डॉ. यूसुफ अख्तर। कॉर्बेवैक्स एक ‘रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन सब-यूनिट’ टीका है जिसका अर्थ है कि यह कोरोनावायरस के एक विशिष्ट भाग यानी विषाणु की सतह पर पाई जाने वाली स्पाइक प्रोटीन से बना है। जैसा कि विदित है, स्पाइक प्रोटीन वायरस को हमारे शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने में मदद करती है। इसके बाद यह मानव कोशिकाओं के अंदर अपनी संख्या को निरंतर बढ़ाते हुए हमारे शरीर में बीमारी पैदा करता है। यह प्रोटीन टीके के रूप में शरीर में इंजेक्शन के जरिए दिया जाएगा तो इसके हानिकारक होने की उम्मीद कम है, क्योंकि ये अकेला प्रोटीन बिना वायरस के अन्य भागों के लिए रोगजनक नहीं हो सकता है।

इस प्रकार से इंजेक्शन में दिए गए स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ शरीर में एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित होने की उम्मीद है। इसलिए जब असली विषाणु शरीर को संक्रमित करने का प्रयास करेगा, तो शरीर में पहले से ही एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया तैयार होगी जिससे व्यक्ति के गंभीर रूप से बीमार पड़ने की आशंका नहीं होगी। यद्यपि इस तकनीक का उपयोग दशकों से हेपेटाइटिस-बी के टीके बनाने के लिए किया जाता रहा है। फिर भी कॉर्बेवैक्स इस तकनीक का उपयोग करने वाले पहले कोविड टीकों में से एक होगा। इसी तकनीक पर आधारित नोवावैक्स इस कंपनी का बनाया हुआ टीका अभी भी विभिन्न नियामकों से आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण की स्वीकृत की प्रतीक्षा कर रहा है। जबकि कॉर्बेवैक्स स्वदेशी रूप से उत्पादित होगा।

कॉर्बेवैक्स टीके पर शोध अमेरिका के बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में हुआ था। वहां के वैज्ञानिक एक दशक से दूसरे कोरोना वायरस सार्स और मर्स के लिए रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन वाले टीकों पर काम कर रहे थे। वहां के प्रोफेसर और संकाय अध्यक्ष डॉ पीटर होटेज का कहना है, ‘हम उच्च स्तर की दक्षता के साथ कोरोना वायरस के लिए एक रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन (वाला टीका) बनाने के लिए आवश्यक सभी तकनीकों को जानते थे।’ जब फरवरी 2020 में कोरोना वायरस का आनुवंशिक अनुक्रम उपलब्ध कराया गया, तो वहां के शोधकर्ताओं ने स्पाइक प्रोटीन को कोड करने वाले जीन के अनुक्रम को निकाला और इसके बाद इसकी क्लोनिंग और इंजीनियरिंग पर काम किया। इसके बाद जीन को खमीर की कोशिका में डाल दिया गया, ताकि वह स्पाइक प्रोटीन अणु की प्रतियां बना सके और जारी कर सके।

जैव-प्रौद्योगिकी में यह प्रोटीन की तेजी से प्रतिलिपियां बनाने का एक प्रचलित तरीका है। इस टीके को बनाने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल सस्ता है और आसानी से मिलने वाला है। अगस्त 2020 में बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन ने इस टीके के थोक उत्पादन के लिए भारतीय कंपनी बायोलॉजिकल-ई से समझौता कर लिया और इसका फार्मूला एवं प्रारंभिक सामग्री दे दी, ताकि हैदराबाद की कंपनी इसका नैदानिक परीक्षण भारत में करा कर इसके उत्पादन कार्य को आगे बढ़ा सके। अब इस टीके के तीसरे चरण के परीक्षणों को मंजूरी मिल गई है, जिसके जुलाई तक खत्म हो जाने की उम्मीद है।

कॉर्बेवैक्स एम-आरएनए और एडेनो वायरस विषाणु वेक्टर वाले टीके कोविड टीकों की तरह केवल स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करता है, लेकिन इसको बनाने की क्रिया और इसकी कार्यप्रणाली बिल्कुल अलग है। इसमें शुद्ध किया हुआ स्पाइक प्रोटीन इंजेक्शन से सीधे मनुष्य को दिया जाता है, जबकि अन्य टीकों में ऐसे आनुवांशिक अवयव एम-आरएनए एवं डीएनए दिए जाते हैं जो हमारे शरीर में अंदर जाकर स्पाइक प्रोटीन का उत्पादन करते हैं। अधिकांश अन्य कोविड टीकों की तरह कॉर्बेवैक्स को दो खुराक में दिया जाता है। चूंकि इसे कम लागत वाली तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है, इसलिए यह देश में उपलब्ध सबसे सस्ता टीका साबित होने वाला है। भारत सरकार के विशालतम टीकाकरण कार्यक्रम में यह पहली बार है, जब सरकार ने एक टीके पर विश्वास करके फटाफट करार किया है जिसे आपातकालीन उपयोग के लिए अभी-अभी स्वीकृत किया गया है। इस करार के लिए 1,500 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान भी किया है जिससे 15 करोड़ नागरिकों को टीका लगाया जा सकता है। इस प्रकार से सरकार के मौजूदा करार के मुताबिक कॉर्बेवैक्स का टीका प्रति डोज 50 रुपये की लागत पर मिल जाएगा। केंद्र सरकार इस टीके के त्वरित विकास के लिए प्रमुख प्री-क्लिनिकल और क्लिनिकल परीक्षणों में सहायता भी प्रदान कर रही है, इसमें सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से 100 करोड़ रुपये की सहायता अनुदान राशि भी प्रदान की गई है।

बायोलॉजिकल-ई की स्थापना डॉ डीवीके राजू ने वर्ष 1953 में एक जैविक उत्पाद कंपनी के रूप में की थी। वर्ष 1962 तक इसने बड़े पैमाने पर डीपीटी टीकों का उत्पादन करते हुए टीकों के क्षेत्र में प्रवेश किया। इसके टीकों की आपूर्ति 100 से अधिक देशों को की जाती है और इसने पिछले 10 वर्षों में ही दुनिया भर में दो अरब से अधिक खुराकों की आपूर्ति की है। भारत सरकार द्वारा इतना कोविड टीके का बड़ा ऑर्डर देने की वजह टीकाकरण की आपूर्ति बढ़ाने में हो रही मुश्किलें हैं। जबकि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने फाइजर, एस्ट्राजेनेका और मॉडर्ना जैसे टीकों में अग्रिम भुगतान और जोखिम वाले निवेश किए थे, भारत सरकार ने सीमित ऑर्डर देने से पहले भारत में दोनों टीकों को नैदानिक परीक्षण की आधिकारिक मंजूरी मिलने तक इंतजार किया। हमारे देश को दिसंबर तक कोविड के टीकों की 200 करोड़ खुराक तक सुरक्षित करना होगा। इस लक्ष्य को देखते हुए कॉर्बेवैक्स इस अपेक्षित आपूर्ति का एक बड़े हिस्से का उत्पादन कर सकेगा। इस प्रकार से ये करार ऐतिहासिक है और भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को भी पूरा करता नजर आता है।

[असिस्टेंट प्रोफेसर, बायोटेक्नोलॉजी विभाग, बीबी आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ]