अनुपमा झा

अंडमान-निकोबार द्वीप की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने पिछले दिनों अपने पूर्व पुलिस महानिदेशक राजेश मलिक और उनके एसओ अशोक चौबे के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा सात के तहत एफआइआर दर्ज की। वरिष्ठ आइपीएस राजेश मलिक इस समय दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त हैं जबकि चौबे अभी भी उत्तरी अंडमान में रेडियो अफसर के पद पर तैनात हैं। दोनों पुलिस अफसरों पर आरोप है कि उन्होंने एक प्रमुख कारोबारी अब्दुल सलीम के खिलाफ शिकायत को रफा-दफा करने के बदले घूस मांगी। इससे पहले देश की शीर्षस्थ जांच एजेंसी सीबीआइ ने अपने ही पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया था। सिन्हा पर आरोप है कि उन्होंने निदेशक के पद पर रहते हुए कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की जांच और अभियोजन में अड़ंगा लगाया और अपने अधिकारों का जमकर दुरुपयोग किया।


मैंने शीर्ष स्तर के अधिकारियों का इसीलिए संदर्भ दिया, क्योंकि पुलिस की यही बेलगाम ताकत जनसाधारण के मन में डर और भय पैदा करती है। अपनी मर्जी से किसी के भी विरुद्ध जांच शुरू कर देना और बिना किसी वाजिब कारण के तफ्तीश बंद कर देना, अपनी इच्छा के मुताबिक किसी बेगुनाह को गिरफ्तार करना और किसी माफिया को छोड़ देना आदि कुछ वजहों से आम आदमी में पुलिस के प्रति अविश्वास पैदा हुआ है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की हालिया रिपोर्ट के अनुसार एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में पुलिस सर्वाधिक भ्रष्ट संस्थान है। पुलिस राजनीतिज्ञ, न्यायिक अधिकारी, सरकारी और टैक्स अफसरों से भी भ्रष्ट मानी जाती है। पिछले 12 महीनों के आंकड़े बताते हैं कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के जो भी लोग पुलिस के संपर्क में आए उनमें से एक तिहाई को पुलिसकर्मियों की जेब गरम करनी पड़ी। यह किसी भी अन्य विभाग से अधिक है। यही नहीं, अन्य विभागों के मुकाबले पुलिस वाले बहुत अधिक रकम मांगते हैं। पुलिस में भ्रष्टाचार इसलिए सर्वाधिक कष्टप्रद है कि इससे अन्याय, अराजकता, असहायपन और नाउम्मीदी को बढ़ावा मिलता है। पुलिस पर नियम, कायदे-कानून को लागू करवाने और उन्हें अमलीजामा पहनाने का दायित्व है। यदि पुलिस कानून का पालन नहीं करती तो समाज में जनसामान्य से कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वह नियमों पर चलेगा और अपनी सरकार पर भरोसा करेगा। यह समाज और देश के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है। इससे कानून-व्यवस्था चरमरा सकती है। इतना ही नहीं, भ्रष्ट सरकारी अफसर और पुलिस समूचे तंत्र को तबाह कर देते हैं और इसीलिए लोग सिस्टम पर अपना भरोसा खो देते हैं। पुलिस में भ्रष्टाचार का स्वरूप ऐसा है कि इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। पुलिस के कुछ विभागों के कर्मचारी लंबी अवधि की ड्यूटी के बावजूद इक्का-दुक्का मामलों में ही अनैतिक कृत्यों में लिप्त पाए गए हैं। दूसरे, पुलिस सुधारों के लिए जहां पुलिस में भ्रष्टाचार का खुलासा करना जरूरी है वहीं पुलिस फोर्स के मनोबल पर इसका विपरीत और दूरगामी प्रभाव भी पड़ सकता है। हालांकि मनोबल में गिरावट भ्रष्टाचार की बड़ी परेशानी के मुकाबले एक छोटी समस्या है। पुलिस फोर्स में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सुरक्षात्मक उपाय बेहतर तरीका है। चयन और प्रशिक्षण के दौरान भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उपाय ढूंढे जाने चाहिए, बजाय करियर के मध्य में। उन्हें भ्रष्टाचार निवारण के प्रति सजग और प्रशिक्षित करते रहना भी जरूरी है।
पुलिस बल के निचले स्तर के कर्मियों और अफसरों को शिक्षित करने से बेहतर परिणाम निकल सकते हैं। पुलिस भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए संस्थागत सुधारों के भी सुझाव सामने आते रहते हैं। जैसे-आंतरिक नियंत्रण को बेहतर बनाना, ज्यादा भ्रष्ट वाले क्षेत्र को टारगेट करना आदि। इसके अलावा भ्रष्टाचार से बचने के लिए पुलिस के पास भी सुरक्षा कवच होने चाहिए। भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए जवाबदेही तय करना और शिकायत निवारण का एक मुकम्मल इंतजाम होना भी जरूरी है और प्रक्रियाएं आसान हों, यह भी आवश्यक है। सामान की खरीद-फरोख्त, पदोन्नति, सूचनाओं के आदान-प्रदान पर निगरानी, हितों के टकराव, आय का खुलासा, धन के दुरुपयोग पर नजर रखने से भ्रष्टाचार काफी हद तक कम किया जा सकता है। सरकार भी पुलिस बल को उचित बजट देकर प्रोत्साहित कर सकती है। अंतिम उपाय के रूप में यह जरूरी है कि सरकारी नीतियां भ्रष्टाचार पनपने के सभी छिद्रों पर नजर रखें। सरकार को पुलिस के साथ मिलजुल कर काम करना चाहिए, लेकिन यह भी जरूरी है कि पुलिस का राजनीतिकरण न हो। सरकार स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पुलिस बल बनाए जो भ्रष्टाचार की बुराइयों और समाज पर उसके कुप्रभावों से भलीभांति परिचित हो।
सामुदायिक पुलिस से भी भ्रष्टाचार पर काफी हद तक लगाम लगी है। अपराध और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए स्थानीय लोगों का पुलिस से मेल-जोल जरूरी है। भारत सहित दुनिया के कई देशों में इस तरह का प्रयोग सफल रहा है। भ्रष्टाचार विरोधी प्रयास पुलिस बल में करप्शन के जोखिम पर केंद्रित रहने चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस जनसाधारण की निष्पक्ष और ईमानदारी से सेवा करे। घूसखोरी रोकने का एक तरीका यह भी है कि भ्रष्टाचार के शिकार व्यक्ति को शिकायत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए जिससे भ्रष्ट पुलिसकर्मी पकड़ा जा सके। हालांकि व्यवहार में घूसखोरी की शिकायत दर्ज नहीं कराई जाती। बदले की भावना के डर से लोग घूसखोर के खिलाफ शिकायत नहीं करते। कई सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले को विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जनशिकायत प्रकोष्ठ बेअसर हैं। शिकायत करने पर कार्रवाई नहीं की जाती, जबकि बहुत से लोगों को यह पता ही नहीं होता कि अमुक भ्रष्टअफसर की शिकायत आखिर करनी कहां है।
दुख की बात है कि आज समाज में लालच और भौतिक सुख का बोलबाला है। घूस लेना और देना सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है और संस्कृति एक ऐसा आईना है जिसके जरिये हम दुनिया को देखते हैं। इस संस्कृति में यह एक सामान्य प्रक्रिया है। यदि हम प्रत्येक बच्चे को घर और स्कूल में ईमानदार जिंदगी जीने की शिक्षा दें तो भ्रष्टाचार निश्चित रूप से कम होगा, क्योंकि एक ईमानदार जिंदगी हमें उस समय सुरक्षा प्रदान करती है जब हम लालच, भौतिकतावाद, असीमित अधिकारों और लापरवाही के दलदल में फंसे हों।
[ लेखिका कॉरपोरेट गवर्नेंस मामलों की सलाहकार और ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं ]