डॉ. शिव कुमार राय। COVID-19 Outbreak हमारा पूरा तंत्र अंदर से खोखला है और अगर समय रहते इसे नहीं सुधारा गया तो कभी कोई महामारी तो कभी कोई प्राकृतिक आपदा, हमारी तबाही की कहानी लिखती रहेगी। देश में कभी योजना आयोग था, अब नीति आयोग बन गया, नाम बदला लेकिन इन इमारतों में बैठकर देश की तरक्की के लिए बौद्धिक उछलकूद करने वालों में ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें देश की बुनियादी समस्याओं की समझ नहीं है। ये लोग आंकड़ों का पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन बनाने में माहिर हैं, लेकिन जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं और ऐसे लोगों की तथाकथित दूरदर्शिता का दुष्परिणाम देश भुगत रहा है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि 2014 के बाद देश की राजनीति में आए एक बड़े परिवर्तन के बाद आम जनमानस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सकारात्मक बदलाव को महसूस किया। नए भारत के निर्माण को लेकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के उठाए गए कदमों पर लोगों ने भरोसा जताया। बिना घोटाले की पांच साल की मोदी सरकार के कार्यकाल के लेखा जोखा ने लोगों को यह तसल्ली दिलाई कि एक मजबूत इरादे के साथ देश में सकारात्मक बदलाव संभव है। जनता के इसी भरोसे की वजह से 2019 में देश का जनमानस मोदी सरकार के साथ खड़ा दिखाई दिया। वर्ष 2014 के बाद एक बड़े राजनीतिक बदलाव के बीच नए भारत के निर्माण की शुरूआत का देश साक्षी बना, कहीं गांव और शहरों को जोड़ने वाली देश की सड़कों के विस्तार पर विकास की नई इबारत लिखना शुरू हुई तो कहीं गांवों को बिजली र इंटरनेट से जोड़े जाने पर तेजी से काम होता दिखाई दिया।

प्रधानमंत्री आवास के माध्यम से गरीब के सिर पर छत मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो कहीं गरीब की रसोई में गैस सिलेंडर पहुंचाने का लक्ष्य हासिल किया गया। खुले में शौच से देश को मुक्ति दिलाने के लिए हर घर में शौचालय तैयार हुए तो देश में स्वच्छता को लेकर एक आंदोलन खड़ा हो गया जिसने देश के गांव और शहरों में स्वच्छता को लेकर एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत किसानों के खाते में हर साल छह हजार रुपये की राशि के अलावा सरकार ने खेती किसानी के क्षेत्र में कई बड़े सकारात्मक कदम भी उठाए। अब केंद्र सरकार ने ‘हर घर में नल’ का लक्ष्य अपने हाथ में लिया है और इस दिशा में तेजी से काम होता दिखाई दे रहा है। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने जैसा ऐतिहासिक निर्णय हो, कश्मीर में सकारात्मक बदलाव की मौजूदा पहल हो, राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर उठाए गए कदम हों या फिर आतंकवाद पर कसी नकेल, ऐसे तमाम कदमों ने हर भारतीय के मन में सशक्त राष्ट्र की कल्पना को साकार किया है।

आपदा में अवसर : अब सवाल यह उठता है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के मन में जब उम्मीद की नई किरण जगना शुरू हुई है और हर भारतीय के मन में अब सशक्त राष्ट्र की कल्पना साकार होते दिख रही है तो एक फिर एक महामारी के बाद केंद्र से लेकर राज्यों तक फैला हमारा समूचा तंत्र स्वयं क्यों बीमार दिखाई देने लगा है? आखिर देश के हर राज्य में हमारी समूची स्वास्थ्य व्यवस्था क्यों धराशायी हो गई? चारों तरफ चीख पुकार मची है, सरकारें मौत के आंकड़ों पर पर्दा डाल रही हैं। एक साल का वक्त मिलने के बाद भी केंद्र और राज्य मिलकर इस बीमारी से निपटने के लिए प्रभावी कदम क्यों नहीं उठा सके?

मार्च 2020 में कोरोना की दस्तक के बाद लंबे समय के लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को भले ही नुकसान पहुंचाया, लेकिन उस वक्त इस बीमारी से निपटने को लेकर हम तैयार नहीं थे। लॉकडाउन ने न केवल केंद्र और राज्य सरकार को इस तैयारी से निपटने के लिए एक अवसर दिया, बल्कि महामारी के संक्रमण को रोकने में भी मदद मिली। केंद्र और राज्यों ने अपने अपने स्तर पर कोरोना से निपटने के लिए कुछ कदम भी उठाए। अगर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की बात करें तो जहां इस तरह के वायरस की जांच के लिए पहले सिर्फ एक लैब थी, जो अब बढ़कर 2,400 से ज्यादा हो गई हैं। जीवन रक्षक दवाओं के उत्पादन से लेकर वेंटीलेटर की व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार ने पहल की। देश में कई जगह आइसोलेशन सेंटर बनाए गए। एन 95 मास्क और पीपीई किट तैयार किए जाने लगे। केंद्र सरकार ने इमरजेंसी कोविड रिस्पांस के लिए 15 हजार करोड़ रुपये के साथ ही 2021-22 के बजट में वैक्सीनेशन के लिए 35 हजार करोड़ रुपये भी दिए। सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बॉयोटक के लिए फंड आवटित किया। इसके साथ ही 2,084 अस्पतालों को कोविड के इलाज के लिए तैयार किया गया और कोविड मरीजों के लिए 4,68,974 आइसोलेशन बेड तैयार किए गए।

केंद्र और राज्य ने कोरोना को लेकर अगर कई कदम उठाए तो फिर चूक कहां हुई? दरअसल कोरोना के मुश्किल हालात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आपदा में अवसर’ का उल्लेख कर लोगों को सकारात्मक रहकर कुछ बेहतर करने का संदेश दिया था, लेकिन राज्य सरकारों से जुड़े कई विभाग, दवा उद्योग से जुड़ी कई कंपनियां, ड्रग माफियाओं और निजी अस्पतालों समेत कई लोगों ने ‘आपदा में अवसर’ के मायने कुछ और ही निकाल लिए। कई राज्यों ने निजी अस्पतालों को कोविड इलाज का सेंटर बना दिया, राज्य सरकारों ने दरियादिली दिखाते हुए सभी लोगों की मुफ्त कोरोना जांच और इलाज का ऐलान कर दिया। बहुत सारे प्रदेशों में निजी अस्पतालों के साथ हुई इस साठगांठ से आम जनता भी भली भांति परिचित है। पिछले साल कोरोना की जांच और उसके इलाज के नाम पर राज्य सरकारों ने निजी अस्पताल को कितना भुगतान किया है, यह भी जांच का विषय है।

जब कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका, इटली और फ्रांस जैसे कई उदाहरण हमारे सामने थे तो पिछले एक साल में केंद्र और राज्य सरकारों ने आक्सीजन को लेकर तत्काल कदम क्यों नहीं उठाए? आंकड़े बताते हैं कि योग, आयुर्वेद, होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा की मदद से देश में कई लोगों ने कोरोना पर जीत हासिल की है, लेकिन ड्रग माफियाओं ने सुनियोजित तरीके से इसको लेकर भ्रांतियां फैलाने का काम भी किया। चिंता इस बात को लेकर भी है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने आयुर्वेद को एक मजबूत विकल्प के तौर पर बढ़ावा क्यों नहीं दिया?

भारत के मौजूदा हालात को देखते हुए केंद्र सरकार को यह समझना होगा कि चिकित्सा व्यवस्था, सार्वजनिक परिवहन और शिक्षा जैसे कई अहम क्षेत्रों में सरकारी क्षेत्र से जुड़ी संस्थाएं समाप्त नहीं हो, बल्कि इनकी गुणवत्ता में व्यापक सुधार किया जाए, ताकि लोग ब्रांड बन कर मुनाफाखोरी में जुटे किसी अस्पताल में जाने की बजाय सरकारी अस्पतालों को प्राथमिकता दें। इन सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर अव्यवस्था न हो, लेकिन यहां काम करने वाले चिकित्सकों को अधिक से अधिक वेतन और सम्मान हो। इसके साथ ही, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी मंत्री, सांसद या विधायक इनका तबादला नहीं कर सके या करवा सके। सरकारी तंत्र और बेपरवाह जनप्रतिनिधि कोरोना के आरंभिक दौर में लॉकडाउन को लेकर भले ही कुछ लोगों ने नाराजगी जताई थी, लेकिन इस वायरस के संक्रमण को रोकने में यह उस वक्त कारगर उपाय साबित हुआ था, जब हमारे पास इस बीमारी से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं थी। केंद्र और राज्यों ने इस बीमारी को हराने के लिए अपने स्तर पर प्रयास किए, लेकिन कोरोना फिर लौटेगा, सुनामी बनकर आएगा, ऐसी तमाम चेतावनी की केंद्र और राज्य सरकारों ने पूरी तरह अनदेखी की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राष्ट्रीय संबोधन में ‘दो गज दूरी और मास्क है जरूरी’ का जिक्र करते रहे, लेकिन स्वयं सरकार में बैठे लोगों ने ही इसकी अनदेखी करनी शुरू कर दी। सत्ता और विपक्ष में बैठे लोगों को मानो कोरोना वायरस से कोई भय नहीं था, यही वजह थी कि बिहार विधानसभा चुनाव से लेकर बंगाल, असम और केरल विधानसभा के चुनाव में दो गज दूरी, मास्क है जरूरी, जैसे दिशा-निर्देशों की धज्जियां हर राजनीतिक दल ने उड़ाई। नए कृषि कानूनों का विरोध करने वालों की भीड़ हो या फिर कुंभ में लोगों का जमावड़ा, एक ही स्थान पर हजारों की भीड़ को देखकर आम जनता यह मानने लगी कि कोरोना समाप्त हो गया। कुछ लोग यह कहकर भी वायरस को कमजोर बताते रहे कि भारत के लोगों का इम्यून सिस्टम बहुत मजबूत है, यहां कोरोना किसी का कुछ नहीं बिगाड़ेगा। जब कोरोना वैक्सीन पर देश को बड़ी कामयाबी मिली तो उसका स्वागत करने की बजाय कांग्रेस स्वदेशी कोवैक्सीन को मंजूरी देने पर सवाल खड़े कर रही थी तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके अखिलेश यादव ने कहा कि वह वैक्सीन नहीं लगवाएंगे, उन्हें भाजपा पर भरोसा नहीं है। उनके बयान से ऐसा लगा कि वैक्सीन देश के विज्ञानियों ने नहीं, बल्कि भाजपा ने तैयार की हो।

कैसे मजबूत हो बुनियाद : अनियमितता, भ्रष्टाचार और लापरवाही भरे रवैये ने हमारे सरकारी तंत्र या व्यवस्था को कमजोर किया है। कोरोना महामारी के वक्त सार्वजनिक स्थल पर मास्क लगाना भले ही जरूरी हो, लेकिन मौजूदा हालात में भी देश के नेता और यहां तक की जनता इसकी अनदेखी करती दिखाई दे जाएगी। लोकतंत्र का मतलब लापरवाही और नियमों का उल्लंघन करना नहीं है, लेकिन भारत में यातायात नियमों को तोड़ने वाले अक्सर ट्रैफिक पुलिस से उलझते नजर आते हैं। भारत के प्रशासनिक तंत्र में सुधार की बड़ी पहल की जरूरत है। मौजूदा प्रशासनिक व्यवस्था की बात करें तो यहां पर एक कलेक्टर कई बार अपने महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़कर गैर जरूरी शिष्टाचार निभाने के लिए कई घंटों तक किसी सांसद या विधायक के पीछे हाथ बांधे खड़े रहता है। मंत्रियों के वाहन से लालबत्ती हटाना एक बड़ा प्रतीकात्मक कदम था, लेकिन अभी भी केंद्र और राज्यों में कई मंत्री ऐसे हैं जिनके दिमाग में लगी लालबत्ती को हटाना जरूरी है। जनसरोकार से जुड़ी हर संस्था और विभाग को उत्तरदायी बनाकर देश की बुनियाद को मजबूत करने की जरूरत है और मजबूत बुनियाद पर ही हम सशक्त नए भारत का निर्माण कर सकते हैं।

[वरिष्ठ पत्रकार]