[ प्रदीप सिंह ]: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में खुद को नुकसान पहुंचाने की अद्भुत क्षमता है। मान लीजिए कि नेताओं के लिए कोई नियमावली बनानी हो और उसमें बताना हो कि सफल नेता बनने के लिए क्या-क्या न करें तो वहां कुछ और लिखने के बजाय लिखा जा सकता है कि जो राहुल गांधी करते हैं वह न करें। इससे आपके सफल नेता बनने की संभावना बढ़ जाएगी। किसी भी युद्ध में वह सामरिक हो या राजनीतिक अपने दुश्मन/ विरोधी की कमजोरियों को जानना और उन पर प्रहार करना अच्छी रणनीति मानी जाती है।

राहुल गांधी ऐसे सेनापति हैं जो अपनी ही कमजोरियों को उजागर करते हैं। आरोप लगाकर भाग जाने की कला में वह निष्णात हो गए हैं, परंतु उनके सामने लोकसभा चुनाव से पहले वैकल्पिक विमर्श खड़ा करने की सांघातिक समस्या है। जनेऊधारी ब्राह्मण, शिव भक्त, मंदिर प्रेमी से आगे बढ़कर अब राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि वह बेहतर हिंदू हैं। उनका दावा है कि वह हिंदू धर्म को ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं। इन सब बातों से एक बात साफ हो गई कि कांग्रेस पार्टी कोर्स करेक्शन करने के लिए तैयार है। उसे समझ में आ गया है कि चुनावी राजनीति में धर्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन उसकी समस्या यह है कि उसे कोई भी वैकल्पिक विमर्श हिंदू धर्म के दायरे में ही खड़ा करना होगा। पिछले डेढ़-दो दशक का उसका हिंदू धर्म विरोधी विकल्प खत्म हो गया है। उसके पास अब मुस्लिम सांप्रदायिकता का वह विकल्प भी नहीं है जिसमें हिंदू विरोध दिखे। इसी राजनीति ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उसका बेड़ा गर्क किया था।

कांग्रेस की जो चुनावी रणनीति राहुल गांधी के भाषणों से दिख रही है वह हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की है। शायद उन्होंने तय कर लिया है कि लोकसभा चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ेंगे। जाहिर है कि वह भाजपा की पिच पर आकर खेलना चाहते हैं या इसे यों भी कह सकते हैं कि भाजपा ने उन्हें इस पिच पर आने के लिए बाध्य कर दिया। यह ऐसी राजनीतिक रणनीति है जिसमें उन्हें कामयाबी मिलने की उम्मीद नहीं के बराबर है। हिंदुत्व का मुद्दा भाजपा के लिए सांस लेने जैसा स्वाभाविक मुद्दा है। यह उसकी ही नहीं पूरे संघ परिवार की पहचान है।

भाजपा के किसी नेता को हिंदुत्ववादी होने के लिए मंदिर पर्यटन, जनेऊ दिखाने या रोज शिवभक्त बताने की जरूरत नहीं है। राहुल गांधी वह बनने का प्रयास कर रहे हैं, जो वह हैैं नहीं। इसी कारण उनका हिंदुत्व ओढ़ा हुआ है और इसी कारण जब भी हिंदू धर्म से जुड़ा कोई गंभीर मुद्दा आता है उनकी रामनामी चादर गिर जाती है।

बेहतर हिंदू होने का दावा करने वाले राहुल गांधी से सबरीमाला मामले पर सवाल पूछा गया तो उनके जवाब से असलियत सामने आ गई। उनका जवाब था कि उनकी निजी राय है कि महिलाओं को मंदिर में जाने देना चाहिए, लेकिन केरल में मेरी पार्टी की राय अलग है। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर पार्टी की राय आखिर अध्यक्ष नहीं तो कौन तय करेगा?

हिंदुत्व की जमीन पर खेलने के लिए राहुल गांधी को बहुत से सवालों का जवाब देना पड़ेगा। उनके पुराने बयान उनका आसानी से पीछा नहीं छोड़ने वाले। उन्होंने अमेरिकी राजदूत से कहा था कि भारत के लिए हिंदू आतंकवाद इस्लामी आतंकवाद से बड़ा खतरा है। यह भी कि मंदिर जाने वाले वहां से निकलकर बस में लड़कियों को छेड़ते हैं। राम सेतु पर उनकी सरकार ने शपथ पत्र दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राम एक काल्पनिक चरित्र हैं। केरल में उनकी पार्टी के लोगों ने सड़क पर बछड़े को काटा। कर्नाटक में लिंगायत वोट के लिए कांग्रेस ने लिंगायतों के एक वर्ग को हिंदू धर्म से निकालने में संकोच नहीं किया। ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर राहुल गांधी से लोग जानना चाहेंगे कि बेहतर हिंदू होने के बाद अब उनका क्या खयाल है।

राहुल गांधी ने हिंदुत्व की पिच पर आकर भाजपा के लिए खेल आसान कर दिया है। भाजपा इस खेल की पुरानी माहिर खिलाड़ी है। राहुल गांधी इस मामले में अभी नौसिखिये हैं। भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर पर माहौल गरमा दिया है। सबरीमाला और तीन तलाक जैसे मुद्दे ने भाजपा का हौसला बढ़ाया है। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के जल्द सुनवाई से इन्कार करने के फैसले ने मंदिर समर्थकों की इस भावना को बलवती किया है कि हिंदुओं के मामले पर अदालतों का रुख संवेदनशील नहीं होता। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और संत समाज ने सरकार पर अध्यादेश या संसद में विधेयक लाकर राम मंदिर निर्णाण का रास्ता प्रशस्त करने का दबाव बढ़ा दिया है। ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस और उसके मुखिया का इस मुद्दे पर रुख क्या होगा?

राहुल गांधी और उनके सलाहकार एक पुराने विमर्र्श को नए के तौर पर पेश कर रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा हिंदुत्व की बात करती है, हिंदूवाद की नहीं। हिंदुत्व एक राजनीतिक अवधारणा है जो वोट के लिए धर्म का इस्तेमाल करती है। कांग्रेस हिंदू धर्म की मौलिक परंपरा को मानती है। ऐसा विमर्श पहले भी चलाने की कोशिश हुई, पर कामयाबी नहीं मिली। हालांकि तब इससे करपात्री जी महाराज जैसे बड़े संत जुड़े थे। उस वक्त आर्यसमाज की क्रांतिकारी सोच के जवाब में राम राज्य परिषद ने कहा था कि हम तो सनातन धर्म को मानते हैं। आर्य समाज सनातन धर्म की परंपरा से बाहर जा रहा है। कांग्रेस को लग रहा है कि इससे वह भाजपा को उसके ही अखाड़े में चुनौती दे सकती है।

हिंदुत्व और हिंदूवाद का अंतर एक नकली विमर्श है, जिसका असर टीवी की बहसों और कुछ बुद्धिजीवियों तक सीमित है। आम लोगों के लिए इस अंतर का कोई खास महत्व नहीं है। दूसरी बात यह है कि इस तरह का विमर्श चुनावी राजनीति के नजरिये से खड़ा करना सोनिया- राहुल के बस का नहीं है। इंदिरा गांधी तक तो ठीक था, क्योंकि वह आस्था और दृश्यता दोनों के लिहाज से इस तरह का विमर्श गढ़ने में सक्षम थीं। कुछ कमी हो तो वह राष्ट्रवाद की छौंक के साथ इसे पूरा कर लेती थी परंतु राहुल गांधी के पूरे व्यक्तित्व में हिंदू धर्म की वह समझ दिखाई नहीं देती। इसलिए तमाम कोशिश और मंदिर दर्शन के बाद भी उनकी वह अच्छे हिंदू वाली छवि बन नहीं पा रही है। बात आस्था की हो या दृश्यता की, दोनों मोर्चों पर राहुल नाकाम नजर आते हैं।

गुजरात के नाडिया में सरदार पटेल की एक सौ बयासी मीटर प्रतिमा के अनावरण के बाद प्रधानमंत्री का सरदार के चरणों में जलाभिषेक और राहुल गांधी के महाकाल में अभिषेक में अंतर किसी भी सामान्य हिंदू को समझ में आ जाएगा। छवियां आमतौर पर लोगों के मन पर ज्यादा गहरी छाप छोड़ती हैं। पिछले एक साल में अचानक जागा राहुल गांधी का हिंदू प्रेम उन्हें अभी तक उनकी बेहतर हिंदू की छवि नहीं गढ़ पाया है। वैसे भी कहते हैं कि नकल कभी असल का मुकाबला नहीं कर सकती।

[ लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैैं ]