पंकज चतुर्वेदी। हाल ही में जारी भारत में जलवायु परिवर्तन आकलन में चेतावनी दी गई है कि देश का औसत तापमान वर्ष 2100 के अंत तक 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। तापमान में तेजी से वृद्धि के मायने हैं भारत के प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र, कृषि उत्पादन और पेयजल के संसाधनों पर संकट में इजाफा होगा जिसका गहरा विपरीत प्रभाव जैव विविधता, भोजन, जल और ऊर्जा सुरक्षा समेत सार्वजनिक स्वास्थ्य पर होगा। रिपोर्ट में भारतीय शहरों में पर्यावरण के प्रति लापरवाही से बचने और देश के जंगलों व शहरी हरियाली की रक्षा करने की दिशा में सशक्त नीति और शोध की अनिवार्यता पर बल दिया है।

यह एक बेहद खतरनाक संकेत है कि हमारे देश में 1901-2018 की अवधि में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण औसत तापमान पहले ही लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और अनुमान है कि यदि हमने माकूल कदम नहीं उठाए तो 2100 के अंत तक यह वृद्धि लगभग 4.4 डिग्री सेल्सियस हो जाएगी। भारत सरकार के केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा तैयार पहली जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट के इशारे बेहद भयानक हैं।

यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में कई ऐसे इलाके हैं जो कि पेड़-पौधे व प्राणियों की जैव विविधता की स्थानीय प्रजाति ही नहीं, बल्कि वैश्विक प्रजातियों के लिए भी संवेदनशील माने गए हैं। यदि जलवायु परिवर्तन की रफ्तार तेज होती है तो इन प्रजातियों पर अस्तित्व का खतरा हो सकता है। औद्योगिक क्रांति के पहले वैश्विक औसत तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।

वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में यह संकल्प किया गया कि औद्योगिक क्रांति के पहले के मानकों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोका जाए, लेकिन आज ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के जो हालात हैं उसके मुताबिक तो दुनिया के औसत तापमान में तीन से पांच डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को नियंत्रित करना असंभव दिख रहा है। भारत की रिपोर्ट में भी आगाह किया गया है कि 2100 के अंत तक, भारत में गर्मियों में चलने वाली लू या गर्म हवाएं तीन से चार गुना अधिक हो सकती हैं। इनकी औसत अवधि भी दोगुनी होने का अनुमान है। वैसे तो लू का असर सारे देश में ही बढेगा, लेकिन घनी आबादी वाले गंगा नदी बेसिन के इलाकों में इसकी मार ज्यादा तीखी होगी।

तापमान में वृद्धि का असर भारत के मानसून पर भी कहर ढा रहा है। सनद रहे हमारी खेती और अर्थव्यवस्था का बड़ा दारोमदार अच्छे मानसून पर निर्भर करता है। भारत की जल, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा पर संकट केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि मीठे पानी की उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भारत के लिए चिंता का एक महत्वपूर्ण कारण है और जलवायु परिवर्तन के कारण बरसात का स्वरूप बदल रहा है। इसके चलते बाढ़ और सुखाड दोनों की मार और तगड़ी होगी। साथ ही सतही और भूगर्भ जल के रिचार्ज का गणित गडबड़ाएगा और यह देश की जल सुरक्षा के लिए खतरा है।

इसी तरह बढ़ते तापमान, गर्मी और बरसात के चरम से देश की खाद्य सुरक्षा पर भी दबाव रहेगा, क्योंकि इसके चलते वर्षा-आधारित खेती चौपट हो सकती है। जब गर्मी असहनीय होगी तो उससे बचने के लिए परिवेश को ठंडा करने के लिए ऊर्जा की मांग में वृद्धि होने की संभावना है, और यदि इसकी आपूर्ति के लिए अगर तापीय उर्जा पर निर्भर रहे तो जाहिर है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में और वृद्धि होगी। यही नहीं बिजली पैदा करने के लिए तापीय उर्जा बिजलीघरों के शीतलन के लिए पानी की जरूरत में भी इजाफा होगा। इस तरह के पानी की मांग की आपूर्ति के लिए बांध के जलाशयों, नदियों और नहरों के मीठे पानी की खपत होगी और इसके चलते खेती, पेय जल आदि के लिए पानी की खपत में कटौती करना होगा।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में जलवायु परिवर्तन की निरंतर निगरानी, क्षेत्रीय इलाकों में हो रहे बदलावों का बारीकी से आकलन, जलवायु परिवर्तन के नुकसान, इससे बचने के उपायों को शैक्षिक सामग्री में शामिल करने, आम लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए अधिक निवेश करने की जरूरत है। जैसे देश के समुद्री तटों पर जीपीएस के साथ ज्वार-भाटे का अवलोकन करना, स्थानीय स्तर पर समुद्र के जल स्तर में आ रहे बदलावों के आंकड़ों को एकत्र करना आदि। इससे समुद्र तट के संभावित बदलावों का अंदाजा लगाया जा सकता है और इससे तटीय शहरों में रह रही आबादी पर संभावित संकट से निबटने की तैयारी की जा सकती है।

रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि शहर और महानगरों में पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाली विकास योजनाएं -ग्रीन बिल्डिंग- बनाई जाएं तो बढती गर्मी के प्रकोप और वायु प्रदूषण को कुछ कम किया जा सकता है। रिपोर्ट कहती है कि यदि हम वायु प्रदूषण पर काबू पा सके तो इंसान और परिवेश, दोनों के पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और इससे कार्य दक्षता में सुधर होगा। रिपोर्ट कहती है कि तापमान बढ़ने से बरसात बढ़ सकती है और यदि हम चाहें तो इसे अवसर में बदल सकते हैं। जरूरत इस बात की होगी कि हम आसमान से गिरने वाली हर बूंद को सहेजने के लायक संरचनाएं तैयार कर सकें। इससे हमारी विद्युत उत्पादन क्षमता पर भी सकारात्मक असर होगा।

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