अनंत मित्तल। कोरोना महामारी ने एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को एकीकृत इकाई बताने वाले सरकारी दावों को खोखला साबित कर दिया है। सवा लाख से अधिक महामारी पीड़ितों की तकलीफ झेल रहे एनसीआर में इससे मुकाबले की अभी तक समन्वित रणनीति नहीं बनी, जबकि इसके निवासियों को आजीविका के लिए नियमित एक से दूसरे शहर आना-जाना पड़ता है। कुल 43,374 किमी क्षेत्रफल के बूते एनसीआर की परिकल्पना देश की राजधानी दिल्ली पर संभावित आबादी का बोझ घटाने के लिए 1962 में दिल्ली के पहले मास्टर प्लान में की गई।

एनसीआर में शामिल राज्यों उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के बीच समन्वय का जिम्मा एनसीआर नियोजन बोर्ड पर है। इसकी वजह से गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद बड़े आर्थिक केंद्रों में विकसित हो चुके। इसके बावजूद एनसीआर में शामिल राज्य सरकारों ने आपसी सहकार पर लगातार चोट की। कोविड-19 महामारी की रोकथाम में भी उनकी खींचतान ने एनसीआर के झोल बेनकाब कर दिए। इससे एनसीआर के मेहनतकश बाशिंदे ऐसे फुटबॉल बने कि वो खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

दिल्ली की तरह एनसीआर के अन्य शहरों में भी महामारी पीड़ित सरकारी मदद के मोहताज हैं, लेकिन प्रशासनों के बीच लापता समन्वय ने उनकी तकलीफ बढ़ा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी जब समन्वयहीनता और घोर प्रशासनिक लापरवाही पर आंखें तरेरीं, मीडिया ने लोगों की परेशानी उछाली तथा राजनीतिक नुकसान की भनक लगी, तब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने समन्वय की कमान संभाली। यह बात दीगर है कि इससे पिछले तीन महीने में हैरान हुए एनसीआर के करीब तीन करोड़ बाशिंदों द्वारा झेले गए तनाव, आर्थिक नुकसान और निराशा की भरपाई नहीं हो सकती। फिर भी देर आयद दुरूस्त आयद की तर्ज पर केंद्रीय गृहमंत्री ने दिल्ली और आसपास के राज्यों में तेजी से फैलती महामारी से बिगड़ते हालात पर जुलाई के आरंभ में दिल्ली-एनसीआर राज्यों की बैठक की। बैठक में अमित शाह एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा चारों राज्यों के मुख्य सचिव शामिल हुए। उन्होंने एनसीआर के घुले-मिले स्वरूप के मद्देनजर राज्य प्रशासनों के बीच समुचित समन्वय पर जोर दिया और एनसीआर में रैपिड एंटीजन टेस्ट शुरू करने को कहा।

इस बीच नोएडा में क्वारंटाइन संबंधी मनमाने नियम लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी प्रशासन से भी जवाब-तलब किया जा चुका है। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने एनसीआर में महामारी से निपटने के समन्वित उपाय करने की भी हिदायत जब सरकार को दी तभी केंद्रीय गृह सचिव ने संबद्ध राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बीती नौ जून को बैठक की। खींचतान फिर भी जारी है। कभी हरियाणा ने तो कभी उत्तर प्रदेश ने महामारी की रोकथाम के नाम पर दिल्ली आवाजाही पर रोक लगा कर अपनी सीमा सील की तो कभी दिल्ली की सरकार ने पड़ोसी शहरों के लिए अपनी सीमा बंद कर दी। बहरहाल गृहमंत्री ने दिल्ली एवं आसपास 169 केंद्रों पर नई टैस्टिंग तकनीक रैपिड एंटीजन टेस्ट के जरिये छह लाख लोगों की जांच करने की मंशा जताई है। उन्होंने एनसीआर के अन्य राज्यों से भी महामारी से निपटने को समन्वित रणनीति के लिए अपने यहां उपलब्ध टेस्टिंग सुविधा, वेंटीलेटर, एंबुलेंस, अस्पताल के बिस्तरों और मेडिकल स्टाफ की सूचना देने को कहा है।

इसके आधार पर गृह मंत्रालय 15 जुलाई के बाद एनसीआर में महामारी के विरुद्ध समन्वित रणनीति बनाने में मदद करेगा। इसके तहत महामारी के इलाज संबंधी दिल्ली में निर्धारित पैमानों को एनसीआर के अन्य शहरों में भी अपनाया जा सकता है। दिल्ली में भी गृहमंत्री ने तब दखल किया जब महामारी बेकाबू होने लगी। जब सोशल मीडिया पर महामारी ग्रस्त लोगों अथवा उनके रिश्तेदारों के निराशा भरे वीडियो नुमाया होने लगे कि अस्पताल दर अस्पताल ठोकरें खाने के बावजूद पीड़ितों को इलाज नहीं मिल रहा तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के अस्पतालों को दिल्लीवालों के लिए रिजर्व करने का दांव खेला। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने अस्पताल तत्काल सबके लिए खोल दिए, मगर बीजेपी समझ गई कि दिल्ली में इलाज सुविधाओं की कमी का सारा दोष केंद्र सरकार के मत्थे मढ़ जाएगा।

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जुलाई के अंत तक दिल्ली में महामारी पीड़ितों की संख्या साढ़े पांच लाख पहुंचने और उनके इलाज के लिए 80 हजार बेड की जरूरत पड़ने का बयान देकर गुगली मार दी। इसके अगले ही दिन गृहमंत्री अमित शाह ने अस्पताल दौरे से लेकर केंद्र व दिल्ली सरकार और नगर निगमों की समन्वय समिति बनाकर बैठक की। छतरपुर में प्रस्तावित दस हजार बिस्तरों वाले अस्थाई अस्पताल में दो हजार बिस्तर केंद्र ने आइटीबीपी की मदद से आनन फानन मरीजों के लिए तैयार किए मगर दिल्ली की सरकारी एजंसियों में तालमेल नहीं बैठ पाया। महामारी पीड़ितों की संख्या राजधानी में कुलांचे भर रही है। नगर निगमों द्वारा महामारी पीड़ित के घर पर नोटिस चस्पा करके उस बस्ती को सील तो फटाफट किया जा रहा है, मगर मरीज को देखने उसके प्रभारी डॉक्टर कभी नहीं जाते।

बहरहाल पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों ने दिल्ली से सटी अपनी सीमा सील करके दिल्ली को दूध-सब्जी की सप्लाई जिस तरह रोकी उससे उसके एक भारत-श्रेष्ठ भारत के नारे पर उंगली उठी है। महामारी पीड़ितों की संख्या में एनसीआर में ताजा उछाल के मद्देनजर कम से कम अब तो इसके राज्य प्रशासनों के बीच तालमेल बैठाना जरूरी है। एनसीआर में समन्वय का सबसे मीठा फल मेट्रो रेल फिलहाल बंद है, मगर एनसीआर के बाशिंदों की जिंदगी पर उसके सकारात्मक असर से राज्यों के प्रशासन आपसी तालमेल का सबक जरूर ले सकते हैं।

[वरिष्ठ पत्रकार]