नई दिल्ली (संजय गुप्त)।  अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर कांग्रेस, जनता दल-यू और कुछ अन्य दलों ने योग संबंधी कार्यक्रमों से दूरी बनाकर राजनीतिक संकीर्णता का तो परिचय दिया ही, इस वैश्विक आयोजन की गरिमा गिराने का भी काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाने का जो फैसला किया उससे योग के साथ भारत की भी दुनियाभर में धाक जमी। भारतीय प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की बात कही और महज 90 दिनों के अंदर उस पर सहमति बन गई।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा, जिस पर 193 में से 175 देशों ने अपनी मुहर लगा दी। यह एक रिकॉर्ड था। इसके पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा में किसी प्रस्ताव को इतने कम समय में इतने समर्थन वोट नहीं मिले। इसका कारण शायद यह रहा कि एक तो दुनिया पहले से ही योग की महत्ता से काफी कुछ परिचित थी और दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री ने यूएन महासभा में योग दिवस मनाने की बात प्रभावशाली ढंग से रखी। उन्होंने योग के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा था, यह केवल व्यायाम भर न होकर अपने आपसे और विश्व एवं प्रकृति से तालमेल बिठाने का माध्यम भी है।

उन्होंने यह भी रेखांकित किया था कि योग जीवन शैली में परिवर्तन लाकर और लोगों में जागरूकता पैदा करके जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से लड़ने में भी सहायक हो सकता है। मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाने की पहल संभवत: इसलिए भी की, क्योंकि वह सांस्कृतिक कूटनीति के प्रभाव से परिचित थे। क्या यह विचित्र नहीं कि वह दुनियाभर में तो योग के रूप में भारत के सॉफ्ट पॅावर को प्रदर्शित करने में सफल रहे, लेकिन देश में उतने कामयाब नहीं रहे। इसका मूल कारण सस्ती राजनीति और संकीर्ण रवैया है।

योग प्राचीन भारत की दुनिया को एक ऐसी देन है जो सारी मानवता के लिए एक वरदान है। चूंकि इसे हिंदू संतों ने विकसित एवं प्रचारित-प्रसारित किया और उसकी महत्ता ऋग्वेद में भी है इसलिए यह कहने में हर्ज नहीं कि वह हिंदू धर्म-संस्कृति का एक अंग है। दुनियाभर में किए गए तमाम अनुसंधान यह साबित करते हैं कि यौगिक क्रियाओं से मानव शरीर को अनेक लाभ मिलते हैं और यह तमाम बीमारियों से बचाव के साथ-साथ उनके निदान में भी सहायक है। यह शारीरिक और साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उपयोगी है। यही कारण है कि यह दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहा है। आज जब कोई भारतीय अमेरिका जैसे देश में योग केंद्रों को देखता है तो उसे गर्व महसूस होता है।

वर्तमान में जितने योग केंद्र अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में हैं उतने तो भारत में भी नहीं होंगे। योग को न केवल अपनाया जा रहा है, बल्कि उसके साथ नित-नए प्रयोग हो रहे हैं। जब योग दुनिया में भारत को जानने-समझने का एक सशक्त माध्यम बन गया है तब यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ राजनीतिक दल योग दिवस को मोदी सरकार के कार्यक्रम के तौर पर देख रहे और उससे दूरी बना रहे। जब पहली बार योग दिवस का आयोजन हुआ तो कुछ मुस्लिम संगठनों और धर्मगुरुओं ने इस तरह के बयान दिए थे कि यह उनके लिए निषेध है। उनकी ओर से यह भी कहा गया कि वे सूर्य नमस्कार नहीं कर सकते अथवा ओम का उच्चारण नहीं कर सकते। ऐसे बयानों को कोई महत्व नहीं मिला और आज स्थिति यह है कि दुनिया के कई इस्लामी देशों और यहां तक कि सऊदी अरब और पाकिस्तान में भी तमाम मुस्लिम योग कर रहे हैं। जाहिर है कि ऐसा इसीलिए है कि वे उसे उपयोगी पा रहे हैं।

चूंकि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू हुआ इसलिए इस दिवस पर थोड़ी-बहुत सस्ती राजनीति होना स्वाभाविक है, लेकिन यह समझ से परे है कि कांग्रेस प्रारंभ से ही योग दिवस के बहिष्कार वाला रवैया क्यों प्रदर्शित कर रही है? इस बार भी कांग्रेस की ओर से योग दिवस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई। यहां तक कि उसके नेताओं की ओर से एक ट्वीट तक नहीं किया गया। कांग्रेस शासित राज्य पंजाब में न तो कांग्रेसी नेताओं ने योग संबंधी आयोजनों में शिरकत की और न किसी जिलाधिकारी ने। ऐसा ही कुछ कांग्रेस शासित एक अन्य राज्य मिजोरम में भी देखने को मिला। यह समझ से परे है कि जब कांग्रेस अध्यक्ष खुद को हिंदूवादी दिखाने के लिए मंदिर-मंदिर जा रहे हैं और कैलास मानसरोवर यात्र की तैयारी भी कर रहे हैं तब उनके दल के लोग सनातन धर्म की एक बड़ी देन-योग के प्रति अरुचि कैसे दिखा सकते हैं? निश्चित रूप से यह अपेक्षित नहीं कि कांग्रेस अथवा योग से दूरी बनाने वाले अन्य दलों के नेता केंद्र सरकार की ओर आयोजित किसी कार्यक्रम में हिस्सा लें, लेकिन आखिर वे विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले योग दिवस से दूरी कैसे बना सकते हैं? आखिर ये दल अपने स्तर पर भी तो योग संबंधी कार्यक्रम आयोजित कर सकते थे, क्योंकि योग तो प्राचीन भारत की थाती है। नि:संदेह कांग्रेस के रवैये से ज्यादा चकित किया जनता दल-यू ने, जो बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रहा है। भले ही जदयू के प्रवक्ता ने यह कहा हो कि इसमें राजनीति नहीं देखी जानी चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को केरल के वामपंथी मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से सबक सीखना चाहिए, जिन्होंने योग दिवस का आयोजन किया।

जो योग शरीर को निरोग बनाने के साथ मानसिक शांति एवं संयम प्रदान करता है उसके प्रति नकारात्मक रवैये और उपेक्षा भाव का प्रदर्शन दुखद ही है। राजनीतिक दलों के पास विभिन्न मसलों पर राजनीति करने के लिए अवसरों की कमी नहीं। कम से कम वे योग को तो राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से परे रख ही सकते हैं। दुनिया यह जानकर न केवल हैरान होगी, बल्कि शायद हंसेगी भी कि भारत में कुछ राजनीतिक दल इसलिए योग दिवस के आयोजनों में हिस्सा नहीं लेते, क्योंकि वह नरेंद्र मोदी की पहल पर मनाया जाता है। योग दिवस से दूरी बनाने वाले हमारे राजनीतिक दल इस बुनियादी बात से अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि आधुनिक जीवनशैली किस तरह बीमारियों को बढ़ा रही है और योग किस प्रकार उनसे बचने में सहायक है?

दुनियाभर में मनाया जाने वाला योग दिवस हर भारतीय के लिए यह एक गर्व का क्षण होता है। अब तो यह किसी उत्सव से कम नहीं है। जैसे आम और खास लोग सामाजिक, राजनीतिक दायरे से निकल कर होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस आदि से जुड़ते हैं वैसे ही उन्हें योग से भी जुड़ना चाहिए-इसलिए और भी, क्योंकि यह मानवता को जोड़ने, भाईचारा बढ़ाने और दुनिया को सेहतमंद बनाने का काम करता है। आखिर ईद मिलन, होली मिलन की तरह से योग के अवसर पर लोगों को जोड़ने और सेहत के प्रति जागरूक करने में क्या परेशानी है? योग को एक राष्ट्रीय-सामाजिक अभियान का रूप दिया जाना समय की मांग है।

(लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं)