प्रो ज्ञानेश्वर चौबे। कोरोना वायरस भले ही पूरी दुनिया में चीन से फैला, मगर इसकी उत्पत्ति नैर्सिगक थी या मानव जनित, यह बहस जारी है। निरंतर रंग बदल रहे इस वायरस के सच की कहानी डेढ़ साल बाद भी रहस्यमय है। शुरू से ही इस मामले में चीन का असहयोगी और आरोप लगाने वाला रवैया संदेह को बढ़ाता है। महामारी के शुरुआती दिनों में चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के विज्ञानियों की जांच टीम को अपने देश में प्रवेश देने से रोक दिया और जरूरी सूचनाएं हमेशा के लिए दफन कर दीं। चीन के एक विज्ञानी प्रो. झांग यांगझेन ने वायरस के जीनोम को ऑनलाइन पेश करना चाहा, तो उनकी प्रयोगशाला पर ही ताला लगा दिया गया।

फिलहाल इस वायरस की उत्पत्ति के तीन प्रमुख सिद्धांत अस्तित्व में हैं। पहला, यह प्रयोगशाला में बना जैविक युद्ध का हथियार है। दूसरा, वुहान की वायरोलाजी लैब से लीक मानव निर्मित वायरस है और तीसरा एक चमगादड़ से वुहान के मीट मार्केट के जरिये इंसानों तक पहुंचा है। विभिन्न शोधों के बाद आज वायरस के मानव निर्मित होने की आशंका पर भ्रम बरकरार है। लगभग 17 महीने बाद वायरस के सेलेक्टिव एडवांटेज (प्राकृतिक विकास के आधार पर एक दिए गए परिवेश में किसी जीव की विशेषता उसे दूसरे जीव के मुकाबले जीवित रहने और बेहतर प्रजनन में सक्षम बनाती है) को देखें तो लगता नहीं कि यह किसी प्रयोगशाला की खुराफात का परिणाम था। ऐसा इसलिए, क्योंकि लैब निर्मित सूक्ष्मजीवों का हमारे इतने विविधतापूर्ण पर्यावरण में जीवित रहना दुर्लभ है। विज्ञान अभी इतना विकसित नहीं हुआ कि प्रयोगशाला में कुछ ऐसा निर्मित कर दे, जो प्रकृति में भी सुगमता से रह सके। इसलिए इस वायरस को लैब में विकसित करने वाले सिद्धांत का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं बनता।

डब्ल्यूएचओ की 313 पेज की पहली रिपोर्ट में इस वायरस के वुहान की लैब से लीक होने की बात भी महज चार पन्नों में सिमट कर रह गई थी। इन चार पन्नों ने भी डब्ल्यूएचओ की जांच पर सवाल खड़े कर दिए थे। जांच टीम को वुहान के मीट मार्केट के 188 जानवरों के सैंपल में कोरोना वायरस नहीं मिला। वहीं दूसरी ओर, जीनोमिक सिक्वेंसिंग में वुहान के कई संक्रमण के मामले इस मार्केट से अलग म्यूटेशन दिखाते हैं। यानी वायरस पहले से इस कम्युनिटी में मौजूद था। इसलिए रिपोर्ट के मुताबिक वुहान का सीफूड मार्केट वायरस की उत्पत्ति का स्रोत न होकर सुपर स्प्रेडर बना। रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि लैब से वायरस के लीक होने की संभावना न के बराबर है। इसे जांचने के लिए वुहान लैब के विज्ञानियों का एंटीबाडी टेस्ट भी किया गया। उनके नतीजे निगेटिव आए थे। हालांकि वायरस के लैब से लीक होने और एंटीबाडी टेस्ट कराने के बीच में एक साल से ज्यादा का अंतराल था। हाल के शोधों में यह बात साफ हो चुकी है कि छह माह के बाद ज्यादातर लोगों में एंटीबाडी नहीं रह जाती। इस तरह डब्ल्यूएचओ की जांच में कोरोना वायरस की उत्पत्ति का सिद्धांत उलझ कर रह गया है।

डब्ल्यूएचओ ने एक महत्वपूर्ण तथ्य की अनदेखी की है कि यह वायरस चीनी वंशजों से संबधित लोगों पर कम और यूरोप से संबंधित वंशजों पर ज्यादा हमलावर क्यों है? रिपोर्ट पर डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ने टिप्पणी की थी कि वायरस के लैब से लीक होने की आशंका पर पर्याप्त शोध नहीं किया गया है। उन्होंने इसके लिए अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराने की पेशकश भी की है। चीन ने वायरस को जिस तरह सिर्फ वुहान तक सीमित रखा और डब्ल्यूएचओ की टीम को शुरू में आने की इजाजत ही नहीं दी, इससे साफ है कि वहां की सरकार पारदर्शिता नहीं बरत रही है। इस कारण वायरस की उत्पत्ति की कहानी अधर में लटकी हुई है।

[जीन विज्ञानी, जंतु विज्ञान विभाग, बीएचयू]