लालजी जायसवाल। किसी भी लोकतंत्र को जर्जर बनाने में अपराध और भ्रष्टाचार का बड़ा योगदान होता है। जहां एक ओर देश में अपराध का स्तर लगातार बढ़ रहा है, वहीं भ्रष्टाचार में भी देश पीछे नहीं है। इसका पूरा दारोमदार गिरती राजनीतिक संस्कृति को जाता है। गांधीजी ने कहा था कि राजनीति में नैतिकता और सिद्धांत दोनों बहुत जरूरी होते हैं। लिहाजा अगर राजनीति सिद्धांतों पर चलती तो ठीक भी था, लेकिन आज की राजनीतिक संस्कृति ऐसी हो गई है कि स्व-हित व राजनीतिक लाभ के चलते लोग लोकतांत्रिक ढांचे को जर्जर बनाते जा रहे हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी सूचकांक के अनुसार भारत भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों की सूची में 80वें पायदान पर है। वर्तमान समय में देखा जाए तो देश में ऐसा कोई महकमा नहीं बचा होगा, जहां रिश्वत का चलन न हो। आज देश में जितनी तेजी से जनसंख्या वृद्धि हुई है, ठीक उसी के समानांतर भ्रष्टाचार और अपराध ने भी अपनी जड़ें मजबूत की हैं। देखा जाए तो भ्रष्टाचार और अपराध की असली जड़ राजनीति में ही है, क्योंकि आज राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण हो चुका है, जिसके चलते अपराधी, अधिकारी, नेता और व्यापारी आपसी मिली-भगत से लोकतंत्र के ढांचे को खोखला करते जा रहे हैं। जहां अधिकारी अपराधी को संरक्षण देता है, वहीं नेता अधिकारी और अपराधी दोनों की रक्षा करते हैं, जिससे चुनाव में इनसे फायदा लिया जा सके।

जब आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का प्रवेश लोकतंत्र में होगा, तो देश में रामराज्य कैसे आएगा? वैसे नियम तो यह है कि जो व्यक्ति राष्ट्रद्रोह, हत्या, दुष्कर्म, डकैती, अपहरण आदि में लिप्त पाया जाएगा, उसे चुनाव लड़ने से वंचित रखा जाएगा। लेकिन वंचित होते आज तक किसी को भी नहीं देखा गया है, बल्कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का राजनीति में प्रवेश आज भी उसी गति से हो रहा है। यह छिपा नहीं है कि अपराधियों को राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होता रहा है। नेताओं और नौकरशाहों की साठ-गांठ के चलते देश आज अपराध के ऐसे दलदल में जा फंसा है, जहां से निकल पाना आसान नहीं है। समय आ गया है कि हम अपनी आपराधिक न्याय प्रणाली पर नए सिरे से दृष्टि डालें। सरकारी आंकड़ों के अनुसार उच्चतम न्यायालय में 58,700 तथा उच्च न्यायालयों में करीब 44 लाख और जिला अदालतों व निचली अदालतों में लगभग तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं। न्यायाधीशों की कमी इसका कारण है।

राजनीति का अपराधीकरण न हो सके, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि राजनीतिक दल जब भी किसी दागी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारे तो 48 घंटे में सार्वजनिक रूप से यह बताए कि ऐसा उन्होंने क्यों किया? भारतीय राजनीति को अपराध मुक्त बनाना, खासकर अपराधियों को संसद और विधानसभाओं में पहुंचने से रोकना, पिछले कुछ दशकों से गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। ऐसे में राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ सर्वोच्च अदालत की यह पहल सराहनीय है, जिसका कठोरता से पालन होना चाहिए।

न्यायिक दुनिया में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल कर चुके केशवानंद भारती न तो कभी जज रहे और न वकील। उनकी ख्याति का कारण तो बतौर मुवक्किल सरकार द्वारा अपनी संपत्ति के अधिग्रहण को अदालत में चुनौती देने से जुड़ा रहा है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति चाहे तो अपना योगदान लोकतंत्र के मजबूत ढांचे के निर्माण में दे सकता है, बस उसे अपराधी प्रवृत्ति के उम्मीदवारों का बहिष्कार करना होगा।

[शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]