नई दिल्ली [ राजीव सचान ]। इससे विचित्र और कुछ नहीं कि जो केंद्रीय सतर्कता आयोग बीते तीन साल से पंजाब नेशनल बैैंक को भ्रष्टाचार रोकने के प्रभावी कदम उठाने एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए पुरस्कृत कर रहा था वह अब इस बैैंक को फटकार लगा रहा है। केंद्रीय सतर्कता आयोग ने इस बैैंक से पूछा है कि अफसरों को हर तीन साल में स्थानांतरण करने के उसके निर्देश पर अमल क्यों नहीं हुआ? यह सवाल लकीर पीटने के अलावा और कुछ नहीं। आखिर नीरव मोदी की कारगुजारी का भंडाफोड़ होने के पहले सीवीसी ने यह क्यों नहीं देखा कि उसके निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि वह पंजाब नेशनल बैैंक को पुरस्कार दे किसलिए रहा था? जैसे सीवीसी ने पंजाब नेशनल बैैंक से कुछ पूछा है वैसे ही वित्त मंत्रालय, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो के साथ रिजर्व बैैंक भी यह पूछ रहा है कि ऐसा या फिर वैसा क्यों नहीं हुआ या फिर कैसे हो गया?

एलओयू सात साल से जारी होते रहें और शीर्ष अफसरों को भनक ही नहीं लगी

ऐसे सवाल इसलिए बेमानी हैैं, क्योंकि उनसे नुकसान की भरपाई होने की कहीं कोई उम्मीद नहीं। यह लगभग तय है कि 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी उजागर होने के बाद बैैंकिंग व्यवस्था से संबंधित अन्य अनेक विभागों को भी अपने अधिकार एवं कर्तव्य याद आ गए होंगे और वे भी इससे या उससे कुछ सवाल करने में जुटे होंगे। पता नहीं इन सवालों के जवाब मिलेंगे या नहीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि कोई भी यह बताने वाला नहीं कि आखिर पंजाब नेशनल बैैंक की मुंबई स्थित बैै्रडी हाउस शाखा के चंद अधिकारी और कर्मचारी इतना बड़ा घोटाला कैसे अंजाम दे सकते हैैं? क्या इस पर कोई यकीन कर सकता है कि चंद अधिकारी-कर्मचारी किसी घोटालेबाज से मिलकर उसके पक्ष में करोड़ों के लेटर ऑफ अंडरटेकिंग यानी एलओयू सात साल से जारी करते रहें और शीर्ष अफसरों को भनक ही नहीं लगे?

बैैंक से करोड़ों रुपये जाते रहें और शीर्ष अफसर सोते रहें

भला इस कहानी पर कौन यकीन करेगा कि छल से या फिर गलत तरीके से एलओयू जारी किए जाने के कारण किसी को भनक नहीं लगी? क्या दूसरे बैैंक भी पंजाब नेशनल बैैंक की तरह ही काम कर रहे थे? क्या यह संभव है कि किसी बैैंक से करोड़ों रुपये जाते रहें और शीर्ष अफसर सालों तक इसकी परवाह ही न करें कि गया पैसा वापस क्यों नहीं आ रहा है? क्या बैैंकों से उधार पैसा लेना तालाब से मिट्टी खोदने जैसा है कि यह आसानी से समझ न आए कि कौन कहां से कितनी मिट्टी खोद ले गया? इस पर हैरान ही हुआ जा सकता है कि पंजाब नेशनल बैैंक के चेयरमैन, निदेशकों, ऑडिटर आदि की गिरफ्तारी तो दूर रही, उनसे पूछताछ करने की भी जहमत नहीं उठाई जा रही है। क्या ये सब दूध के धुले दिख रहे हैैं? क्या सब कुछ बस डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी ने ही किया है? इससे उत्साहित नहीं होना चाहिए कि नीरव मोदी के भाग जाने के बाद देश भर में उसके ठिकानों पर जो छापेमारी जारी है उससे बहुत कुछ हासिल होने वाला है।

बरामद की गई संपत्ति संदेह के घेरे में है

शातिर नीरव मोदी और उसके महाशातिरमामा मेहुल चौकसी के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान जब्त संपत्ति के बारे में यह जो दावा किया जा रहा है कि अब तक करीब पांच हजार करोड़ रुपये के हीरे-जवाहरात और अन्य संपत्ति बरामद की जा चुकी है उसे लेकर संदेह है। इस संदेह का कारण यह है कि मामा-भांजे अपनी संपत्ति के साथ-साथ हीरों का मूल्य भी वास्तविक मूल्य से कई गुना ज्यादा बताते थे। अब तो ऐसे लोग भी सामने आ रहे हैैं जो कह रहे हैैं कि वे कम गुणवत्ता वाले हीरों को भी उम्दा किस्म का बताकर बेचने में माहिर थे।

नीरव मोदी के तेवरों से लगता है कि वह हाथ नहीं आने वाला

यह भी ध्यान रहे कि जिन तमाम फ्रेंचाइजी के यहां छापे डाले जा रहे हैैं उनमें से कई पहले से ही नीरव मोदी या फिर उसके मामा से पीड़ित हैैं। हैरत नहीं कि जब नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के यहां से जब्त संपत्ति का वास्तविक आकलन हो तो सीबीआइ और ईडी के दावे हकीकत से दूर नजर आएं। इस आशंका से भी इन्कार नहीं कि सरकार को इन दोनों भगोड़ों की संपत्ति हासिल करने में अदालतों के चक्कर काटने पड़ें। नीरव मोदी जैसे लोग किस तरह वकीलों के जरिये वर्षों तक अदालत-अदालत खेलते रह सकते हैैं, सरकार और बैैंकों को विजय माल्या के मामले से इसका अनुभव हो ही गया होगा। सरकार की ओर से दिए जा रहे ऐसे बयानों पर सहज यकीन नहीं होता कि अगर जरूरत पड़ी तो नीरव मोदी को अमेरिका से भी खींच लाएंगे। नीरव मोदी के तेवरों से यही प्रकट हो रहा है कि वह हाथ नहीं आने वाला।

विजय माल्या के बाद नीरव मोदी का भी विदेश भाग जाना मोदी सरकार के लिए बड़ा आघात

उसकी ओर से पंजाब नेशनल बैैंक को लिखी गई चिट्ठी यही कह रही है कि जो करना हो कर लो, मैैं तो फूटी कौड़ी भी नहीं देने वाला। विजय माल्या के बाद नीरव मोदी का भी विदेश भाग जाना मोदी सरकार के लिए एक बड़ा आघात है। इस आघात की तीव्रता ऐसे तर्कों से कम नहीं हो सकती कि धोखाधड़ी तो 2011 यानी संप्रग शासन के समय से ही जारी थी। नि:संदेह यह सही है कि गोरखधंधा सात साल से चला आ रहा था, लेकिन आखिर बीते लगभग चार साल में मोदी सरकार ने क्या किया? अभी तो ऐसा लग रहा है कि जैसे संप्रग के जमाने में बैैंकों के घोटाले रोकने वाले नीरो बने हुए थे वैसे ही राजग के समय में भी बने रहे और चैन की बंसी बजाते रहे।

मोदी सरकार ने बैैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए

मोदी सरकार को बताना चाहिए कि अपने फंसे कर्जों को खुशी-खुशी एनपीए में तब्दील कर रहे सरकारी बैंकों में सुधार की जो कोशिश होनी चाहिए थी वह क्यों नहीं हुई? क्या बैैंकिंग सिस्टम की खामियां तभी उजागर नही हो गई थीं जब नोटबंदी के बाद बैैंकों ने सरकार के इरादों पर एक बड़ी हद तक पानी फेर दिया था? कम से कम इसके बाद तो बैैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम उठाए ही जाने चाहिए थे। सरकार के सामने समस्या केवल यह नहीं है कि विजय माल्या की तरह नीरव मोदी भी भाग गया, क्योंकि बीते चार सालों में न तो देश में उपस्थित एवं सहर्ष विलफुल डिफॉल्टर बनने वालों का कुछ बिगड़ा है और न ही वाड्रा, कार्ति जैसे गंभीर आरोपों से घिरे तत्वों का। क्या इससे हास्यास्पद और कुछ हो सकता है कि चिदंबरम के घर अपनी गोपनीय जांच रपट बरामद होने पर सीबीआइ उनसे कुछ पूछने के बजाय इसकी जांच करना ज्यादा बेहतर समझती है कि उसकी रपट चोरी कैसे हुई? 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में अनपेक्षित और अवाक कर देने वाले अदालती फैसले के बाद 11 हजार करोड़ रुपये का बैैंकिंग घोटाला सामने आना उन सबको निराश करने वाला है जो यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि यह सरकार भ्रष्ट तत्वों से सचमुच सख्ती से निपटेगी।

[ लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैैं ]