पंजाब, अमित शर्मा। COVID-19: चंद महीने पहले सुनने में आया था कि पंजाब पुलिस की वर्दी का रंग बदलने वाला है। बदलाव की कवायद कर रहे अफसरों का तर्क था कि वर्दी के रंग और इसे पहनने के ढंग में बदलाव राज्य पुलिस की छवि में वांछित सुधार लाएगा, लेकिन शायद अब इसकी जरूरत नहीं। आतंकवाद के काले दिनों के बाद से भ्रष्टता और असंवेदनशीलता का पर्याय बन चुकी पंजाब पुलिस की छवि बदल दी है कोरोना संकट ने। सरकारों की तमाम कोशिशों के बाद भी आम जनता का विश्वास हासिल करने में जो पुलिस तीन दशकों से नाकाम साबित हो रही थी, उसने केवल तीस दिनों में वह मुकाम हासिल कर लिया और अब विश्वास और सुरक्षा का दूसरा नाम बन गई है पंजाब पुलिस।

कोरोना संकट के चलते यूं तो हर राज्य की पुलिस सरहानीय कार्य कर रही है, लेकिन देशभर में यह मान केवल पंजाब पुलिस को ही प्राप्त हुआ है कि जहां एक तरफ विश्व के सवरेत्तम पुलिस बल यानी स्कॉटलैंड यार्ड के अधिकारियों ने पंजाब पुलिस की प्रतिबद्धता और पराक्रम का सार्वजनिक गुणगान किया है, वहीं तीन सप्ताह में तीन से अधिक बार ट्विटर पर पंजाब पुलिस साडा मान हैशटैग टॉप तीन ट्रेंड्स में अपना स्थान दर्ज कर चुका है। संजय दत, आमिर खान, आलिया भट्ट और गुलजार सरीखी बॉलीवुड हस्तियों ने न सिर्फ महामारी के दौरान कार्यरत पंजाब पुलिस के जवानों के वीडियो क्लिप्स शेयर किए हैं, बल्कि उनके धैर्य, संयम और निष्काम सेवा की तारीफ भी की है। दरअसल लॉकडाउन के दौरान बीते एक महीने में सूबे की पुलिस आमजन के लिए एक नायक बन कर सामने आई है। वह इन विषम परिस्थितयों में घर-घर जाकर राशन और चिकित्सा के इंतजाम करती हुई दिख रही है। इसका अनुसरण अन्य राज्यों की पुलिस भी करने लगी है।

जिला रूपनगर में जहां एसएसपी के आह्वान पर 100 से अधिक सेवामुक्त अधिकारियों ने (रिटायरमेंट के 12 वर्ष बाद) बिना वेतन दोबारा ड्यूटी च्वॉइन कर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ने की एक अनुकरणीय पहल की, वहीं मानसा जिला के पुलिस प्रमुख द्वारा कफ्यरू के दौरान जन्मदिन पर पीसीआर मोटरसाइकिल पर हैप्पी बर्थडे की धुन बजाकर घरों में केक पहुंचाने की एक ऐसी शुरुआत की जो कुछ ही दिनों में लॉकडाउन के दौरान अन्य राज्यों की पुलिस की दिनचर्या का भी एक अहम हिस्सा बन गई।

जरूरतमंदों की मदद के लिए राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा भेजी गई अनुदान राशि पर निर्भर न होकर बरनाला जिले के पुलिस प्रमुख द्वारा जिस तरह निजी स्तर पर अपनी जेब से लाखों की राशि देकर कोरोना कॉर्प्स फंड बनाकर अनेक परिवारों को लगातार राशन मुहैया कराया जा रहा है वह नि:संदेह देशभर में एक अनूठा उदाहरण बनकर उभरा है। लॉकडाउन का विरोध करते कुछ उद्दंड लोगों द्वारा एक पुलिस अधिकारी हरजीत सिंह का हाथ काटने जैसी नृशंस घटना के बाद भी पटियाला पुलिस ने जिस धैर्य और संयम का परिचय दिया उस कार्यशैली ने पंजाब पुलिस के इतिहास में जज्बात, समर्पण और मानवीय संवेदनाओं की एक ऐसी नई इबारत जोड़ दी जो सोमवार को एक बार फिर मैं भी हरजीत सिंह हैशटैग से सोशल मीडिया पर ट्रेंड करती दिखी।

हाल ही में दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा 22 राज्यों के पुलिस बलों की ‘छवि, प्रदर्शन और धारणा’ पर किए गए एक अध्ययन में साफ तौर पर सामने आया था कि बाकी राज्यों की अपेक्षा पंजाब में पुलिस के डर की प्रतिशतता, विशेषकर सिखों में, सबसे अधिक है। इस शोध रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब पुलिस के प्रति बनी इस अवधारणा का सीधा संबंध 1970 के दशक के बाद से राज्य में फैले आतंकवाद और उससे हुई पुलिस जंग से है। दशकों से चली आ रही इस अवधारणा के मद्देनजर तत्कालीन राज्य सरकारों समेत पंजाब पुलिस की तमाम कमेटियां और कमीशन एक अर्से से इसी और प्रयासरत हैं कि कैसे इस छवि से छुटकारा पाया जाए।

इसी बिगड़े अक्स को सुधारने के लिए जहां फिल्लौर स्थित पंजाब पुलिस अकादमी में अनेकों रिसर्च अभियान समेत असंख्य ट्रेनिंग सेशन चलाए जा चुके हैं वहीं विश्व की सबसे सभ्य छवि वाली स्कॉटलैंड पुलिस के साथ पंजाब पुलिस एक विशेष अनुबंध के तहत एक कार्ययोजना पर एक वर्ष लगातार काम भी कर चुकी है, लेकिन छवि सुधार को लेकर कोई सकारात्मक नतीजे हासिल नहीं कर सकी। शायद इसका प्रमुख कारण रहा कि वर्दीधारी कभी भी आमजन की जरूरतों के अनुरूप न तो कभी अपने को ढाल सके और न ही जनता का भरोसा हासिल कर सके, लेकिन पिछले तीस दिनों में कोरोना से छिड़ी जंग में अपने एक उच्च अधिकारी को खोने और दस से ज्यादा साथियों के कोरोना संक्रमित होने के बाद भी प्रतिकूल परिस्थितियों में जिस कदर पंजाब पुलिस के जवानों ने आम जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास किया है ऐसे में नि:संदेह छवि सुधार की इस लंबी जंग में अबकी बार जीत उसी पंजाब पुलिस की होगी जो यह मानकर चल रही है कि वो परों को जख्मी करता रहे, करने दो, हम मुतमईन हैं,

[स्थानीय संपादक, पंजाब]