प्रदीप। हाल ही में केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन के कार्यालय की ओर से एक एडवाइजरी जारी की गई है, जिसमें बंद जगहों में कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलने की बात कह गई है। एडवाइजरी में खुली और हवादार जगहों और उचित इंडोर वेंटिलेशन पर विशेष जोर दिया गया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने भी इसी एडवाइजरी को आधार बनाकर अपनी एक रिपोर्ट में कोविड-19 और अन्य संक्रामक रोगों को प्रसारित करने में बंद और दमघोंटू इमारतों की भूमिका को लेकर आगाह किया है। रिपोर्ट में दो घरों के रोशनदान, बालकनी, दरवाजों और खिड़कियों में दो गज की भी दूरी न होने को खतरनाक बताया गया है। निष्कर्ष यह कि घर में वेंटिलेशन का कोरोना संक्रमण से सीधा संबंध है। घर और दफ्तर को जितना हवादार बनाएंगे, संक्रमित होने का जोखिम उतना ही कम होगा।

आज के बदलते परिदृश्य को देखें तो हमारे जीवन में कुछ भी कोविड-19 महामारी से अछूता नहीं रहा है। कामकाज, स्कूल, धार्मिक स्थल, परिवार, सामाजिक समारोह और पर्व-त्योहार समेत आवागमन आदि इससे व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं। कोविड ने घरों में वेंटिलेशन, हीटिंग और एयर कंडीशनिंग (एचवीएसी) सिस्टम के डिजाइन में भी आमूल-चूल परिवर्तन और सुधार को जरूरी बना दिया है। मौजूदा वक्त में बन रहे ज्यादातर मकानों, इमारतों और कार्यालयों आदि में वेंटिलेशन नहीं के बराबर या फिर बहुत कम है, जो हवा से वायरस के फैलाव को बढ़ावा दे रही हैं। हमारे घर जो तीन-चार दशक पहले हवादार आंगनों के रूप में डिजाइन किए जाते थे, उसको हमने पश्चिम से नकल किए गए डिजाइन से प्रेरित होकर एक महामारी के प्रजनन कक्ष (ब्रीडिंग चैंबर) में तब्दील कर दिया है। पश्चिमी दिखावे से प्रेरित घरों के निर्माण में कई कारणों से वास्तुकारों और बिल्डरों का प्रभावी रूप से समर्थन हासिल है। हमें यह समझने की जरूरत है कि पश्चिम से नकल किए गए डिजाइन से बने ज्यादातर घर महज एसी के उपयोग के लिए बनाए डिब्बे भर हैं। बेशक, अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने और हमारी इमारतों को बीमार करने के लिए एयर कंडीशनिंग उद्योग द्वारा इन वास्तुकारों और बिल्डरों को प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रोत्साहन भी मिलता है।

वेंटिलेशन पर पर्याप्त ध्यान : इस बारे में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में ‘सस्टेनेबल सिटीज प्रोग्राम’ के एक संबंधित विशेषज्ञ का कहना है कि तीन दशक पहले इमारतों को इस प्रकार से डिजाइन किया जाता था कि उनमें एक आंगन होता था, वेंटिलेशन के लिए पर्याप्त खिड़की, दरवाजे, बालकनी और रोशनदान भी होते थे। लेकिन शहरों की जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ-साथ जमीन घटती गई और बिल्डरों व एयर कंडीशनिंग उद्योग की मिलीभगत से इमारतों की ऐसी डिजाइन बनने लगी, जिसमें कम क्षेत्रफल में भी अधिक जगह देने के लिए उसे पूरी तरह से ढका जाने लगा। वेंटिलेशन की कमी महसूस न हो, इसके लिए एसी लगाए जाने लगे। हालांकि एसी के अपने लाभ हैं, लेकिन वह प्राकृतिक वेंटिलेशन का विकल्प नहीं है। इसलिए हमें अपने घरों को इस तरह डिजाइन करने की जरूरत है, जिसमें प्राकृतिक वेंटिलेशन की समुचित व्यवस्था हो। केंद्र सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा जारी की गई एडवाइजरी के मुताबिक प्राकृतिक वेंटिलेशन कोरोना के खिलाफ कम्युनिटी डिफेंस सिस्टम जैसा है।

दूसरी ओर ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी कई बार कहा है बंद जगह के मुकाबले खुली जगह में वायरस के फैलने की आशंका कम होती है, इसलिए घरों की खिड़कियों को खुला रखें। हालांकि इस बारे में इंटरनेट मीडिया पर कई तरह की भ्रामक सूचनाएं प्रचारित-प्रसारित की जा रही हैं, जैसे कि यह अफवाह कि कोरोना बालकनी या खिड़की से आती हवा के मार्फत हमारे घरों में दाखिल हो सकता है, इसलिए खिड़की-दरवाजे को हमेशा बंद रखें। इस अफवाह के पीछे कई ऐसी रिसर्च रिपोर्टें हैं, जिनके अनुसार कोरोना वायरस हवा के माध्यम से फैल रहा है। इस साल अप्रैल महीने में प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘द लांसेट’ ने भी दावा किया था कि कोरोना वायरस हवा से फैल रहा है। वास्तव में यह हवा के जरिये फैल रहा है। तो फिर हम क्यों न अपने घर के खिड़की-दरवाजों को हमेशा बंद रखें? क्या आंगन, बालकनी, खिड़कियां-दरवाजे, रोशनदान आदि के जरिये हवा में घुला कोरोना वायरस हमारे घरों में नहीं घुस जाएगा?

घर के भीतर कैसे होता है वायरस का प्रसार : सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि जब विज्ञानी कहते हैं कि कोरोना वायरस हवा से भी फैल रहा है तो इसका क्या मतलब है? क्या यह उसी तरह फैल रहा है जैसे आग लगने पर धुआं आसपास की हवा में फैल जाता है? ड्रॉपलेट्स और एयरोसोल्स के माध्यम से वायरस ज्यादा फैलते हैं। ड्रॉपलेट्स दो मीटर तक हवा में जा सकते हैं, जबकि एयरोसोल्स 10 मीटर तक हवा के साथ जा सकते हैं। एयरोसोल यानी हवा में पांच माइक्रोमीटर से छोटे ऐसे कणों की मौजूदगी जो रोगाणुओं से भरा हो। जबकि ड्रॉपलेट्स सांस की बूंदों से निकलेवाले पांच माइक्रोमीटर से बड़े कण होते हैं जो ज्यादा दूर तक नहीं जा सकते हैं। मरीज की सांस से जो कण निकलते हैं, वे किसी झटके के साथ नहीं निकलते। हालांकि छींक या खांसी में हम ऐसी झटकेदार बौछार की कल्पना कर सकते हैं, लेकिन तब भी वे ज्यादा दूर नहीं जा सकते, क्योंकि कोरोना वायरस के पंख नहीं होते, न ही वह कोई गैस है। वैसे भी किसी जीवित शरीर के बाहर इस वायरस का वजूद काफी कम समय के लिए होता है। इसी जीवित शरीर से वायरस छींक, खांसी और थूक के जरिये हवा में फैलता है।

हमारे घर में ऐसा कोई लक्षणरहित मरीज भी हो सकता है, जिसे न खांसी है, न जुकाम और न ही वह छींकता है। मगर वह सांस तो लेता ही है, बातचीत भी करता है। क्या उस लक्षणरहित मरीज के मुंह से निकलने वाले कोरोनायुक्त ड्रॉपलेट्स और अन्य कण हमारे लिए खतरा नहीं बन सकते? बन सकते हैं और नहीं भी। वजह यह है कि इक्का-दुक्का वायरस किसी को बीमार नहीं कर सकते, बीमार करने के लिए लाखों की तादाद में वायरस चाहिए और यह तभी होगा, जब घर में मौजूद यह लक्षणरहित मरीज स्वयं को किसी बंद कमरे तक सीमित रखे। कमरे में उसकी गतिविधियां सीमित होने से उसकी सांस से जो ड्रॉपलेट्स और एयरोसोल्स निकलेंगे, वे वहीं कुछ वक्त तक हवा में तैरते रहेंगे और धीरे-धीरे उनकी तादाद इतनी अधिक हो जाएगी कि यदि बाहर से को व्यक्ति उस कमरे में जाए और 10-15 मिनट तक वहां रहे तो वह संक्रमित हो सकता है। जैसे अगर किसी बंद कमरे में धुआं फैल जाए तो वह कमरे में बंद किसी का भी दम घोंट सकता है। मगर उस कमरे की खिड़कियां खोल दी जाएं तो उसके दम घुटने का खतरा कम हो जाएगा।

इसलिए आवश्यक यह है कि कोरोना फैलने के डर से घर के खिड़की-दरवाजे को बंद करके रखने के बजाय उसे खोलकर रखा जाए। इससे अगर घर में किसी लक्षणरहित मरीज के मुंह से कोरोनायुक्त ड्रॉपलेट्स और एयरोसोल्स कण निकल भी रहे होंगे तो वे नष्ट हो जाएंगे या बाहर चले जाएंगे। यदि घर या कार्यालय में समुचित वेंटिलेशन न हो तो ये कण वहीं इकट्ठे होने लगते हैं, जिससे संक्रमण फैलने की गुंजाइश बढ़ जाती है। जिस कमरे में एसी के कारण खिड़कियां और दरवाजे बंद होते हैं, उनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। बंद कमरे में बाहरी हवा का आवागमन नहीं हो पाता है, जिससे संक्रमित हवा कमरे के अंदर ही रहती है। इसके विपरीत खुली-हवादार जगहों में संक्रमण फैलने के आसार बहुत कम होते हैं, क्योंकि वायरस के कण शीघ्र ही हवा में एक निश्चित दूरी तक फैलकर नष्ट हो जाते हैं। इसलिए दो घरों की खिड़कियों, रोशनदान, बालकनी और दरवाजों के बीच दो से पांच गज की दूरी बेहद जरूरी है।

सिक बिल्डिंग सिंड्रोम से बढ़ रही समस्या : हमारे देश में भले ही भवनों का निर्माण आधुनिक तरीके से पिछले कुछ दशकों से आरंभ हुआ है, परंतु अधिकांश पश्चिमी देशों में इसकी शुरुआत बीसवीं सदी के आरंभ में ही हो चुकी थी। लेकिन इन आधुनिक इमारतों में वे पिछले कई दशकों से प्राकृतिक वेंटिलेशन की कमी से जूझ रहे हैं। इस समस्या और उसके दुष्प्रभाव को समझने-समझाने के लिए इन देशों ने ‘सिक बिल्डिंग सिंड्रोम’ शब्द भी गढ़ा। हम लोगों ने भी पाश्चात्य वास्तुकला से प्रेरित होकर खिड़कियों एवं झरोखों को अवरुद्ध करना शुरू किया, परिणामस्वरूप हमारे बड़े-बड़े कार्यालय, इमारतें, घर एक ऐसे दमघोंटू जगह में तब्दील हो गए जहां एसी-कूलर की हवा तो होती है, लेकिन प्राकृतिक वेंटिलेशन नहीं। वैसे भी लोगों को आंगन, लॉन, बरामदा और अहाते के लिए स्थान छोड़ना जमीन की बर्बादी लगती है।

घरों में हवा आने-जाने के समुचित प्रबंध से वायरस का दबाव कम होता है, और जिन घरों, कार्यालयों में हवा के आने-जाने की समुचित व्यवस्था नहीं होती, वहां वायरस का लोड ज्यादा होता है। हवादार जगह होने की वजह से एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक वायरस पहुंचने का जोखिम कम हो जाता है। हाल ही में ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक घर के भीतर की साफ हवा न केवल कोविड महामारी से लड़ने में हमें मदद करती है, बल्कि यह फ्लू, टीबी, बैक्टीरियल निमोनिया या फिर अन्य किसी भी श्वसन संक्रमण के फैलने के खतरे को भी कम करती है। विभिन्न संक्रामक रोगों से बचने के लिए इमारतों में क्रॉस वेंटिलेशन होना बेहद जरूरी है।

नेशनल बिल्डिंग कोड (स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए घर के डिजाइन को विनियमित करने वाला भारत सरकार का आधार दस्तावेज) के मुताबिक प्राकृतिक वेंटिलेशन और यांत्रिक वेंटिलेशन भवन निर्माण के अनन्य पहलुओं में से एक है। लिहाजा, हमें आगे से ऐसी इमारतों को डिजाइन करना चाहिए जिनमें वेंटिलेशन सिस्टम का मिश्रित मोड हो और सरकारों द्वारा भवन निर्माण में इसे अनिवार्य करने की जरूरत है। जिन स्थानों पर सेंट्रलाइज्ड एसी का उपयोग होता है वहां रूफ वेंटिलेटर्स और फिल्टर्स पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। यातायात के सार्वजनिक वाहनों में हवा का क्रॉस फ्लो भी जरूरी है।

[विज्ञान मामलों के जानकार]