[अभिषेक प्रताप सिंह] कोरोना संकट ने चीन के शासन मॉडल में व्याप्त अविश्वास को उजागर किया है। ऐसे समय में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा कोरोना संकट और उसके चीन के संबंधों के बारे में पूरी दुनिया में चर्चा की जा रही है, यह जानना बहुत जरूरी है कि यह स्वास्थ्य समस्या क्या चीन की व्यवस्था में व्याप्त अनेक खामियों को प्रदर्शित करती है। अगर हम पिछले तीन-चार माह में कोरोना संक्रमण के विस्तार को देखें तो चीन में कोरोना प्रकोप से निपटने के लिए शीघ्रता और प्रभावशीलता का बेहद अभाव था। 30 दिसंबर 2019 को डॉ. ली वनलियांग ने वुहान में निजी संदेश में एक नए किस्म के कोरोना संक्रमण के फैलने का खतरा जाहिर किया था। इसका संज्ञान लेने के बजाय, वहां के पब्लिक सिक्योरिटी ब्यूरो ने उनसे ‘अफवाह ना फैलाएं’ को लेकर एक निजी माफीनामे पर हस्ताक्षर ले लिए। दस जनवरी को कोरोना से संक्रमित होने के बाद सात फरवरी को उनका निधन हो गया। 

डॉक्टर ली की मौत और चीनी प्रशासन द्वारा ली की ओर से बताए गए नए प्रकार के संक्रमण से संबंधित जानकारियों को दबाने-छिपाने के प्रयास को चीनी सोशल मीडिया पर वहां के लोगों ने असंतोष प्रकट किया। इस संकट के दौरान ही चीनी सोशल मीडिया साइट वीवो पर ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ ट्रेंड हुआ जिसे बाद में सेंसर कर दिया गया। यह घटनाक्रम वुहान प्रशासन की घोर लापरवाही को दर्शाता है। यह समस्या तब और विकट हो गई जब चीन सरकार का ध्यान अपनी स्वास्थ्य आपातकाल सेवा में तेजी लाने के बजाय इस पूरे घटनाक्रम की लीपापोती में लग गया। अंत में चीन के राष्ट्रपति ने आदेश दिया कि इस वायरस को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाना चाहिए, लेकिन यह सब 23 जनवरी 2020 के बाद हुआ जब वुहान को पूरी तरह से बंद कर दिया गया। 

 

वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है वायरस

चीन में इस निर्णायक देरी के कारण संक्रमित लोगों को व्यापक रूप आवागमन की छूट रही, जिससे यह वायरस आज वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है।चीन की राजनीतिक व्यवस्था में व्याप्त विरोधाभास, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं और सख्त राजनीतिक नियंत्रण के बीच कोरोना संकट से निपटने में चीनी प्रशासन की असर्मथता दिखी। पिछले कुछ वर्षो में चीनी राष्ट्रपति ने अत्यधिक राजनीतिक नियंत्रण पर जोर दिया है, जिसकी समय-समय पर चीन के निवासियों ने आलोचना भी की है। इसी का नतीजा है कि चीन में बढ़ते कानूनी सुधारों व आर्थिक उदारीकरण का मसला राज्य और समाज के बीच एक नई बहस का विषय बन गया है।

लोगों का भरोसा हासिल करने के लिए सार्स संकट के हीरो को आगे किया

चीन की शीर्ष अदालत ने भी यह माना कि कोरोना वायरस के बारे में आरंभिक जानकारी को अफवाहों से जोड़ना बड़ी भूल थी। संकट के समय तानाशाही राजनीतिक व्यवस्था और उसके नेतृत्व को किसी भी प्रकार की आलोचना से दूर रखना, गैर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का चरित्र है। इस संकट के समय में सरकार और लोगों के बीच घटते सार्वजनिक विश्वास के कारण ही चीन ने बुजुर्ग मेडिकल एक्सपर्ट और एक समय में सार्स संकट के हीरो रहे डॉ. चुंग ननशान को आगे किया, ताकि लोगों का भरोसा हासिल किया जा सके। 

 

करना सत्तावादी सरकारों में व्याप्त विश्वास के संकट प्रदर्शित 

ननशान द्वारा चीन के प्रशासन की प्रशंसा कर देना और वहां इस तथ्य को प्रमुखता से प्रकाशित करना सत्तावादी सरकारों में व्याप्त विश्वास के संकट को प्रदर्शित करता है। इसके साथ ही ईरान और इटली में इसका तेजी से फैलने को कई खबरों में चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ द्वारा इन देशों में चीनी आवागमन से भी जोड़ा जा रहा है। ज्ञात हो कि इटली स्थित, लोंबार्डी और टस्कनी सबसे अधिक चीनी निवेश वाले दो क्षेत्र हैं। ऐसे समय में जब चीन अपने विकास मॉडल को दुनिया के सामने एक विकल्प के रूप में पेश कर रहा है, तब कोरोना संकट ने उनके शासन मॉडल की प्रभावशीलता और आपदा से निबटने में उनकी कमियों को भी उजागर किया है।

(लेखक जेएनयू से चीनी अध्ययन में पीएचडी कर चुके हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)