सुरेंद्र किशोर: राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेता एक अर्से से अदाणी मामले को लेकर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में कई अन्य विपक्षी दल भी शामिल हो गए हैं। वे इस मामले को घोटाले की शक्ल देकर संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की मांग कर रहे हैं। यह कुछ वैसी ही मुहिम है, जैसी एक वक्त बोफोर्स मामले को लेकर उस समय के विपक्ष ने चलाई थी, लेकिन राजीव गांधी के खिलाफ ‘बोफोर्स अभियान’ इसलिए सफल रहा था, क्योंकि उस सौदे के लिए दी गई दलाली की रकम बैंक खाते में पाई गई थी।

अदाणी मामले में राहुल गांधी का अभियान इसलिए सफल नहीं हो पा रहा, क्योंकि उनके पास रिश्वत या वित्तीय गड़बड़ी का कोई साक्ष्य नहीं है। राहुल गांधी ने लोकसभा में गौतम अदाणी को लेकर प्रधानमंत्री पर सीधे आरोप लगाए। आखिर वह इन आरोपों से संबंधित दस्तावेजों की अभिप्रमाणित प्रति संसद में पेश क्यों नहीं करते? ध्यान रहे वीपी सिंह ने बोफोर्स मामले में अपने आरोपों से संबंधित दस्तावेज 15 नवंबर, 1988 को लोकसभा में पेश किए थे। उसमें वह बैंक खाता नंबर भी था जिसमें बोफोर्स कंपनी ने दलाली की राशि का भुगतान किया था। वह खाता इतालवी दलाल ओत्तावियो क्वात्रोच्चि का था। स्विस बैंक की लंदन शाखा के उस खाते का नंबर 99921 टीयू था। बोफोर्स मामले से संबंधित जो आरोपपत्र 1999 में अदालत में दाखिल किया गया, उसमें भी इसी बैंक खाते का जिक्र था।

जब भी किसी घोटाले की चर्चा होती है तो लोग सवाल उठाते हैं कि बोफोर्स मामले का क्या हुआ? फिर खुद ही जवाब देते हैं कि कुछ नहीं हुआ। यह झूठ वर्षों से जारी है। कांग्रेस में कुछ सलाहकार शीर्ष नेतृत्व को अब यही सलाह दे रहे हैं कि जिस तरह वीपी सिंह ने बोफोर्स का मामला उठाकर राजीव गांधी को सत्ता से बाहर किया था, उसी तरह राहुल गांधी भी अगले आम चुनाव में मोदी को मात देने के लिए अदाणी के मुद्दे को उछालें। राहुल गांधी ने ऐसी ही कोशिश पिछले आम चुनाव में राफेल मुद्दा उठाकर की थी और उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। राफेल मामले में भी राहुल कोई सुबूत नहीं दे सके थे। शीर्ष अदालत के फैसले से भी उनके आरोपों की हवा निकल गई। ऐसे में लगता है कि राहुल गांधी और कांग्रेस के कर्ताधर्ता पिछली भूल से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं।

अदाणी मामले में इस समय जेपीसी से जांच का दबाव बनाया जा रहा है तो ऐसी मांग करने वाले जान लें कि बी. शंकरानंद की अध्यक्षता में बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए भी जेपीसी बनी थी और उसने उस कागज पर विचार ही नहीं किया, जिसे वीपी सिंह ने संसद में पेश किया था। तब जेपीसी को बोफोर्स खरीद में कोई गड़बड़ी कैसे मिलती? जेपीसी में सत्ताधारी दल का ही बहुमत होता है। बोफोर्स मामले में सीबीआइ ने 1999 में 25 पन्नों का जो आरोपपत्र दाखिल किया, उसमें राजीव गांधी का नाम अभियुक्त के रूप में 20 बार शामिल किया गया था। चूंकि तब तक उनका निधन हो चुका था, इसलिए उनका नाम आरोपपत्र के दूसरे कालम में लिखा गया था।

जिस समय बोफोर्स घोटाला सामने आया, तब घोषित सरकारी नीति यही थी कि किसी रक्षा सौदे में दलाली नहीं दी जाती, लेकिन बोफोर्स खरीद में इस नियम का उल्लंघन किया गया। राजीव गांधी क्वात्रोच्चि का लगातार बचाव करते रहे। इस मुद्दे पर पीएम के बदलते बयानों से जनता का संदेह गहराता गया। परिणामस्वरूप 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा। चूंकि सीबीआइ के आरोपपत्र में दलाली की रकम के हस्तांतरण से जुड़े साक्ष्य थे तो वह मामला मजबूत होता गया।

फिर कांग्रेसी सरकारों के दौरान जानबूझकर इस मामले को कमजोर किया गया। अदालत में उचित तरह से मामले को पेश नहीं किया गया। दिल्ली हाई कोर्ट ने फरवरी 2004 में बोफोर्स मामला खारिज कर दिया। यह ध्यान रहे कि मनमोहन सिंह की सरकार में ही आयकर न्यायाधिकरण ने कहा था कि ‘क्वात्रोच्चि और विन चड्ढा को बोफोर्स दलाली के 41 करोड़ रुपये मिले थे। ऐसे में उन पर टैक्स देनदारी बनती है।’ सीबीआइ को पहले ही सुबूत मिल गए थे कि क्वात्रोच्चि ने दलाली के पैसे स्विस बैंक की लंदन शाखा में जमा करवाए थे।

विपक्षी दलों द्वारा केंद्र सरकार से क्वात्रोच्चि का पासपोर्ट जब्त करने की लिखित मांग के बावजूद कांग्रेस सरकार ने उसे भारत से भाग जाने दिया। इतना ही नहीं, लंदन स्थित स्विस बैंक के जब्त खाते को खुलवा कर क्वात्रोच्चि को पैसे निकाल लेने की सुविधा प्रदान की गई। जब्त खाता खुलवाने के लिए मनमोहन सरकार ने एक अधिकारी लंदन भेजा था। खाता खुलने के बाद क्वात्रोच्चि उससे पैसे निकालकर फरार हो गया। वैसे बोफोर्स मामले में एक गैर सरकारी अपील अब भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। आयकर विभाग ने 2019 में बोफोर्स दलाल विन चड्ढा के मुंबई स्थित फ्लैट को 12 करोड़ दो लाख रुपये में नीलाम कर दिया था।

सीबीआइ के अनुसार दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध वह मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करना चाहती थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने ऐसा करने से रोक दिया। ऐसे में जो लोग यह सवाल उठाते हैं कि आखिर बोफोर्स मामले में क्या मिला, वे तथ्यों को अपनी सुविधानुसार अनदेखा कर देते हैं। जिस मामले में दलाली पर आयकर वसूलने के लिए दलाल का फ्लैट तक जब्त कर लिया जाता है, उस मामले में अपील न हो तो आप और क्या कहेंगे?

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)