[ ज्ञान चतुर्वेदी ]: एक होता है गऊ आदमी। वह होता तो नहीं, पर सब तरफ गऊ कहलाता है। सब उसकी तारीफ करते हैं। कहते हैं कि फलाने साहब बडे़ गऊ आदमी हैं। नहीं, वह दूध नहीं देता है। कभी दे भी पाता तो भी किसी को न देता। वह किसी को कुछ भी देने का हिमायती नहीं। उसके पास दूध होता तो वह खुद पी डालता, पर वह दुधारू न होने के बावजूद गऊ है। वैसे उसे गऊ कहना भी अर्धसत्य है। उसमें गऊ नहीं, बछड़ा तत्व प्रबल है। व्यवस्था के थन पर उसकी सतत नजर बनी रहती है। वह हरदम इसी जुगाड़ में रहता है कि व्यवस्था के थन कहां हैं? सभी दुधारू मामलों पर उसकी नजर रहती है। सरकारी दफ्तरों की कायदे से टोह लेता है। जी हुजूरी में अव्वल। लोग मानते हैं कि गऊमाता टाइप आदमी है। चुप खड़ा रहता है। बार-बार नमस्कार करता है। जी-जी में लगा रहता है। सब उसकी चुप्पी के कायल हैं। वह गाय बनकर व्यवस्था के थनों के नीचे अपना बर्तन लगाए रहता है।

पावर होते हुए भी पावरविहीन

वह छोटे पद पर है। वह बहुत बड़ी जगह बैठा है। वह कहीं किसी पद पर नहीं। पर वह जहां है, गऊ आदमी के तौर पर मशहूर है। मान लें कि एक बड़ा अधिकारी है और वह गऊ भी है। वह बडे़ पद पर है। बड़ी पावर है उसके पास, पर वह किसी के विरुद्ध कुछ नहीं करता। पैने सींग हैं, पर सिर झुकाए रहता है। सब कहते हैं कि गऊ है बेचारा। यह सुनकर कतई बुरा नहीं मानता, बल्कि संतोष महसूस करता है। सब उसे गऊ मानें-यही तो वह चाहता भी है। गऊ होना उसकी रणनीति है। हथियार है। वह गऊ रहकर अपना काम निकालता रहता है। खूब आदर भी है। वैसे भी भारत में गऊ माता की पूजा होती है। आदमी होने के खतरों को भी वह बखूबी समझता है। गऊ टाइप बनने के फायदों से भी बखूबी वाकिफ है। वह जानता है कि समाज गोभक्तों का है।

व्यवस्था की मंडी सांडों के कब्जे में

एक बार आप गऊ माता टाइप व्यक्तित्व बना लो तो लोग पूजा न भी करें, मगर डंडा नहीं मारते। गऊ आदमी को पता है कि व्यवस्था की मंडी सांडों के कब्जे में है। इसीलिए वह पता करके रखता है कि स्थानीय समाज के सांड कौन हैं? व्यवस्था के सांडों और उसके बीच एक अलिखित समझौता है। गऊ को नियमित चारा और सानी मिलती रहे, उसे सांडों से एतराज नहीं। वैसे, गऊ आदमी, इस मामले में गऊ से थोड़ा अलग है कि उसकी नजर चारे पर भी है और दूध पर भी। इधर सांडों को भी हर कुर्सी पर ऐसे ही गऊ आदमी चाहिए जो अपना चारा लें और उन्हें व्यवस्था के थन से बराबर दूध निचोड़ने दें। समझौता हो जाता है और बढ़िया चलता भी है।

हां सबको, काम किसी का नहीं

गऊ आदमी ईश्वर का डर रखता है। सभी का बराबर आदर करता है। किसी को भी किसी काम के लिए मना नहीं करता और बाद में आत्मीय दुख के साथ यह भी बताता है कि काम क्यों नहीं हो पाया? वह हर काम के लिए हां कह देता है। ‘हो जाएगा’ उसकी स्थाई टेक है। सबको हां बोलता है, करता किसी का काम नहीं। हां, जो चढ़ावा चढ़ा दे, उस पर जरूर कृपा कर देता है। जो न दे उससे भी ऐसी मीठी हां बोलता है कि फाइल में चींटियां चलने लगती हैं। इसी के चलते, काम न होने पर भी लोग उसे कुछ नहीं कह पाते। गऊ आदमी है। आप चिल्ला सकते नहीं। उसे गालियां दो तो स्वयं को ही पाप लगेगा। लोग वहां आ जाएंगे। लानतें देंगे कि आप ऐसे सीधे, गऊ आदमी से कैसी बात कर रहे हो?

फाइल गऊ आदमी के पास अटकी

गऊ आदमी प्राय: अकेला बैठा दिखेगा, पर वह अकेला नहीं। जुगाली के साथ है। जुगाड़ की जुगाली कर रहा है। बड़ी कुर्सी पर। आपकी फाइल पर। महत्वपूर्ण निर्णयों को रोके हुए। फाइलों पर कुंडली मारे हुए। काम रुका पड़ा है, पर सभी मजबूर हैं। कहते हैं कि फाइल गऊ आदमी के पास अटकी हुई है। एक बार आप गऊ आदमी होने की कला साध लें तो फिर आपसे कोई कुछ नहीं कह पाता। आपके विरुद्ध कोई कुछ नहीं करता। कोई आपसे नहीं भिड़ता। बड़े-बड़े ट्रक, बड़बड़ाते हुए, कच्चे में उतरकर बगल से निकल जाते हैं। क्या करें? सड़क पर कब्जा है गऊ आदमी का। वह सुरक्षित है। जानता है कि बड़ा ही धर्मभीरू सिस्टम है उसके चारों तरफ। गऊ के कब्जे को अब यहां सामाजिक और वैधानिक सी स्वीकृति है। व्यवस्था पर गऊ आदमियों के कब्जे को स्वीकार किया जा चुका है।

रिश्वत देना प्रसाद चढ़ानहीं के बराबर है

कृपया हॉर्न न बजाएं। शिकायत न करें। फाइल पर बैठे गऊ आदमी का रोना न रोएं। उसे प्रणाम करें। ऐसों को रिश्वत देना प्रसाद चढ़ाना कहलाता है, व्यवस्था में। प्रसाद की व्यवस्था करें। चढ़ाते रहें। पुण्य कमाते रहें!

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]