बिहार, आलोक मिश्रा। CoronaVirus:  इस सप्ताह तो बस कोरोना ही कोरोना रहा। जो भी घटनाएं हुईं, कोरोना के आगे दब गईं। जो भी शब्द उछले, वे सब कोरोना में खो गए। कोरोना के भावी खतरे से निपटने में ही सब लगे हैं। लोगों की सजगता और सरकार की सक्रियता का ही परिणाम रहा कि अभी तक सूबे में एक भी मरीज नहीं मिला है, जबकि देश में इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। हर तरफ बस इसी की चर्चा है, इस दुआ के साथ कि जल्दी इससे निजात मिले।

इस बीच महागठबंधन की एकता को झटका लगा। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) जैसे दलों को साथ लेकर हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) के जीतनराम मांझी राजद पर समन्वय समिति बनाने का दबाव बना रहे थे। पहले वाम दलों, पप्पू यादव, शरद यादव, प्रशांत किशोर की देहरी पर चक्कर लगाने के बाद कांग्रेस से भी एकता की गुहार वे पहले ही लगा चुके थे। जब इसका कोई नतीजा नहीं निकला तो तीनों दलों ने बैठक कर राजद को बड़ा भाई बता कर 31 मार्च तक कमेटी बनाने का अल्टीमेटम दे दिया। इसका भी कोई जवाब नहीं मिला तो वे नीतीश से मिल आए कि शायद इससे राजद दबाव में आए, लेकिन नतीजा निकला उल्टा।

राजद के तेजस्वी ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके उनके बेटे को एमएलसी बनाने और लोकसभा चुनाव में तीन सीटें देने का अहसान गिना डाला। खेल पलटता देख मांझी तिलमिला उठे और बहुत कुछ कह गए। इसका परिणाम यह हुआ कि गठबंधन की एकता का सुर अलापते हुए मांझी के साथी ही उन्हें मंझधार में अकेला छोड़ राजद के साथ हो चले। अब मांझी का अगला कदम क्या होगा, यह भविष्य में ही पता चलेगा। उधर नीतीश-मांझी की मुलाकात का मांझी को भले ही कोई फायदा न हुआ हो, लेकिन राजनीति के चितेरे नीतीश के इस कदम से उसकी साथी लोक जनशक्ति पार्टी को झटका जरूर लगा है। क्योंकि बिहार फस्र्टबिहारी फस्र्ट का नारा देकर जिले-जिले व्यवस्था की खामियां गिनाने वाले चिराग पासवान के बोल से जदयू काफी असहज था। नीतीश-मांझी मुलाकात उसके लिए भी एक संदेश है।

अगर आम दिन होते तो इस राजनीतिक घटनाक्रम की खासी चर्चा होती, लेकिन धीरे-धीरे कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण यह कोई खास गुल नहीं खिला सका। क्योंकि अब हर जगह कोरोना की ही चर्चा है। मुख्यमंत्री से लेकर पूरी सरकार केवल इस संकट से निपटने में जुटी है। बजट सत्र समय से पहले ही स्थगित कर दिया गया। सारे विधेयक एक ही दिन में पास कर दिए गए। अब केवल एहतियात बरतने पर ही जोर है। सभी सार्वजनिक स्थल बंद कर दिए गए हैं। 50 से अधिक लोगों का जमावड़ा नहीं लगने दिया जा रहा है। किसी भी संदिग्ध की जानकारी मिलते ही उसके उपचार की व्यवस्था की जा रही है। मंत्रीगण भी पर्याप्त सतर्कता बरतने लगे हैं। लोगों ने फूल तक लेना बंद कर दिया तो कोई वाट्सअप से ही लोगों की जरूरत पता कर रहा है। किसी के लिए फोन सहारा बन गया है तो कोई एक समय में एक से ही मिल रहा है और वह भी दूरी बनाकर। अधिकतर लोग अपने घरों में सिमट गए हैं। मार्च महीना है इसलिए जरूरी फाइलें ही देखी जा रही हैं। चूंकि स्वास्थ्य मंत्री के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल है, इसलिए वे अस्पताल-अस्पताल व्यवस्था बनाने में जुटे हैं।

इस समय जब देश के कई राज्यों में कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है, गनीमत है कि बिहार में अभी तक एक भी मरीज नहीं मिला है। लेकिन भागलपुर में सुअर, पटना में कौओं व बिहारशरीफ में कुत्तों ने इस आतंक में और इजाफा कर रखा है। लोग सजग हो चले हैं और सतर्कता भी बरत रहे हैं। गावों में बाहर से आने वाले किसी में भी बुखार आदि के लक्षण दिखते ही उसकी सूचना अधिकारियों को दी जा रही है। नेपाल से जुड़ी सीमाएं सील कर दी गई हैं और केवल एक ही रास्ता खोला गया है। इस सतर्कता के पीछे कारण यह भी है कि प्रति किलोमीटर जनसंख्या घनत्व का बिहार का आंकड़ा काफी ज्यादा है।

विश्व में यह अगर 48 है, देश में 382 है तो बिहार में 1,102 है यानी एक किलोमीटर क्षेत्रफल में 1,102 व्यक्ति निवास करते हैं। सरकार या सरकारी अमला ही नहीं आम आदमी भी जानता है कि अगर इसकी चपेट में आए तो परिणाम बहुत भयानक होगा। इसलिए हर कोई अपने स्तर से सतर्कता बरत रहा है इस दुआ के साथ कि बिहार ही नहीं यह बीमारी पूरे विश्व से खत्म हो।

[स्थानीय संपादक, बिहार]