ज्ञानेंद्र रावत। बीते सप्ताह अरब सागर में उठे और केरल, कर्नाटक में कोहराम मचाते हुए टाक्टे नामक चक्रवाती तूफान ने महाराष्ट्र और गुजरात में भारी तबाही मचाई है। सौ किमी से अधिक की रफ्तार से चली हवाओं से सैकडो़ं पेड़ उखड़ कर गिर गए, उनके नीचे वाहन, इंसान और जीव-जंतु दब गए। यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ, हवाई सेवाएं ठप रहीं। एनडीआरएफ और सेना की टीम हर स्थिति का सामना करने को तैयार हैं।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार पश्चिमी विक्षोभ और तेज हवाओं की भयंकर गति का इसे भयावह बनाने में अहम योगदान है जिसने सात राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। ऐसे तूफानों का प्रमुख कारण समुद्र के गर्भ में मौसम की गर्मी से हवा के गर्म होने के चलते कम वायु दाब के क्षेत्र का निर्माण होना है। ऐसा होने पर गर्म हवा तेजी से ऊपर उठती है जो ऊपर की नमी से मिलकर संघनन से बादल बनाती है। इस वजह से बनी खाली जगह को भरने के लिए नम हवा तेजी से नीचे जाकर ऊपर उठकर आती है। जब हवा तेजी से उस क्षेत्र के चारों तरफ घूमती है, उस दशा में बने घने बादल बिजली के साथ मूसलाधार बारिश करते हैं। जलवायु परिवर्तन ने ऐसी स्थिति को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

दरअसल जलवायु परिवर्तन आज एक ऐसी अनसुलझी पहेली है जिससे हमारा देश ही नहीं, समूची दुनिया जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन और इससे पारिस्थितिकी में आए बदलाव के चलते जो अप्रत्याशित घटनाएं सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए इस बात की पूरी आशंका है कि इस सदी के अंत तक धरती का काफी हद तक स्वरूप ही बदल जाएगा। इस विनाश के लिए जल, जंगल और जमीन का अति दोहन जिम्मेवार है। बढ़ते तापमान ने इसमें अहम भूमिका निभायी है।

वैश्विक तापमान में यदि इसी तरह बढ़ोतरी जारी रही तो इस बात की चेतावनी तो दुनिया के शोध अध्ययन बहुत पहले ही दे चुके हैं कि आने वाले समय में भयानक तूफान आएंगे। सूखा और बाढ़ जैसी घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी होगी। इतना ही नहीं, धरती का एक चौथाई हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा। दुनिया में भयंकर सूखा पड़ेगा। परिणामत: दुनिया का 20 से 30 फीसद हिस्सा सूखे का शिकार होगा। इससे दुनिया के 150 करोड़ लोग सीधे प्रभावित होंगे। इसका सीधा असर खाद्यान्न, प्राकृतिक संसाधन और पेयजल पर पड़ेगा। नतीजतन आदमी का जीना मुहाल हो जाएगा। इसके चलते अधिसंख्य आबादी वाले इलाके खाद्यान्न की समस्या के चलते खाली हो जाएंगे और बहुसंख्य आबादी ठंडे प्रदेशों की ओर कूच करने को बाध्य होगी। जिस तेजी से जमीन अपने गुण खोती चली जा रही है उसे देखते हुए अनुपजाऊ जमीन ढाई गुणा से भी अधिक बढ़ जाएगी। इससे बरसों से सूखे का सामना कर रहे देश के 630 जिलों में से 233 को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ेगा। यानी देश में पहले से जारी सूखे के संकट में और इजाफा होगा। निष्कर्षत: बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए खेती के अलावा दूसरे संसाधनों पर निर्भरता बढ़ जाएगी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि ऐसी स्थिति में जल संकट बढ़ेगा। बीमारियां बढेंगी, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आएगी, ध्रुवों की बर्फ पिघलेगी, नतीजतन दुनिया के कई देश पानी में डूब जाएंगे। समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा और समुद्र किनारे के सैकड़ों की तादाद में बसे नगर-महानगर जलमग्न तो होंगे ही, तकरीबन बीस लाख से ज्यादा की तादाद में प्रजातियां सदा के लिए खत्म हो जाएंगी। जीवन के आधार रहे खाद्य पदार्थों के पोषक तत्व कम हो जाएंगे। कहने का तात्पर्य यह कि उनका स्वाद ही खत्म हो जाएगा। खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले विटामिंस की कमी इसका जीता जागता सबूत है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी और उससे उपजी जलवायु परिवर्तन की ही समस्या का परिणाम है कि आर्कटिक महासागर की बर्फ हर दशक में 13 फीसद की दर से पिघल रही है, जो अब केवल तीन-चार मीटर की ही परत बची है, यदि वह भी खत्म हो गई तब क्या होगा?

समस्या यह है कि हम अपने सामने के खतरे को जानबूझकर नजरअंदाज करते जा रहे हैं, जबकि हम भलीभांति जानते हैं कि इसका दुष्परिणाम क्या होगा? यह भी कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मौसम के रौद्र रूप ने पूरी दुनिया को तबाही के कगार पर ला ख़डा किया है। डेढ़ लाख से ज्यादा लोग दुनिया में समय से पहले बाढ़, तूफान और प्रदूषण के चलते मौत के मुंह में चले जाते हैं। बीमारियों से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी हर साल ढाई लाख से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। कारण जलवायु परिवर्तन से मनुष्य को उसके अनुरूप ढालने की क्षमता को हम काफी पीछे छोड़ चुके हैं। महासागरों का तापमान उच्चतम स्तर पर है। करीब डेढ़ सौ साल पहले की तुलना में समुद्र अब एक चौथाई अम्लीय है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी जिस पर अरबों लोग निर्भर हैं, भीषण खतरा पैदा हो गया है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सरकारों ने इन मामलों को गंभीरता से नहीं लिया है। वे विकास को पर्यावरण का आधार बनाना ही नहीं चाहतीं। वर्तमान में यह दुर्दशा प्रकृति और मानव के विलगाव की ही परिणति है।

[वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद]