नई दिल्ली (अमिताभ कांत)। एक वर्ष बाद जीएसटी यानी वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली स्थिर नजर आने लगी है। इस एक वर्ष में अल्पकालिक व्यवधान के बावजूद अर्थव्यवस्था पटरी पर रही और इसका लाभ उपभोक्ताओं यानी आम लोगों को मिला। जीएसटी सभी दलों की सर्वसम्मति से लाया गया और जीएसटी परिषद के तहत केंद्र और सभी राज्यों के बीच सहमति से काम किया गया। यह एक अनूठी उपलब्धि है- खासकर यह देखते हुए कि परिषद में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं और प्राथमिकताओं वाले राज्य शामिल हैं। यह केवल सहयोगपूर्ण संघवाद के सिद्धांत से ही संभव था। यह केंद्र सरकार के सभी स्तरों पर इस सुधार को दिए गए महत्व को भी दर्शाता है। एक वर्ष में जीएसटी में 40 लाख अतिरिक्त करदाता शामिल हुए हैं। राजस्व संग्रह के रुझान अच्छे रहे हैं। औसत मासिक संग्रह 90,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा है। मैं यह विशेष रूप से दर्शाना चाहता हूं कि जीएसटी ने देश के आम उपभोक्ताओं को कैसे प्रभावित किया है।

सरकार के लिए गरीब और मध्य वर्ग सर्वोच्च प्राथमिकता में हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, डिजिटलीकरण और कई अन्य क्षेत्रों में कई नीतिगत उपायों के माध्यम से आम आदमी के जीवन को अधिक आसान और गुणवत्तापूर्ण बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जीएसटी ने आम आदमी पर टैक्स के बोझ को काफी हद तक कम किया है। जीएसटी से पहले, उपभोक्ताओं को उत्पाद शुल्क, सेवा कर, वैट, चुंगी, बिक्री कर इत्यादि जैसे कई करों का भुगतान करना पड़ता था। इनमें से कई कर अंतिम उपभोक्ता के लिए अदृश्य बने रहे, फिर भी उन पर उनका बोझ पड़ता था। एक कर का दूसरे पर प्रभाव पड़ने की वजह से अप्रत्यक्ष करों का एक बड़ा बोझ अस्तित्व में था। जीएसटी से बड़ी संख्या में करों की जगह एकल कर व्यवस्था लागू हुई जिससे कई उपभोक्ता वस्तुओं पर कर की दर कम हुई है।

जीएसटी के माध्यम से सरकार ने उपभोक्ताओं पर अप्रत्यक्ष करों के बोझ में एक महत्वपूर्ण कटौती की है। हालांकि बड़े पैमाने पर उपभोग की वस्तुओं को जीएसटी से छूट दी गई है, तथापि अन्य मूलभूत खाद्य पदार्थ जैसे दूध पाउडर, मसाले, वनस्पति तेल आदि निम्नतम स्लैब के तहत आते हैं, जो पिछली कर दरों की तुलना में भी कम है। चॉकलेट, चीनी कन्फेक्शनरी, नमकीन, मिनरल वाटर सहित अन्य खाद्य पदार्थों में भी 3-10 फीसद की सीमा में कर कटौती की गई। घरों में आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं जैसे टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू, केश तेल, डिटर्जेंट, वाशिंग पाउडर आदि के लिए अंतिम उपभोक्ता पर टैक्स का भार पूर्ववर्ती 26-28 फीसद से घटकर जीएसटी शासन के तहत 18 फीसद रह गया है। एक तरह से देखें तो 10 फीसद तक की कटौती हुई है। कई अन्य उपभोक्ता वस्तुओं पर भी कर कम हो गया है। उदाहरण के लिए फर्नीचर पर कर की दरें 28 फीसद से घटकर 18 फीसद रह गई हैं। बांस के फर्नीचर में तो कर की दर 23 फीसद से घटकर 12 फीसद ही रह गई है। छोटी कारों में कर की दर लगभग 40 फीसद से कम होकर आम तौर पर 29 फीसद रह गई है और कार निर्माताओं द्वारा खुदरा कीमतों में कटौती के कारण उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है।

स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी कई महत्वपूर्ण सेवाएं भी जीएसटी से मुक्त हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित उत्पादों जैसे कि कई दवाओं और उपकरणों में कर की दरों में कमी हुई है। 5-20 फीसद तक वैट के अतिरिक्त कुल बिल राशि पर 6 फीसद सेवा कर की तुलना में रेस्तरां, खाने के स्थानों जैसी सेवाओं पर भी कर घटाकर 5 फीसद किया गया है। हाउसिंग सोसायटी के आरडब्ल्यूए की सेवाओं को जीएसटी से 7,500 रुपये तक की छूट दी गई है जो जीएसटी से पहले 5,000 रुपये हुआ करती थी। हालांकि इनमें से कुछ दरों में कटौती के लिए मूल जीएसटी दर संरचना में व्यवस्था की गई थी तथापि और अधिक कटौतियां जीएसटी की शुरुआत के कुछ महीनों बाद की गई थीं। कुल मिलाकर आम उपभोक्ताओं पर जीएसटी का लाभकारी प्रभाव दिख रहा है।

जीएसटी की शुरुआत के बाद से भारत में उपभोक्ता मुद्रास्फीति मामूली बनी हुई है। इसने सरकार द्वारा निर्धारित 6 फीसद सीमा एक बार भी पार नहीं की है। इसके विपरीत कई अन्य देशों में जीएसटी के कारण उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में शुरुआती बढ़ोतरी हुई जिसके कारण मुद्रास्फीति बढ़ी। उदाहरण के लिए जीएसटी के अमल के तुरंत बाद विभिन्न देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई और ब्रिटेन एवं न्यूजीलैंड में तो दो अंकों तक पहुंच गई। भारत का सकारात्मक अनुभव जीएसटी के कई टैक्स स्लैब का भी परिणाम है। इसने गरीब और मध्य वर्ग के उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की है। कम कर दरों के बावजूद सरकार ने अच्छा राजस्व संग्रह किया है। कर अनुपालन में लगातार वृद्धि से सरकार करों में कटौती के एक और दौर को चलाने में सक्षम होगी। इससे जीएसटी कर संरचना और सरल हो सकेगी। कम करों के अलावा, उपभोक्ताओं को माल की कम कीमतों से भी फायदा होगा।

(लेखक नीति आयोग के सीइओ हैं)