बनारस [प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे]। भारत में सक्रिय मामलों में जब धीरे-धीरे कमी आ रही है, तो एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि देश ने कोरोना के पीक बिंदु को भले ही पार कर लिया हो, मगर ठंड में वायरस से रार छिड़ने वाली है। फिलहाल, यह आशंका यूरोप के ही लोगों को ध्यान में रखकर व्यक्त की जा रही है। कुछ हद तक यह सही भी है।

जाड़े का मौसम वायरस के लिए बेशक ज्यादा मुफीद होगा, लेकिन जैसा पहले भी कहा गया है कि अपने देश के हालात को हम यूरोप के साथ एक तराजू में नहीं तौल सकते। हमारी सरकार ने महामारी के प्रसार को जिस सावधानी से प्रबंधित किया, वह मिसाल है। ऐसा किसी भी अन्य देश का संदर्भ नहीं मिला जहां कोविड टेस्टिंग लैब की संख्या 52 से बढ़ाकर 18 हजार कर दी गई हो। अपनी असाधारण प्रकृति के कारण कोरोना वायरस मानव इतिहास में बहुत ही विध्वंसकारी है। शरीर में प्रवेश करने के बाद जब तक यह अपनी लाखों प्रतिकृति नहीं बना लेता है, तब तक व्यक्ति को पता ही नहीं चल पाता कि वह बीमार भी है। 

ऐसे में वह इसी दौरान अनजाने में अपने संपर्क में आए अनेक लोगों को वायरस का ‘उपहार’ भेंट कर चुका होता है। भारत में कोरोना वायरस के पिछले कुछ दिनों का रिकार्ड देखें तो एक बात साफ है, संक्रमण के चरम बिंदु को अब हमने पार कर लिया है। इसके साथ ही यह भी सर्वविदित है कि हमारी आनुवंशिक विविधता यूरोप से कहीं ज्यादा है। इस उच्चस्तरीय विविधता के कारण हममें खतरनाक बीमारियों से बचने की अधिक संभावना होती है। जीन में अधिक परिवर्तनशीलता ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ में सफल होने और जीवित रहने की अधिक संभावना वाली होती है। दूसरी ओर एसीई-2 जीन जो कि वायरस के लिए गेटवे का काम करता है, यूरोप के 20 फीसद लोगों के मुकाबले हमारी 60 फीसद जनसंख्या में बहुत ही मजबूत है।

भारत में 70 लाख से ज्यादा संक्रमित लोग स्वस्थ हो चुके हैं, जबकि कंप्यूटर सिमुलेशंस में दिखाया जा चुका है कि असली संक्रमणों की संख्या 10 गुनी से भी ज्यादा है। इसका सीधा मतलब यह है कि एक बड़े समूह के लोगों में कोरोना वायरस के विरुद्ध एंटीबाडी बन चुकी है, वह भी उनमें जो हाट-स्पाट वाले क्षेत्रों में रह चुके हैं। अभी तक के शोध-कार्यों से यह पता चल रहा है कि कोविड से स्वस्थ हो चुके लोगों में एंटीबाडी कुछ दिनों से कुछ महीनों तक ही रह सकती है। बहरहाल, हाल-फिलहाल कुछ ऐसे दुर्लभ केस भी रिपोर्ट किए गए हैं, जिनमें कोरोना का संक्रमण दोबारा हो गया है। 

आइसीएमआर ने कोरोना के दोबारा उभरने के लिए औसतन 100 दिन का समय निर्धारित किया है। इसलिए वैक्सीन पर अब यही उम्मीद की जा सकती है कि एंटीबाडी का प्रभाव रि-कवर्ड लोगों में खत्म होने तक लांच हो जाए। अपेक्षाकृत कम उत्परिवर्तन दर और ज्यादा जगहों पर एक ही कोविड स्ट्रेन के फाउंडर इफेक्ट के कारण इस वायरस के लिए तैयार वैक्सीन के काफी कारगर होने की उम्मीद है। इस वायरस में औसतन दो म्यूटेशन हर माह हो रहा है, जो कि मौसमी फ्लू की म्यूटेशन रेट के आधे से भी कम है।

इसको ध्यान में रखते हुए कोरोना वायरस जीनोम मौसमी फ्लू जीनोम से लगभग दोगुना है। मौसमी फ्लू का उत्परिवर्तन कोरोना वायरस के मुकाबले लगभग चार गुना तेज है। इसके इस तरह तेज म्यूटेशन के कारण ही हर मौसम में इसका टीका बनाना पड़ता है। इसके उलट कोरोना वायरस की काफी धीमी उत्परिवर्तन दर और वैक्सीन का इंतजार हमें सकारात्मक रुख अपनाने को अग्रसर कर रहा है। आनुवांशिक विविधता, बड़ी आबादी में एंटीबॉडी का निर्माण, सरकार की तैयारी और वायरस की कमजोर प्रकृति जैसे पहलुओं के बाद भी सर्दी में हमें ज्यादा सतर्कता बरतनी होगी। [जीन विज्ञानी, जंतु विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी]