लालजी जायसवाल। किसी भी लोकतांत्रिक देश की मजबूती में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका का होना पूर्व शर्त होती है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका हमेशा देश के लोकतांत्रिक हितों के अनुरूप ही कार्य करती है। एक प्रकार से कहें तो स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका किसी भी लोकतांत्रिक देश की रीढ़ की हड्डी के समान ही होती है। नीति आयोग ने सुझाव दिया था कि निचली अदालतों में न्यायाधीशों के चयन के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन किया जाए, जिससे जजों की कमी से जूझ रही न्यायपालिका में युवाओं को आर्किषत किया जा सके।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का विचार कोई नया नहीं है। विधि आयोग तीन बार अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन की सिफारिश कर चुका है।कोरोना महामारी से प्रभावित न्यायिक व्यवस्था को गति देने के लिए केंद्र सरकार को देश में न्यायिक सेवा के स्वरूप को बदलने की तैयारी करनी चाहिए, ताकि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट व जिला स्तर पर ज्यादा से ज्यादा युवा न्यायाधीशों को मौका मिले। अधीनस्थ न्यायपालिका में इस समय न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के 21,320 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से करीब 25 प्रतिशत रिक्त हैं। अखिल भारतीय सेवा के अभाव में उतनी नियुक्तियां नहीं हो पा रहीं, जितने न्यायाधीशों की जरूरत है।

देश में लंबित अदालती मामलों में 80 फीसद से अधिक जिला और अधीनस्थ अदालतों में हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर भारत में प्रति दस लाख लोगों पर लगभग 17 जज हैं। यह अमेरिका की तुलना में सात गुना कम है। उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने अपनी 120वीं रिपोर्ट में सिफारिश की है कि प्रति दस लाख जनसंख्या पर न्यायाधीशों की संख्या पचास होनी चाहिए। इसके लिए स्वीकृत पदों की संख्या बढ़ाकर तीन गुना करनी होगी। दुनिया के विकसित देशों के आंकड़ों से पता चलता है कि ऑस्ट्रेलिया में प्रति दस लाख की आबादी पर जजों की संख्या 42, कनाडा में 75, ब्रिटेन में 51, और अमेरिका में 107 है, लेकिन वहीं अगर भारत में देखा जाए तो प्रति दस लाख की आबादी पर सिर्फ 11 जज हैं।

गौरतलब है कि कई बार सरकार न्यायिक गति को दुरुस्त करने के लिए कोशिश कर चुकी है। सरकार ने पिछले साल भी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा कराने का प्रस्ताव भी रखा था, लेकिन तब नौ हाईकोर्ट ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था, जबकि आठ ने प्रस्तावित ढांचे में बदलाव की बात कही थी, और केवल दो हाईकोर्ट ने सरकार के इस प्रस्ताव का इसका समर्थन किया था। सवाल उठता है कि आखिर जब सब चाहते हैं कि देशभर में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग बने और युवा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में पहुंचें, तो आखिर क्या वजह है कि लगातार साठ साल से ज्यादा समय से प्रस्ताव के बाद भी ऐसा आयोग नहीं बन पा रहा है। इस सेवा के न लागू होने का एक कारण सीआरपीसी और सीपीसी के प्रावधानों का माना जा रहा है। इन प्रावधानों के तहत अधीनस्थ न्यायालयों में आदेश स्थानीय भाषा में भी दिया जा सकता है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा के लागू होने के बाद एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण होने लगेगा और भाषा की समस्या आएगी। इसके लिए सरकार को अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक कार्यों में स्थानीय भाषा के इस्तेमाल के तथ्य को ध्यान में रखते हुए इस सेवा के गठन के लिए प्रयास करना चाहिए। अभी जिला अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों की भर्ती, नियुक्ति, स्थानांतरण और सेवा की अन्य शर्तें भी संबद्ध राज्य सरकारें ही तैयार करती हैं। इसीलिए कुछ राज्य सरकारें और हाईकोर्ट को लगता रहा है कि अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा के कारण जजों की नियुक्तियों में उनकी भूमिका सिमट जाएगी, तो कुछ राज्य इसे संघीय ढांचे के खिलाफ मानते हैं, जिनके नाते अखिल भारतीय न्यायिक नियुक्ति सेवा का प्रस्ताव कागजों से आगे नहीं बढ़ पाया।

अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन से पहला लाभ तो यह है कि जजों की नियुक्ति में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के समान निष्पक्ष एजेंसी की भूमिका होगी। इससे न्यायिक सेवा में प्रतिभावान विधि स्नातक शामिल किए जा सकेंगे, जो सामान्यत: न्यायिक सेवा में भर्ती न होकर सरकारी और निजी क्षेत्र में अन्य ऐसे पदों की तलाश में रहते हैं, जहां उन्हें ज्यादा आर्थिक लाभ मिल सके। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा आयोग लागू करने से ऐसी उम्मीद की जा रही है कि प्रतिभावान युवा कम उम्र में ही न्यायिक सेवा में आ जाएंगे। साथ ही देश के अलग अलग राज्यों में न्यायिक सेवा में नियुक्ति और पदोन्नति में एकरूपता आ सकती है। न्यायिक सेवा आयोग बनने के बाद लगातार न्यायाधीशों की नियुक्ति में जो पक्षपात के आरोप लगते हैं, वे भी समाप्त हो जाएंगे। 

ध्यातव्य है कि अगर केंद्रीय लोक सेवा आयोग से भर्ती कराई जाएगी तो विभिन्न केंद्रीय सेवाओं के समान वेतन, भत्ते और सेवाएं न्यायिक सेवा में भी उपलब्ध होंगे। निचले स्तर पर न्याय प्रदान करने की व्यवस्था में सुधार के लिए लंबे समय से देश में अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के गठन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। यदि ऐसा हो जाता है तो वास्तव में न्यायिक सुधारों की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

[अध्येता, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]