मध्य प्रदेश [सद्गुरु शरण]। बेहया सियासत और भ्रष्ट नौकरशाही की नजर में आम आदमी की क्या औकात है, इसे समझना है तो मध्य प्रदेश के चावल घोटाले पर गौर करिए। राज्य के अधिकारी गरीबों को वर्षों तक वह चावल बटवाते रहे जो सिर्फ जानवरों के खाने लायक था। खास बात यह है कि नौकरशाही की यह करतूत वर्षों से जारी थी और कमलनाथ सरकार को इसकी जानकारी थी। 

बहरहाल, हर गुनहगार की तरह यह चावल बटवा रहे अधिकारियों से कोरोनाकाल में एक चूक हो गई और गरीबों को एक रुपये किलो की दर से चावल बांटने के लोकप्रिय सरकारी कार्यक्रम की पोल खुल गई। दरअसल, इस योजना के लिए मध्य प्रदेश सरकार के अधिकारी लंबे समय से यूपी और बिहार से बेहद घटिया क्वालिटी का चावल मंगवाते थे, जिसे सिर्फ जानवरों के खाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। 

इस चावल में करीब 20 फीसद अच्छे चावल की कनकी मिला दी जाती थी, ताकि यूपी और बिहार से मंगवाया गया चावल देखने में थोड़ा ठीक-ठाक लगने लगे। यह खेल लंबे समय से चल रहा था। कोरोनाकाल में किसी वजह से कनकी उपलब्ध नहीं हो पाई तो दुस्साहसी अधिकारियों ने शत-प्रतिशत जानवरों वाला चावल बटवा दिया। 

इससे यह घोटाला पकड़ में आ गया। अब जांच के नाम पर अधिकारी अपनी गर्दन बचाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में यह घोटाला मौजूदा राज्य सरकार के आत्मबल की कसौटी भी बन गया है, क्योंकि इस भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी प्रभावशाली माने जा रहे हैं। उधर, घोटाले में रोज नई परतें खुल रही हैं। सर्वाधिक सनसनीखेज पर्दाफाश यह हुआ कि खुफिया एजेंसियों ने निवर्तमान कांग्रेस सरकार को यह इनपुट दे दिया था कि चावल वितरण में धांधली हो रही है और गरीबों को जानवरों के खाने लायक चावल दिया जा रहा है। इसके बावजूद आश्चर्यजनक ढंग से सरकार इस घोटाले को दबाए रही।

फिलहाल तब के मुख्यमंत्री कमल नाथ की ओर से इसे लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है कि उनकी सरकार किन कारणों से गरीबों के साथ इस अमानवीय अत्याचार पर पर्दा डालती रही। दरअसल, यह पहलू इस घोटाले के मुख्य तत्व से कहीं अधिक महत्वपूर्ण दिख रहा है। शिवराज सिंह सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए, ताकि इस बड़े घोटाले की जांच सिर्फ रस्म अदायगी बनकर न रह जाए। 

कुछ साल पहले व्यापम घोटाले को लेकर खासी नकारात्मक चर्चा में रहे प्रदेश के लिए अवसर है कि चावल घोटाले की नीर-क्षीर जांच करके भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जीरो टॉलरेंस नीति का शंखनाद करे। जो गरीब वर्षों से जानवरों वाला चावल खाकर सरकारों के लिए ताली पीट रहे थे, उनकी लाचारी के प्रति हमदर्दी ही जताई जा सकती है, पर जिन नेताओें और अधिकारियों ने अपनी जेबें भरने के लिए गरीबों को जानवर मानकर भ्रष्टाचार किया, उन्हें सलाखों के पीछे भेजकर मौजूदा सरकार अपना धर्म निभा सकती है।

प्रदेश में कुछ महीनों में 27 विधानसभा सीटों के उपचुनाव भी प्रस्तावित हैं। यह तय है कि उपचुनाव में चावल घोटाले का मुद्दा पूरे जोर-शोर से उछलेगा। यद्यपि आम आदमीए खासकर इस घोटाले के भुक्तभोगी गरीबों के लिए यह बात अधिक मायने रखेगी कि घोटाले के लिए जिम्मेदार नेताओें और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में शिवराज सरकार ने कितनी दृढ़ता दिखाई।

यह तय है कि इस घोटाले की जड़ें यूपी और बिहार तक विस्तृत हैं। लिहाजा मध्य प्रदेश सरकार की ओर से उन राज्यों को भी आवश्यक इनपुट भेजा जाना चाहिए। यदि घोटाले का विस्तार सचमुच कई राज्यों तक है, तो फिर इसकी जांच सीबीआइ से ही करवानी होगी।

डबल निशाने पर महाराज : ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए राजनीति अब तक विरासत की कड़ी थी, जिसे वह अपने स्वर्गीय पिता के नक्शेकदम पर कांग्रेस में रहकर आगे बढ़ा रहे थे। यद्यपि पार्टी में आश्चर्यजनक ढंग से अपनी अनदेखी पर उनकी बेचैनी स्वाभाविक थी। अंततः उनके धैर्य ने जवाब दे दिया और वह भाजपा में शामिल हो गए।

वह भी खुश थे और उन्हें पार्टी में लाने वाले भाजपाई भी, पर उन्हें जल्दी ही अहसास हो गया कि आगे सफर में भी संघर्ष बाकी है। सच बात तो यह है कि उनका संघर्ष पहले के मुकाबले जटिल हो गया है। कांग्रेस कार्यकर्ता सड़क पर उतरकर उनका विरोध कर रहे हैं, तो भाजपाई लुक-छिपकर। महत्वपूर्ण उपचुनाव सामने हैं। कमल नाथ बार-बार कह रहे हैं कि उपचुनाव के बाद कांग्रेस सत्त्ता में लौट आएगी।

ऐसे में भाजपा की धुकधुकी थोड़ी बढ़ जाना लाजिमी है। ऊपर से कार्यकर्ताओें में महाराज को लेकर असंतोष। संघ से लेकर पार्टी के केंद्रीय नेता तक इस समस्या से निपटने में जुटे हैं। फिलहाल ज्योतिरादित्य से कह दिया गया है कि वे शिवराज सिंह के साथ चुनाव प्रचार करें, अकेले नहीं। पार्टी का निर्देश मानना उनकी मजबूरी है, क्योंकि भाजपा में महाराज वाला एंगल ज्यादा महत्व नहीं रखता।