प्रदीप सिंह : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से हर घर तिरंगा (Har Ghar Tiranga) फहराने की अपील की है। यह अभियान 13 से 15 अगस्त तक चलेगा। अब अपील प्रधानमंत्री मोदी ने की है तो जाहिर है कांग्रेस पार्टी को परिपाटी के अनुसार इसका विरोध करना था, तो वह कर भी रही है। कांग्रेस एक ऐसे दल का उदाहरण बन गई है, जिसे देखकर सीखा जा सकता है कि किसी राष्ट्रीय पार्टी को कैसा नहीं होना चाहिए। राष्ट्रवाद के विरोध को कांग्रेस ने अपनी रणनीति बना लिया है। वह हर उस संवैधानिक संस्था का विरोध करने को तैयार रहती है, जो उसकी इस रणनीति के रास्ते में आए। आजादी के अमृत महोत्सव (Amrit Mahotsav) वर्ष में कांग्रेस ने विरोध के लिए हर घर तिरंगा अभियान को चुना है।

किसी भी देश का राष्ट्रीय ध्वज उसके गौरव का प्रतीक होता है। कुछ ऐसे प्रतीक होते हैं, जो दलगत राजनीति से ऊपर होते हैं, पर कांग्रेस हर घर तिंरगा अभियान का भी विरोध करेगी, क्योंकि इसकी अपील प्रधानमंत्री मोदी ने की है। वह शायद यह भी भूल गई कि आजादी की लड़ाई राष्ट्रवाद के मुद्दे को केंद्र में रखकर लड़ी गई थी। विडंबना और कांग्रेस के पतन की पराकाष्ठा देखिए कि 'हर घर तिरंगा' का विरोध होगा, लेकिन 'हर घर से अफजल निकलेगा' का समर्थन होगा।

कांग्रेस पिछले 75 साल से पहले जनसंघ और फिर भाजपा से पूछती रही है कि आजादी के आंदोलन में उसका क्या योगदान रहा है? जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तो उसमें उसकी क्या भूमिका थी? जो कांग्रेस को समझने लगे हैं, उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की प्रतिक्रिया पर कोई आश्चर्य नहीं होगा। जयराम ने इस अभियान को पाखंड कहा है। वह 2002 में हुए राष्ट्रीय ध्वज के नियमों में बदलाव का हवाला देकर भाजपा को कोस रहे हैं। इस संशोधन के जरिये राष्ट्रीय ध्वज के केवल खादी का होने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई थी, पर वह यह नहीं बताते कि दस साल तक मनमोहन सरकार ने इसे बदला क्यों नहीं? उन्होंने आरएसएस के कार्यालयों पर 52 साल तक तिरंगा न लहराने का मुद्दा तो उठाया, पर अभी एक साल पहले तक अपने पार्टी कार्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज न लहराने वाली उन कम्युनिस्ट पार्टियों से सवाल नहीं किया, जो आज कांग्रेस की सबसे बड़ी सलाहकार हैं।

आखिर जो कांग्रेस आजादी की लड़ाई की विरासत का दावा करती है, वह हर घर तिरंगा अभियान का विरोध कैसे कर सकती है? प्रधानमंत्री मोदी ने हर घर तिरंगा फहराने की अपील 22 जुलाई को की। इसी दिन 1947 में संविधान सभा ने तिरंगे के मौजूदा स्वरूप को स्वीकार किया था। तिरंगे का मूल डिजाइन आंध्र के पिंगली वेंकैया ने पांच साल तक तीस देशों के झंडों का अध्ययन करने के बाद 1921 में तैयार किया था। उस समय इसमें ऊपर लाल रंग था और बीच में चरखा। संविधान सभा ने लाल की जगह केसरिया और बीच में चरखे की जगह चक्र रखा। कांग्रेस ने इतने वर्षों में कभी वेंकैया को याद नहीं किया। वेंकैया पर डाक टिकट जारी करने के लिए देश को मोदी का इंतजार करना पड़ा।

सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई के तमाम नायकों की तरह आजादी की लड़ाई की विरासत का दावा भी छोड़ दिया है? वैसे कांग्रेस सिर्फ महात्मा गांधी को छोड़ने का साहस नहीं जुटा पाई। हालांकि उनके आदर्शों को तो उसने आजादी के बाद ही भुला दिया था। गांधी जी यदि लंबे समय तक जीवित रहते तो शायद उन्हें वही देखना पड़ता, जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण को जनता पार्टी ने दिखाया। आखिर आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने की कांग्रेस की योजना क्या है? क्या प्रवर्तन निदेशालय की जांच का विरोध उसका अमृत महोत्सव काल का सबसे बड़ा कार्यक्रम है? कांग्रेस ने कई महीने पहले एक देशव्यापी आंदोलन का कार्यक्रम बनाया था। उसके लिए दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया था। क्या आजादी के अमृत महोत्सव के लिए भी उसने कोई कार्यक्रम बनाया है? देश की सबसे पुरानी विपक्षी पार्टी के पास इस ऐतिहासिक वर्ष को मनाने का कोई कार्यक्रम क्यों नहीं है?

कांग्रेस किस कदर अपनी विरासत की जड़ों और आम जन की भावनाओं से कट चुकी है, इसका शायद उसे आभास भी नहीं है। हालत यह है कि कम्युनिस्ट पार्टी, जो पाकिस्तान बनाने के मुद्दे पर अंग्रेजों के साथ थी और जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी कामरेडों के साथ थी, उसे भी समझ में आ रहा है कि मोदी ने जिस अभियान की शुरुआत की है, उसमें चुपचाप शामिल हो जाने में ही भलाई है। सीताराम येचुरी ने घोषणा की है कि माकपा हर घर तिरंगे का अपना कार्यक्रम चलाएगी। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने आदेश जारी किया है कि प्रदेश में हर घर पर तिरंगा फहराया जाएगा।

जयराम रमेश औपचारिक रूप से कांग्रेस और अनौपचारिक रूप से नेहरू गांधी परिवार के प्रवक्ता हैं। उन्हें साल 2002 में राष्ट्रीय ध्वज बनने के नियमों में हुए बदलाव से खादी को होने वाले नुकसान का दर्द है। सवाल है कि कांग्रेस ने जुबानी जमा खर्च के अलावा खादी के लिए किया क्या है? मोदी राज के दौरान खादी ग्रामोद्योग देश में उपभोक्ता वस्तुओं की सबसे बड़ी कंपनी बन गई है- हिंदुस्तान यूनिलीवर से भी बड़ी। इस अभियान के लिए भी सबसे ज्यादा झंडे खादी के ही खरीदे जा रहे हैं। तो कांग्रेस पहले अपनी प्राथमिकता तय कर ले। उसकी प्राथमिकता तिरंगा है या अफजल गुरु और टुकड़े-टुकड़े गैंग।

सवाल है कि बार-बार ऐसा क्यों होता है कि कांग्रेस राष्ट्रवाद और उसके प्रतीकों पर विरोधी खेमे में खड़ी नजर आती है? उसके पास मोदी सरकार के हर काम के विरोध का भोथरा हथियार तो है, पर जवाब में कोई वैकल्पिक विचार नहीं है। इसलिए आम लोगों को वह एक शिकायती और सदैव रोने वाले बच्चे जैसी नजर आती है। उसकी मुश्किल यह है कि वह बच्चा नहीं है और कोई बालिग बच्चे जैसा व्यवहार करे तो उसके बारे में लोग क्या सोचते कहते हैं, बताने की जरूरत नहीं है। कांग्रेस जिस हालत में पहुंच गई है, उसमें उसका सर्जरी से भी इलाज संभव नहीं रह गया है। ऐसी ही अवस्था को लाइलाज कहते हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)