह भी कह रही हैं कि एक तरफ जिन औरतों ने यौन प्रताड़ना के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखाई है वे मीडिया में बड़ी सेलिब्रिटी बनकर उभरी हैं वहीं दूसरी तरफ तमाम साधारण औरतों को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार सिलिकॉन वैली में बड़े अधिकारी आम महिलाओं और साथ ही महिला कर्मियों से मिलने से बच रहे हैं। वे मीटिंग्स का स्थान बदल रहे हैं। उच्च अधिकारी महिलाकर्मियों से मिलने और बातचीत करने के मामले में बेहद सावधान हो गए हैं। उन्हें भय है कि अगर एक भी आरोप लग गया, चाहे वह सच्चा हो या झूठा तो उनका कॅरियर और जीवन बर्बाद हो जाएगा।

कई लोग तो अब अपने साथ काम करने वाली महिलाओं से भी ज्यादा बात नहीं करते, बल्कि दूरी बनाकर रखते हैं। एक सर्वेक्षण में आधे से अधिक पुरुषों-महिलाओं का मानना है कि विपरीत लिंग से बात करते-मिलते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। एक अन्य सर्वेक्षण में 64 प्रतिशत उच्च अधिकारियों का मानना था कि वे औरतों से अकेले में नहीं मिलना चाहते। क्या पता कब कौन क्या आरोप लगा दे? अमेरिका में पुरुष जो महसूस कर रहे हैं वैसा ही कुछ अपने यहां भी देखने में आ रहा है। किसी महिला द्वारा एक आरोप लगाते ही मीडिया उसे लपक लेता है। उसके बाद बिना किसी जांच-पड़ताल के पुरुषों की छीछालेदर हो जाती है। उनकी सुनता भी कोई नहीं। पुलिस कहती है कि आधे से अधिक यौन प्रताड़ना और दुष्कर्म के आरोप झूठे भी होते हैं। जो मीडिया आरोप लगने पर पुरुषों को रात-दिन अपराधी की तरह दिखाता है वह आरोप मुक्त होने पर कभी उनकी सुध नहीं लेता।

अमेरिका में तमाम औरतें कह रही हैं कि कार्यस्थलों पर आदमियों और औरतों को इकट्ठे काम करना है। इसलिए उनके बीच भरोसा होना बहुत जरूरी है न कि एक-दूसरे पर संदेह और नफरत का भाव। अधिकांश उच्चपदों पर पुरुष बैठे हैं। अगर वे औरतों से मिलना ही नहीं चाहेंगे तो फिर औरतें आगे कैसे बढ़ेंगी? उनका प्रमोशन कैसे होगा? किस तरह वे कॅरियर में सफलता प्राप्त करेंगी? ऐसे सवाल तब हैं जब अमेरिका में यौन प्रताड़ना संबंधी कानून जेंडर न्यूट्रल है। वहां स्त्री की भांति पुरुष भी यौन प्रताड़ना की शिकायत कर सकते हैं, मगर अपने यहां तो कई कानून पुरुष को सिर्फ अपराधी मानकर चलते हैं।

कायदे से हमारे यहां भी हर कानून को जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए जिससे लैंगिक भेदभाव की कोई गुंजाइश ही न रहे। जो अपराधी हो उसे सजा मिले। ऐसा न हो कि हमारे यहां भी औरतें उसी चिंता में फंसें जिससे अमेरिकी औरतें जूझ रही हैं। वीनस्टीन के दफ्तर ने बयान दिया है कि उन्होंने जो कुछ किया सहमति से ही किया। हो सकता है कि यह बचाव का एक रास्ता हो। अगर काम के बदले उन्होंने औरतों के साथ अशोभनीय व्यवहार किया तो सजा जरूर मिलनी चाहिए, लेकिन अगर औरतें झूठे आरोप लगा रही हैं तो सजा उन्हें भी मिले जिससे कानून की निष्पक्षता और ताकत बनी रहे।

[लेखिका साहित्यकार एवं स्तंभकार हैं]