Coronavirus Vaccine News: विज्ञान और अर्थशास्त्र की कसौटी पर कोरोना वैक्सीन
Coronavirus Vaccine News देश में वैक्सीन वितरण के संदर्भ में अनेक विचार सामने आ रहे हैं। निजी क्षेत्र को सशक्त किया जाना चाहिए। लेकिन निजी क्षेत्र को इसका दारोमदार सौंपने से वे उन लोगों को सबसे पहले वैक्सीन देंगे जो इसके लिए ज्यादा पैसा देंगे।
डॉ. अश्विनी महाजन। Coronavirus Vaccine News बीत रहे इस वर्ष के प्रारंभ से ही एक भयानक महामारी से जूझते हुए विश्व में जहां इसका कोई इलाज नहीं सूझ पा रहा, वहीं कोरोना वैक्सीन को ही इस हेतु एकमात्र स्थायी समाधान माना जा रहा है। दरअसल एक प्रभावी वैक्सीन बीमारी से मुकाबला करने हेतु शरीर में एंटी बॉडी तत्वों के विकास में सहायता करती है, ताकि मनुष्यों को उस बीमारी से बचाया जा सके। यह महामारी चिकित्साशास्त्र के लिए भी एक चुनौती है। ऐसी बीमारी, जिसका संक्रमण अभूतपूर्व तेजी से फैलता है, उसके लिए वैक्सीन का निर्माण भी अत्यंत चुनौतीपूर्ण है।
इस वैक्सीन के विकास के लगभग 200 से भी अधिक प्रयास दुनिया में चल रहे हैं। बड़ी संख्या में अब वैक्सीन विभिन्न देशों में स्वीकृति के लिए भी लाई जा रही है। इस बीच ब्रिटेन ने फाईजर कंपनी की वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग की अनुमति भी प्रदान कर दी है। भारत में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वैक्सीन कोवीशील्ड की निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट और भारतीय कंपनी भारत बायोटेक द्वारा निíमत वैक्सीन ने भी आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी है। एक ओर इससे लोगों में इस महामारी से निजात पाने में एक आशा की किरण तो जगी है, लेकिन साथ ही कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं, जिनका समाधान प्राप्त करना भी बहुत जरूरी है।
इस संबंध में पहला सवाल इस वैक्सीन की कीमत को लेकर है। करीब 135 करोड़ जनसंख्या के साथ भारत को अपनी संपूर्ण आबादी को यह वैक्सीन उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है। हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख ने एक ट्वीट कर सरकार द्वारा वैक्सीन हेतु बजट के बारे में भी चुनौती दी थी। यदि एक व्यक्ति को वैक्सीन देने की लागत एक हजार रुपये भी हो तो सभी देशवासियों को वैक्सीन देने की लागत एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये होगी। वहीं वैक्सीन की कीमत 100 रुपये भी बढ़ने पर लागत में 13,500 करोड़ रुपये का अंतर पड़ेगा। हालांकि वैक्सीन आने की, उसके प्रभावी होने और दुष्प्रभावों के बारे में खबरें तो आ रही हैं, लेकिन अभी भी उसकी लागत को लेकर स्पष्टता की कमी है। फाइजर की वैक्सीन की कीमत 37 डॉलर प्रति डोज है, जिसका मतलब है भारत को 22.8 अरब डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। हालांकि फाइजर ने कहा है कि भारत में वे लागत को कम रखेंगे। दूसरी तरफ रूस की स्पुतनिक फाइव की लागत 10 डॉलर और भारत बायोटेक एवं केडिला वैक्सीन की लागत तीन से छह डॉलर के बीच रहने वाली है।
हालांकि वैक्सीन विकसित करने के अनेक प्रयास दुनिया भर में चल रहे हैं, लेकिन वैक्सीन के व्यावसायिक उत्पादन की क्षमता की दृष्टि से भारत का कोई सानी नहीं है। रूस की स्पुतनिक फाइव वैक्सीन हो या ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन, सभी भारत में ही उसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए संपर्क साध रहे हैं। फाइजर कंपनी ने दावा किया है कि उनकी वैक्सीन औसतन 95 प्रतिशत प्रभावी है। विभिन्न आयुवर्गो में इसकी प्रभावी क्षमता 90 प्रतिशत से 100 प्रतिशत है। इसके दुष्प्रभावों के बारे में कंपनी का कहना है कि ये दुष्प्रभाव फ्लू की अन्य वैक्सीन के मुकाबले एक समान है। उधर भारत बायोटेक ने भी अपनी वैक्सीन के प्रभावी और सुरक्षित होने का दावा पेश किया है। रूस की वैक्सीन स्पुतनिक फाइव को विकसित करने वाले केंद्र का दावा है कि उनकी वैक्सीन 91 प्रतिशत प्रभावी होने के साथ कोविड संक्रमण से दो वर्ष तक सुरक्षा प्रदान करती है, जबकि फाइजर की वैक्सीन चार-पांच माह ही सुरक्षा प्रदान करेगी।
गौरतलब है कि रूस की वैक्सीन को बहुत पहले ही रूस में व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दे दी गई थी। भारत समेत अन्य देशों में भी उसके ट्रायल अलग-अलग स्तर पर चल रहे हैं। वैक्सीन के उपयोग की अनुमति मिलते ही बड़ी चुनौती उसके वितरण की होगी। फाइजर की वैक्सीन हेतु माइनस 75 डिग्री का तापमान आवश्यक होगा। इसके लिए विशेष मशीनों की जरूरत होगी। हालांकि कंपनी का कहना है कि इस हेतु उसकी वैश्विक तैयारी है। लेकिन भारत जैसे देश जहां कोल्ड चेन के इंफ्रास्ट्रक्चर की खासी कमी है, यह आसान काम नहीं होगा। अन्य कंपनियों जिन्होंने अपनी वैक्सीन हेतु भारत सरकार से आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी है, उन्हें इतने कम तापमान की जरूरत नहीं होगी। इसलिए माना जा रहा है कि फाइजर की वैक्सीन न केवल महंगी होगी, बल्कि इसके लिए कोल्ड चेन की उपलब्धता नहीं होने के कारण इसका वितरण अत्यंत कठिन रहेगा। देश में कोल्ड चेन के संदर्भ में भारतीय डेयरी सेक्टर से भी मदद मांगी जाने की बात आ रही है। सरकार ने वैक्सीन के वितरण हेतु काफी विस्तृत तैयारी की है।
ऐसा माना जा रहा है कि देश में सबसे पहले डॉक्टरों, अन्य स्वास्थ्यकíमयों, पुलिसकíमयों और अध्यापकों को वैक्सीन दी जाएगी। ऐसे लोगों की संख्या लगभग तीन करोड़ होगी। उसके बाद वैक्सीन की सबसे ज्यादा जरूरत बुजुर्गो और उन लोगों को है जो ऐसी स्वास्थ्य स्थितियों में हैं, जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह इत्यादि। यदि वैक्सीन वितरण का काम निजी क्षेत्र को दे दिया गया तो वैक्सीन उन जरूरतमंद वर्गो को मिलना कठिन होगा। निजी क्षेत्र के पैरोकारों का यह भी कहना है कि वैक्सीन पर कीमत नियंत्रण न लगाया जाए। लेकिन यदि देश की अधिकांश जनता को वैक्सीन उपलब्ध कराना होगा तो कंपनियों के लाभों को अंकुश में रखना भी जरूरी होगा।
चूंकि वैक्सीन के प्रभावी होने और उसके दुष्प्रभावों के बारे में प्रतिकूल समाचारों के चलते देश में वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट भी बढ़ रही है। इसलिए इसके कारणों को दूर करना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। एक ओर निजी क्षेत्र की खींचतान तो दूसरी ओर सरकारी बजट की सीमा के अलावा एक तरफ वैक्सीन की वैज्ञानिकता तो दूसरी तरफ उसके वितरण की चुनौती के कारण कोरोना वैक्सीन की राह आसान नहीं रहने वाली।
देश में वैक्सीन वितरण के संदर्भ में अनेक विचार सामने आ रहे हैं। एक विचार यह भी आ रहा है कि इसके लिए निजी क्षेत्र को सशक्त किया जाना चाहिए। लेकिन निजी क्षेत्र को इसका दारोमदार सौंपने से वे उन लोगों को सबसे पहले वैक्सीन देंगे, जो इसके लिए ज्यादा पैसा देंगे। ऐसे में गरीब इस वैक्सीन से वंचित रह जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य संस्थानों के माध्यम से इसका वितरण हो और इसे आधार नंबर से जोड़ा जाए। इसका लाभ यह होगा कि विभिन्न वैक्सीनों के प्रभाव और दुष्प्रभावों के बारे में पुख्ता जानकारी उपलब्ध हो पाएगी।
[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]