[ ब्रिगेडियर आरपी सिंह ]: हाल में संपन्न बांग्लादेश चुनाव में प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग ने ऐतिहासिक जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की है। हालांकि विपक्षी दलों ने चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए उन्हें खारिज किया है। उनका आरोप है कि चुनाव में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुई हैं। बहरहाल हसीना की जीत के तुरंत बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें जीत की मुबारकबाद दी। साथ ही उन्होंने यह विश्वास भी जताया कि दूरदर्शी नेतृत्व में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते लगातार बेहतरी की ओर अग्र्रसर होंगे। बांग्लादेश को लेकर मोदी ने भारत की प्राथमिकता को भी दोहराया। उन्होंने कहा कि भारत क्षेत्रीय विकास, सुरक्षा एवं सहयोग के लिए बांग्लादेश को घनिष्ठ सहयोगी मानता है और वह भारत की ‘पड़ोसियों को प्राथमिकता’ वाली नीति के केंद्र में है।

हसीना 1981 से ही अवामी लीग की अगुआई कर रही हैं और इस चुनाव में भी वह एक दशक से शानदार प्रदर्शन कर रही अर्थव्यवस्था और बढ़ते वस्त्र निर्यात जैसी उपलब्धियों के दम पर चुनावी मैदान में उतरी थीं। बांग्लादेश चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र निर्यातक बन गया है। करीब 16 करोड़ की आबादी वाले मुस्लिम बहुल बांग्लादेश की चौथी बार प्रधानमंत्री बनीं 71 वर्षीय हसीना दक्षिण एशिया की एक कद्दावर नेता के रूप में उभरी हैं।

बांग्लादेश 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र राष्ट्र बना। इससे पहले भीषण रक्तपात हुआ जिसमें पाकिस्तानी सेना द्वारा नरसंहार में 30 लाख निर्दोष लोग मारे गए। एक करोड़ से भी अधिक लोगों ने भारत में शरण ली। उस दौर के तमाम जख्म आज भी बांग्लादेशियों के जेहन में ताजा हैं। उस भयावह दौर में भारत ने ही उनकी मदद की। इसके साथ ही दोनों देशों के रिश्ते भी ऐतिहासिक रूप से अटूट बन गए। एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के 47 वर्षों के इतिहास में दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े तख्तापलट हुए।

डेढ़ दशक तक सैन्य तानाशाही भी कायम रही जिसमें कमान मुख्य रूप से पाकिस्तान परस्त और भारत से बैर रखने वाले शासकों के हाथ में रही। इस दौरान स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास के रूप-स्वरूप को बिगाड़ कर भारत के योगदान को भी भुला दिया गया। बांग्लादेश आइएसआइ के हाथों में खेलने लगा और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय अलगाववादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गया। बांग्लादेश के राष्ट्रपिता और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान की 1975 में उनके परिवार के कुल 28 सदस्यों सहित हत्या कर दी गई थी जिनमें उनके तीन बेटे भी शामिल थे। हसीना और उनकी छोटी बहन रेहाना इसलिए बच गईं, क्योंकि उस समय वे दोनों जर्मनी में थीं। बांग्लादेश की राजनीति में बीते तीन दशकों से दो बेगमों-खालिदा जिया और शेख हसीना का ही वर्चस्व रहा है। इस दौरान खालिदा दो बार तो शेख हसीना चौथी बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनी हैं। 1980 के दशक में जब वे जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद की सैन्य तानाशाही के खिलाफ मिलकर संघर्ष कर रही थीं तो उनके बीच काफी दोस्ताना रिश्ता था, लेकिन बाद में वैचारिक मतभेद बढ़ते गए।

खालिदा जिया ने बीएनपी की कमान संभाली जिसका झुकाव जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी धड़ों की ओर था। पार्टी की सोच भी पाकिस्तान परस्त और भारत विरोधी है। खालिदा के दो कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश रिश्ते रसातल में चले गए। यह स्थिति बांग्लादेश में एक बड़े तबके को रास नहीं आई जो भारत से बेहतर रिश्तों का हिमायती है। बीएनपी और जमात के संरक्षण में बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ अभियान चलाने वाले षड्यंत्रकारियों को अभयदान और जनसंहार में पाकिस्तानी फौज की मदद करने वालों को सत्ता की मलाई खाते देखने से जनता बहुत कुपित हो गई।

शेख हसीना के लिए उमड़े अपार जनसमर्थन में यह भाव झलका भी, क्योंकि उन्होंने युद्ध अपराधियों से कोई ममता नहीं दिखाई और वे जमात के उन नेताओं को फांसी पर चढ़ाने में नहीं हिचकीं जो खालिदा की बीएनपी-जमात गठबंधन सरकार में मंत्री हुआ करते थे। खालिदा के बड़े बेटे तारिक जिया बीएनपी-जमात के कुशासन के मुख्य सूत्रधार थे। तारिक ने 2008 में कई मामलों में जमानत हासिल कर ब्रिटेन में शरण ले ली जो अब भगोड़ों को शरण देने के लिए कुख्यात हो गया है।

शेख हसीना की अवामी लीग अपेक्षाकृत सेक्युलर पार्टी है। अन्य मुस्लिम देशों के उलट बांग्लादेशियों की मुस्लिम के रूप में एक धार्मिक पहचान के अलावा बंगाली के तौर पर सांस्कृतिक पहचान भी हैर्। ंहदू और मुसलमान दोनों बंगाली पहचान के दायरे में आते हैं और इससे सहजीवन की सहज प्रवृत्ति विकसित होती है। अधिकांश मुस्लिम देशों के उलट बांग्लादेशी नववर्ष की शुरुआत भी बैसाखी के दिन से होती है और यहां रवींद्र संगीत मुख्यधारा का संगीत है। बांग्लादेश का राष्ट्रगीत भी रवींद्रनाथ टैगोर का ही लिखा हुआ है। वहां अधिकांश घरों में मुस्लिम हस्तियों के साथ ही टैगोर और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीरें भी मिल जाएंगी।

असल में तेज आर्थिक वृद्धि, आतंकवाद पर अंकुश, युद्ध अपराधियों पर कार्रवाई और स्थायित्व ने अवामी लीग की जीत में अहम भूमिका निभाई। हालांकि चुनाव में गलत तौर-तरीकों के इस्तेमाल को भी खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि बांग्लादेश में कोई भी चुनाव ऐसे आरोपों और हिंसा से मुक्त नहीं रहा। सीमावर्ती भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल की ही तरह बाहुबल और हिंसा बांग्लादेशी सियासत का भी एक अहम पहलू है। एक गरीब देश में आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने और अपने मुल्क में दमन का दंश झेलने वाले र्रोंहग्या मुसलमानों को शरण देने के लिए वैश्विक बिरादरी ने भी शेख हसीना को सराहा। मानव विकास सूचकांक में बांग्लादेश ने ऊंची छलांग लगाई है। उसके पास अनाज का अधिशेष भंडार है। विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत और आबादी नियंत्रण में है। मगर आलोचक हसीना पर सख्ती से शासन और विपक्ष के पर कतरने के आरोप लगाते हैं।

हसीना की सत्ता में वापसी से भारत-बांग्लादेश संबंधों में निरंतरता बनी रहेगी। भारत बांग्लादेश को अहम पड़ोसी मानता है और उसके साथ बेहतर संबंधों के लिए प्रतिबद्ध है जिसकी अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक-भौगोलिक रूप से भारत के पूर्वी भाग से जुड़ी हुई है। पूर्वोत्तर भारत के विकास और भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ की सफलता में बांग्लादेश की महत्वपूर्ण भूमिका होगी जिसका लाभ यह पूरा क्षेत्र उठाएगा। हसीना अपने पिता शेख मुजीब की समृद्ध विरासत की प्रतिनिधि हैं जिन्होंने अकेले दम पर पाकिस्तान से लोहा लिया था। मैंने उनके भाई शहीद कैप्टन शेख कमाल को प्रशिक्षित किया और उन्हें भी निजी रूप से जानता हूं तो इस आधार पर कह सकता हूं कि हसीना की सरकार में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते एक नया क्षितिज गढ़ेंगे।

( लेखक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी हैं )