अलका आर्य। कोरोना वायरस महामारी के कारण बेशक देश भर में स्कूल बीते चार महीने से बंद हैं, लेकिन फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) यानी भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकारण ने हाल ही में स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य को सुधारने की दिशा में एक रेगुलेशन यानी नियमन तैयार किया है। इस रेगुलेशन के तहत स्कूल के गेट से 50 मीटर के दायरे में बच्चों को कोल्ड ड्रिंक्स, चिप्स, छोले भूटरे, पिज्जा, बर्गर, पकौड़े आदि बेचना अपराध समझा जाएगा। बिक्री के अलावा ऐसे पदार्थों का प्रचार भी अपराध माना जाएगा।

देश के भविष्य को एक सेहतमंद जिंदगी प्रदान करने की है: इसके उल्लघंन पर फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड एक्ट के तहत जुर्माना या जेल भी हो सकती है। इसके अलावा अब स्कूल कैंटीन चलाने के लिए लाइसेंस लेना होगा। गौरतलब है कि भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या को लेकर भारत सरकार बहुत ही गंभीर है और उसकी कोशिश मुल्क के बच्चों यानी देश के भविष्य को एक सेहतमंद जिंदगी प्रदान करने की है, ताकि वे राष्ट्र पर निर्भर ना रहकर आत्मनिर्भर बन सकें और देश की आर्थिक तरक्की में अपनी ओर से सक्रिय योगदान दे सकें।

कोविड-19 के संकट ने बच्चों के लिए पोषण संबंधी सेवाओं और कार्यक्रमों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। चिकित्सा विज्ञान की प्रसिद्ध -द लांसेट- में हाल ही में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार कोविड-19 महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के चलते चालू वर्ष में ही यानी 2020 में विश्व में पांच साल की कम आयु के करीब 67 लाख अतिरिक्त बच्चे कुपोषित हो सकते हैं और इन बच्चों का वजन उनके कद के अनुपात में बहुत कम होगा।

2025 तक छह वैश्विक पोषण संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने पर सहमति: वर्ष 2012 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने मातृ-नवजात व छोटे बच्चों के पोषण के लिए समग्र प्लान को लागू करने संबंधी एक रेजोलुशन को अनुमोदित किया जिसमें 2025 तक छह वैश्विक पोषण संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने पर सहमति बनी और इन छह लक्ष्यों में कद के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालना भी शमिल है। बाल्यावस्था में इस तरह के कुपोषण को झेलने वाले बच्चों की तादाद कम करके पांच प्रतिशत से नीचे लाना तथा उस स्तर को बनाए रखना है। लेकिन मौजूदा महामारी ने इस लक्ष्य को हासिल करने की राइ में कई बाधाएं खड़ी कर दी हैं।

पोषक तत्वों और प्रोटीन का सेवन करने को लेकर जागरूकता: संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने आगाह किया है कि केवल ऐसे बच्चों की ही संख्या में इजाफा नहीं होगा, बल्कि बच्चों और महिलाओं में अन्य प्रकार के कुपोषण भी बढ़ेगे। इसमें नाटापन, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, वजन का अधिक होना व मोटापा भी शमिल है। इसके पीछे खराब खुराक व पोषण संबंधी सेवाओं का बाधित होना भी है। जहां तक भारत की बात है तो कई अध्ययन इस ओर इशारा करते हैं कि इस मुल्क में लोगों में पोषक तत्वों और प्रोटीन का सेवन करने को लेकर जागरूकता का अभाव है।

हाल ही में नील्सन ने देश के 16 शहरों में 2,142 माताओं का सर्वे किया था। इस सर्वे में हिस्सा लेने वाली 85 फीसद माताओं का मानना है कि प्रोटीन से वजन बढ़ता है और उन्होंने कहा कि वे अपने परिवारों और बच्चों के लिए विटामिन और कार्बोहाइड्रेट्स के सेवन को प्रोटीन से अधिक प्राथमिकता देंगे। जबकि इंडियन मार्केटिंग रिसर्च ब्यूरो द्वारा कई शहरों में कराए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में 10 में से सात लोगों में प्रोटीन की कमी है।

इस मामले में चिंताजनक यह कि करीब 93 प्रतिशत भारतीयों को प्रोटीन की अपनी दैनिक जरूरत के बारे में पता ही नहीं है। 10 से 15 साल के 45 प्रतिशत बच्चों में भी प्रोटीन की कमी है। प्रोटीन की कमी दशकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक बहुत बड़ी चिंता है। मुल्क में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए डैनोन इंडिया के सहयोग से 2017 से प्रोटीन वीक भी मनाया जाता है जिसका मकसद भारतीयों को प्रोटीन के महत्व के बारे में शिक्षित करना और भोजन की स्वस्थ पद्धतियों और सक्रिय जीवनशैली के बारे में प्रोत्साहित करना है।

जैसाकि कोरोना को हराने के लिए मजबूत इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने पर भी अधिक बल दिया जा रहा है और समय-समय पर सरकार की ओर से जारी एडवाजरी में भी काढ़ा पीने, ताजी सब्जियों व फलों का सेवन करने की सलाह बराबर लोगों को दी जा रही है। एक बात गौर करने लायक है कि आम लोग रोजाना जो डाइट ले रहे हैं, उसमें इम्यून सिस्टम को मजबूत करने वाले पोषक तत्व हैं या नहीं, यह पता लगाना कठिन है। लेकिन इस संबंध में कई संगठनों द्वारा देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, जिससे निश्चित तौर पर व्यापक आबादी को फायदा होगा। बहुत से संगठन अपनी ओर से वंचित आबादी तक इन सामग्रियों को पहंचा भी रहे हैं, जिससे गरीब व जरूरतंद लोग लाभान्वित होंगे।

दरअसल कोविड-19 ने दुनिया को न्यू नार्मल अपनाने की दिशा में तो मोड़ ही दिया, साथ ही सरकारों को स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने व उनमें निवेश करने पर गंभीरता से सोचने को विवश कर दिया है। इस दिशा में भारत सरकार भी प्रयासरत है। ब्रिटिश सरकार ने तो लोगों को स्वस्थ रखने के लिए बड़ी मुहिम शुरू कर दी है। इसके तहत ब्रिटिश सरकार लोगों को फिट रहने में मदद करेगी। इसमें कई ऐसे उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए जाने की बात कही गई है, जो सेहतमंद नहीं हैं। हमारे देश में भी खानपान के संदर्भ में बहुत बदलाव लाने की आवश्यकता है।

[सामाजिक मामलों की जानकार]