निरंकार सिंह। कोरोना महामारी के साये में बीते इस वर्ष को शायद ही कोई याद रखना चाहेगा। उम्मीद की जा रही है कि नए साल में जल्द ही हमें इससे बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध होगी। स्वयं प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि विज्ञानियों की हरी झंडी मिलते ही टीकाकरण का अभियान शुरू किया जाएगा। इस दौरान कई देशों की वैक्सीन चर्चा में है। लेकिन दुनिया की नजर सस्ती व सुरक्षित वैक्सीन पर है। इसलिए दुनिया की निगाहें भारत पर है। एक साल के भीतर ही कोरोना की वैक्सीन बनाकर भारत दुनिया के विकसित देशों की कतार में शामिल हो गया है।

वैक्सीन तैयार करने वाले संस्थान को प्रधानमंत्री केयर फंड सीधे सहायता धनराशि उपलब्ध कराई गई। यदि यह काम परंपरागत प्रक्रिया से होता तो रकम जारी होने में ही लंबा समय लग जाता। इसका अर्थ है कि नेतृत्व में यदि दूरदर्शिता हो तो हमारे विज्ञानी भी वह सब कर सकते हैं जो अब तक विकसित देशों में ही हो सकता था। परमाणु अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में हमारी अपनी उपलब्धियां हैं। लेकिन यह सबसे बड़ी विडंबना है कि हमारा उपभोक्ता बाजार विदेशी कंपनियों के माल से भरा पड़ा है। पर जिस किसी भी क्षेत्र में लक्ष्य तय किए गए और हमारे विज्ञानियों को चुनौतियां मिलीं, वहां उन्होंने सफलता प्राप्त की है। दरअसल भारत एक सुप्त महाशक्ति है। यदि वह जाग जाए तो विश्व अर्थव्यवस्था को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकता है। इतिहास इसका गवाह है कि भारत दुनिया के सभ्य व संपन्न देशों में से एक था।

सिंधु घाटी सभ्यता तथा मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि पुरातन काल में ही भारत मिट्टी के बरतन बनाने की कला, औजार, आभूषण, मानव-निíमत वस्तुओं तथा मिश्रित धातु की मूíतयों के निर्माण का कौशल विकसित कर चुका था। बढ़ती जनसंख्या, अकाल तथा गरीबी के साथ कभी एक संपन्न देश रहा भारत आक्रमणकारी विदेशी शासकों द्वारा दमन तथा दरिद्रता का शिकार बना दिया गया। वर्ष 1857 में आजादी के पहले स्वप्न ने परिवर्तन की प्रक्रिया को उकसा दिया। बाद में स्वतंत्रता आंदोलन ने राजनीति, जनजीवन, संगीत, कविता, साहित्य तथा विज्ञान में बेहतरीन नेताओं को उभारा। यह आंदोलन मन तथा उद्देश्य की एकता के साथ देशभक्ति और समर्पण द्वारा प्रेरित था।

आज भारत के पास विशाल पैमाने पर कुशल और दक्ष मानव संसाधन है। सरकार द्वारा आरंभ पंचवर्षीय योजनाओं तथा मिशन मोड कार्यक्रमों के कारण मानव संसाधन का बड़े पैमाने पर विकास हुआ, लेकिन हमारे देश में बहुत से लोग सोचते हैं कि सब कुछ सरकार ही करेगी। हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। दुनिया की कोई भी सरकार सबको रोजगार नहीं दे सकती है। अपने देश में आजादी है, लेकिन जिम्मेदारी की भावना नहीं है। हर जगह हम मनमाने ढंग से व्यवहार करते हैं। चाहे सड़क पर वाहन चलाने की बात हो या कहीं भी कूड़ा-कचरा फेकने की। इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है।

देश को मुख्यत: आíथक शक्ति से सशक्त बनाया जा सकता है। आíथक शक्ति प्रतिस्पर्धा से आएगी व प्रतिस्पर्धा ज्ञान से उत्पन्न होती है। ज्ञान को प्रौद्योगिकी से समृद्ध करना होता है और प्रौद्योगिकी को व्यवसाय से शक्ति प्राप्त होती है। व्यवसाय को नवीन प्रबंधन से शक्ति मिलती है और प्रबंधन नेतृत्व से प्रबल होता है। मस्तिष्क की नैतिक श्रेष्ठता नेता की सबसे बड़ी विशेषता है। संयोग से यह क्षमता भी आज देश के नेतृत्व में है। हमें इस अवसर को खोना नहीं चाहिए। हमारी संस्कृति और सभ्यता युगों से उन महान विचारकों द्वारा समृद्ध की जाती रही है, जिन्होंने हमेशा जीवन को मस्तिष्क, शरीर तथा बुद्धि के मेल के रूप से एक समन्वित रूप में देखा है। आनेवाले दशकों में देश के युवा सभ्यतागत तथा आधुनिक प्रौद्योगिकीय धाराओं का एक संगम देखेंगे।

आज हमारे युवा वैज्ञानिक अनुसंधान, आविष्कार और नवीन प्रयोग में संलग्न होने की बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि ये उच्च प्रौद्योगिकी विकास के बड़े घटक हैं। इन कारकों के बीच एक भिन्नता स्थापित करना उपयोगी है। वैज्ञानिक अनुसंधान भौतिक विश्व की प्रकृति के ज्ञान की प्राप्ति से संबंधित है। आविष्कार किसी नए उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा का निर्माण या किसी ऐसी चीज का निर्माण है जो अस्तित्व में नहीं है। भारत के युवाओं के पास विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी को माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हुए इस दशक के अंत तक विकसित भारत के लक्ष्य द्वारा देश के लिए योगदान करने का एक अनूठा अवसर है। युवाओं का अदम्य उत्साह, राष्ट्र-निर्माण की क्षमता और रचनात्मक नेतृत्व भारत को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ व विश्व में सही स्थान दिला सकते हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने उत्पादों को बेचने की आक्रमक प्रवृत्ति का भारतीय उद्यमियों में अभाव है। हमें भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना चाहिए। हमें अपनी जैव-विविधता को पहचानना चाहिए और उन्हें पेटंेट करना चाहिए।

ज्ञान से संपन्न मस्तिष्क उत्पन्न करने के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है, ताकि वे नए विचार दे सकें। दुर्भाग्यवश हमारी शिक्षा-प्रणाली ऐसा नहीं करती। उसमें एक प्रकार की सीखने की प्रक्रिया होनी चाहिए, न कि केवल पढ़ने की। पर यह संतोष की बात है कि मोदी सरकार इस दिशा में भी तेजी से काम कर रही है। भारत को विकसित देश बनाने के लिए देश के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रौद्योगिकीविदों, तकनीशियनों तथा कृषकों व अन्य लोगों को अपनी जिम्मेदारी को निभाना चाहिए और प्रयासों को समन्वित करके विकास लक्ष्यों में मदद देनी चाहिए। हमारे देश के नीति निर्माताओं को विकास के लक्ष्यों को कार्यो में परिणत करने की प्रक्रिया में आवश्यक सहयोग करना चाहिए।

[स्वतंत्र पत्रकार]