प्रो मिलिंद साठे। Coronavirus: आज पूरी दुनिया कोविड-19 के कहर से त्रस्त है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि पूरी दुनिया में इस बीमारी के कारण मरने वालों में करीब तीन-चौथाई लोग महज पांच विकसित देशों के लोग हैं। इसे देखकर एकबारगी यह भी दिमाग में आता है कि ये सभी देश दुनिया में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के मामले में शीर्ष पर आते हैं।

ऐसे में यह स्पष्ट है कि किसी देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर होना इस बात की गारंटी नहीं कि महामारी के समय आप सुरक्षित रह पाएंगे। तो फिर हमारा बचाव कैसे हो पाएगा? ऐसे क्या कारण या उपाय हैं जिनकी बदौलत कुछ देश इस बीमारी से स्वयं को बचाने में काफी हद तक कामयाब होते दिख रहे हैं, जबकि कई अन्य देश इससे संघर्ष कर रहे हैं?

ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, कनाडा और भारत जैसे देशों ने इस महामारी को अब तक काफी हद तक काबू में रखा है। आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि इन देशों में प्रति दस लाख की आबादी पर इस महामारी से मरने वालों की संख्या बहुत कम है। यह कहा जाता है कि स्वास्थ्य प्रणाली किसी देश के उस तरीके को समझने के लिए एक नजरिया प्रदान करती है कि वह कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली मौतों से बचाव के लिए किस तरह के उपायों को अमल में ला सकता है। वैसे हेल्थकेयर सिस्टम केवल इस नजरिये की आधी कहानी को दर्शाता है। भारत को छोड़, उपरोक्त देश स्वास्थ्य सुविधाओं की सूची यानी हेल्थ रैंकिंग में शीर्ष 50 पर हैं, जबकि भारत की रैंकिंग 118वीं है।

शायद इस मामले में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक के तौर पर उभरकर सामने आया है, वह यह है कि किस देश के राजनीतिक नेतृत्व ने इस समस्या से निपटने के लिए किस तरह का रवैया अपनाया है। तमाम देशों की सरकारों ने इस महामारी से बचाव के लिए अपने-अपने तरीकों से विभिन्न कदम उठाए। ऐसे में हमें यह जानना चाहिए कि जिन देशों ने इस महामारी से स्वयं को काफी हद तक बचाए रखने में कामयाबी हासिल की है, आखिरकार उन्होंने ऐसे क्या उपाय किए।

सिंगापुर: जुर्माने पर जोर

जनसंख्या और क्षेत्रफल के लिहाज से सिंगापुर अपेक्षाकृत एक छोटा देश है। यह पूर्व में ‘सार्स’ के असर को भी ङोल चुका है। कोविड-19 के आरंभिक दौर में ही यहां के प्रधानमंत्री ने त्वरित उपाय किए। सिंगापुर की सरकार ने इस बीमारी के आरंभिक दौर में 16 फरवरी को ही एक राष्ट्रीय योजना बनाई और उसे कार्यान्वित किया ताकि अपने नागरिकों को इस बीमारी के दुष्प्रभाव से प्रभावी तरीके से बचा सके। इसके लिए उसने जितना संभव हो सका अधिक से अधिक संदिग्ध मामलों की पहचान की और उन सभी की जांच की।

कोरोना पॉजिटिव लोगों को उसी समय क्वारंटाइन करते हुए कठोरता से इसके नियमों का पालन करने को कहा गया। साथ ही उनके पूरे परिवार को भी क्वारंटाइन किया गया। इस दौरान ऐसे सभी लोगों की डिजिटल निगरानी की गई। यदि कोई कोरोना संदिग्ध व्यक्ति क्वारंटाइन या आइसोलेशन की अवस्था में संबंधित नियमों का पालन नहीं करता पाया गया तो उस पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया। क्वारंटाइन संबंधी नियमों का उल्लंघन करने पर दस हजार सिंगापुर डॉलर या छह माह जेल की सजा का प्रावधान किया गया। हालांकि सिंगापुर में लॉकडाउन सरीखा उपाय अमल में नहीं लाना पड़ा, क्योंकि यहां की आबादी अपेक्षाकृत कम है और व्यापक स्तर पर कोरोना टेस्ट के कारण नागरिकों की गतिविधियों सामान्य बनी रहीं।

कनाडा: समन्वित कार्ययोजना

एक हालिया लेख में ‘ग्लोबल न्यूज’ ने अमेरिका और कनाडा में इस महामारी के असर का तुलनात्मक अध्ययन किया है। इसमें लिखा है कि अमेरिका ने समय रहते कोविड-19 की जांच के प्रति सक्रियता नहीं दिखाई और उसने शुरुआती कीमती समय को व्यर्थ गंवा दिया। साथ ही इस महामारी से निपटने के प्रति अमेरिका में विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय का अभाव भी दिखा। यही कारण रहा कि उसके पड़ोसी देश कनाडा की तुलना में अमेरिका में इस बीमारी की भयावहता अधिक हो गई। कनाडा की कामयाबी का कारण क्या रहा? आखिरकार कनाडा ने ऐसा क्या किया कि वहां इस बीमारी का दुष्प्रभाव कम दिख रहा है? इसे भी जानना चाहिए।

कनाडा ने वर्ष 2018 में नेशनल इंफ्लूएंजा प्रीपेयर्डनेस प्लान का प्रारूप तैयार किया था और उसी की तैयारियों को इस वर्तमान महामारी से निपटने के लिए कार्यान्वित किया। यहां दिलचस्प यह है कि अमेरिका ने भी वर्ष 2009 में इसी तरह की योजना सार्स से निपटने के लिए विकसित की थी, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उसमें दिलचस्पी नहीं दर्शाई। कनाडा ने अपनी राष्ट्रीय योजना को सभी प्रांतों में समन्वित तरीके से लागू किया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने निरंतर स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह का पालन किया और रोजाना इसी अनुरूप नीतियों में बदलाव करते। कनाडा की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली इतनी मजबूत है कि बिना किसी विशेष लागत या बीमा दावे के सभी नागरिकों की स्वास्थ्य सेवाओं तक आसान पहुंच को मुमकिन बनाया गया है। कोविड-19 की गंभीरता से निबटने के लिए कनाडा ने 11 अरब डॉलर खर्च करने का प्रावधान किया है। क्वारंटाइन नियमों के उल्लंघन पर साढ़े सात लाख डॉलर के आर्थिक जुर्माने के साथ छह महीने तक जेल की सजा देने की बात कही गई।

जर्मनी: नेतृत्व और प्रभावी उपाय

इटली, स्पेन और फ्रांस जैसे देशों से घिरा यूरोपीय देश जर्मनी अपने पड़ोसी देशों के मुकाबले खुद को इस महामारी के प्रकोप से बचाने में काफी हद तक कामयाब रहा है। इसका पूरा श्रेय एंजेला मर्केल के कुशल नेतृत्व क्षमता को दिया जाना चाहिए। अपने बचाव के लिए अन्य देशों के मुकाबले जर्मनी ने कोविड-19 की जांच व्यापक पैमाने पर शुरू की। उसने साप्ताहिक रूप से औसतन पांच लाख टेस्ट किए और सभी तरह के पॉजिटिव मामलों की पहचान की।

इस महामारी से पैदा संकट के दौर में आर्थिक नुकसान को न्यूनतम करने के लिए सभी प्रकार के कारोबार को संरक्षण देने के लिए उसने कई स्कीम लागू कीं। महामारी से सर्वाधिक प्रभावित कारोबार को अधिक से अधिक मदद दी गई। जर्मनी ने 22 मार्च के आसपास ही राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन किया जिससे पड़ोसी देशों के मुकाबले यहां इस बीमारी से जान गंवाने वालों की संख्या कम है। इन तमाम उपायों के अलावा जर्मनी ने एक राष्ट्रीय योजना लागू की। इस महामारी पर गंभीरता से काबू पाने के लिए उसने राष्ट्रीय महामारी एक्शन प्लान को सभी प्रांतों में लागू किया जिसकी निगरानी संघीय स्तर पर की गई।

दक्षिण कोरिया: व्यापक टेस्ट

वर्ष 2015 में मिडल ईस्टर्न रेस्पिरेटरी सिंड्रोम के उभार के दौर में दक्षिण कोरिया ने जो सीख ली, वह आज उसके बहुत काम आया। इस बार फेडरल सरकार पूरी तैयारी से जुटी थी। दक्षिण कोरिया ने भी समूची आबादी में विस्तृत कोरोना जांच को अंजाम दिया। कोरोना पॉजिटिव लोगों की पहचान होने के बाद उनकी समुचित गतिविधि के आधार पर अन्य संदिग्धों यानी उनके संपर्क में आ चुके लोगों को पहचाना गया और उन सभी को क्वारंटाइन किया गया। संक्रमण की आशंका वाले लोगों की पहचान के लिए आधुनिक और इनोवेटिव तकनीकों मसलन जियो-ट्रैकिंग और सीसीटीवी का भरपूर इस्तेमाल किया गया।

समन्वित राष्ट्रीय योजना के जरिये अनेक प्रयासों को अंजाम दिया गया। स्वास्थ्य सामग्रियों व सेवाओं की आपूर्ति समेत मास्क के वितरण का कार्य सरकार ने अपने नियंत्रण में रखा। महामारी के समय आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाए रखने के लिए समुन्नत तरीका विकसित कर उसे लागू किया। मास्क और सैनिटाइजर जैसी सभी जरूरी सामग्रियों की आपूर्ति को पोस्ट ऑफिस, दवा की दुकानों और कॉपरेटिव स्टोर्स के माध्यम से न्यूनतम कीमत पर लोगों को मुहैया कराया। प्रभावित लोगों को वित्तीय मदद भी दी गई।

ऑस्ट्रेलिया: देर से मगर सही

ऑस्ट्रेलिया ने अन्य देशों के मुकाबले इस बीमारी के प्रति अपनी चिंता आरंभ में कम ही दर्शाई थी। यही कारण रहा कि जब दुनिया के तमाम देश अपने यहां विदेश यात्रओं पर पाबंदी लगा रहे थे, उसने ग्रांड प्रिक्स में इटली की टीम का स्वागत किया। वैसे यह आयोजन बाद में टाल दिया गया। इसी तरह से धीरे-धीरे कोविड-19 के प्रसार के साथ ही अन्य खेल गतिविधियों को भी रद किया गया। इसी तरह शारीरिक दूरी का नियम भी उसने अपने यहां काफी देर से बनाया।

आरंभ में भले ही उसने विदेश से आए लोगों के प्रति नरमी बरती, लेकिन इस बीमारी के महामारी का रूप धारण करने के बाद उसने विदेश से आने वालों को सख्ती से 15 दिनों के आइसोलेट होने का नियम लागू किया। दुर्भाग्यवश एक क्रूज शिप से आने वाले यात्रियों को बिना किसी स्वास्थ्य जांच के स्थानीय सरकार ने आने की अनुमति दे दी जिस कारण इस देश में कोविड-19 के पॉजिटिव मामले सामने आए। इस महामारी के कारण आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए भी कई कदम उठाए।

भारत: समय पर लॉकडाउन

आबादी में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बडा देश है। भारत ने इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए अभूतपूर्व प्रयत्न किए हैं। शायद यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनिया की कई संस्थाओं ने भारत के प्रयासों की सराहना की है। चूंकि भारत सरकार ने आरंभिक दौर में ही इस बात को जान-समझ लिया था कि कोविड-19 का भारी जोखिम विदेश से आने वाले यात्रियों से ही संबंधित है, लिहाजा उसने 26 फरवरी को ही चीन, दक्षिण कोरिया और ईरान का वीजा रद कर दिया और इन देशों से आने वाले सभी भारतीय निवासियों को 15 दिनों के लिए आइसोलेशन में भेज दिया।

भारत सरकार अपनी कमजोरियों से भली-भांति परिचित थी कि इतनी विशाल आबादी में संक्रमण फैलने की दशा में सभी को सक्षम तरीके से इलाज की सुविधा मुहैया कराना संभव नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से पहले तो एक दिन के लिए घर में ही रहने का अनुरोध किया, जिसका लोगों ने पूर्णतया पालन भी किया, फिर 24 मार्च को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का फैसला लिया जो आज भी जारी है। इतना ही नहीं, उसके बाद सरकार ने एक राष्ट्रीय योजना तैयार की और सभी राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के साथ एक समन्वित रणनीति को अंजाम दिया। इस दौरान सभी दलों व राज्य सरकारों समेत नागरिक प्रधानमंत्री के देशव्यापी लॉकडाउन से संबंधित दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं।

(मीडियम डॉट कॉम पर प्रकाशित लेख से संपादित अंश, साभार)

(लेखन सहयोग: उमेश शर्मा, विनोद मिश्र, मोहन येलीशेट्टी, अभिजीत भिडे और राजीव पाध्ये)

[बैंकिंग, फाइनेंस व राजनीतिक अर्थशास्त्री]