[ हिमंता बिस्वा सरमा ]: एक पुरानी कहावत है कि किसी झूठ को सौ बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने इस कहावत को अपनी राजनीति का सूत्र वाक्य बना लिया है। कांग्रेस खुद को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी का चैंपियन घोषित करने का प्रयास कर रही है, जबकि अपनी सरकार के दौरान उसकी नीति बिल्कुल उलट थी। संप्रग सरकार ने न सिर्फ एमएसपी की व्यवस्था कमजोर की, बल्कि इससे जुड़े ढांचे को भी कमजोर करने का काम किया। अब विपक्ष में बैठी वही कांग्रेस झूठ का सहारा लेकर किसान हितैषी होने का नाटक कर रही है। राहुल गांधी समेत दूसरे कांग्रेस नेता अपनी खोई जमीन पाने के लिए कृषि कानूनों पर दुष्प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस नेता अपनी सरकार के दौरान एमएसपी में अधिक वृद्धि के दावे में आंकड़ों का एकपक्षीय इस्तेमाल कर रहे हैं। 2004 से 2014 के बीच सभी अनाजों पर एमएसपी में सामान्य वृद्धि 9 प्रतिशत थी, लेकिन यह वृद्धि सामान्य खाद्य मुद्रास्फीति दर 8 प्रतिशत की पृष्ठभूमि में थी। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 2014 से 2020 के बीच सभी फसलों पर एमएसपी में 8 प्रतिशत वृद्धि की है, जबकि इस दौरान सामान्य खाद्य मुद्रास्फीति दर 4 प्रतिशत रही। साफ है कि कांग्रेस सरकार में प्रभावी वृद्धि सिर्फ एक प्रतिशत थी, वहीं मोदी सरकार ने 4 प्रतिशत की वृद्धि की, जो चार गुना अधिक है।

मोदी सरकार द्वारा एमएसपी पर अनाज की अधिक मात्रा में खरीद

मोदी सरकार द्वारा एमएसपी में खाद्य मुद्रास्फीति दर से 4 प्रतिशत अधिक की सालाना वृद्धि के अतिरिक्त दो खास पहल की गई हैं। पहली, केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी पर अनाज की अधिक मात्रा में खरीद। यदि सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर पर्याप्त अनाज नहीं खरीदें तो एमएसपी के रूप में उच्च मूल्य की घोषणा बेमानी है। 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार ने एमएसपी पर 46.95 करोड़ टन गेहूं और धान की खरीद के लिए 8 लाख करोड़ रुपये का भुगतान किया, जबकि संप्रग सरकार ने 2009 से 2014 के बीच 31.63 करोड़ टन धान और गेहूं की खरीद के लिए 3.76 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। दूसरी पहल है, ऐसे अंतरराष्ट्रीय कोऑपरेटिव फ्रेमवर्क को मजबूत करना, जिससे विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के नियमों का हवाला देते हुए अनाज की खरीद और एमएसपी में वृद्धि को चुनौती न दी जाए।

सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए उठा रही कारगर कदम

राजग सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए अन्य मोर्चों पर भी कारगर कदम उठा रही है। फसलों का लाभकारी मूल्य दिलाना, बाजार की बेहतर सुविधा, फसल बीमा, बेहतर बीज और उर्वरक की पर्याप्त उपलब्धता और बिचौलियों से मुक्ति की पहल इसी दिशा में सचेत प्रयास हैं। तीनों कृषि कानूनों का उद्देश्य भी किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के सपनों को पूरा करना ही है।

कांग्रेस ने एमएसपी पर सबसे बड़ा हमला 2013 में डब्ल्यूटीओ के बाली शिखर सम्मेलन में किया

कांग्रेस द्वारा एमएसपी पर सबसे बड़ा हमला दिसंबर, 2013 में डब्ल्यूटीओ के बाली शिखर सम्मेलन में किया गया। यदि 2014 में मोदी चुनाव नहीं जीतते तो बाली में कांग्रेस द्वारा किया गया आत्मसमर्पण 2018 तक एमएसपी को बेमानी बना चुका होता। 2013 में मनमोहन सरकार डब्ल्यूटीओ में ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमेंट (टीएफए) को स्वीकार करने के लिए विकसित देशों के भारी दबाव में थी। इसका मकसद सदस्य देशों के बीच कस्टम प्रक्रिया को सरल बनाना था।

मोदी सरकार ने टीएफए का हर मुमकिन विरोध किया

मोदी सरकार बनने पर भारत ने टीएफए का हर मुमकिन विरोध किया और यह सुनिश्चित किया कि अमीर देश डब्ल्यूटीओ विवाद निवारण प्रणाली की आड़ लेकर भारत के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और एमएसपी में सालाना वृद्धि को चुनौती न देने पाएं। यह आवश्यक था, क्योंकि डब्ल्यूटीओ की ओर से एमएसपी के तहत अनाज की खरीद को देश के कुल अनाज उत्पादन के 10 प्रतिशत तक सीमित रखने के लिए कहा जा रहा था। खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनाज की सार्वजनिक खरीद कुल उत्पादन के 10 प्रतिशत से अधिक थी। विकसित देशों की इच्छा के अनुरूप टीएफए पर हस्ताक्षर करने की स्थिति में भारत के लिए ऐसा करना मुश्किल होता। 2013 में तत्कालीन केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा इस आश्वासन के साथ टीएफए पर हस्ताक्षर करने को सहमत हो गए थे कि भारत चार साल के भीतर 10 प्रतिशत की सीमा का पालन करना शुरू करेगा या इसके स्थायी समाधान की दिशा में आगे बढ़ेगा।

पश्चिमी देशों को खुश करने के लिए मनमोहन सरकार ने किसानों के हितों को गिरवी रख दिया था

यदि भारत 2017 तक इसका समाधान तलाश करने की दिशा में नहीं बढ़ता तो विकसित देश अनाज खरीद की प्रक्रिया को डब्ल्यूटीओ में चुनौती दे सकते थे। तब सरकारी खरीद पर प्रतिबंध की भी नौबत आ जाती। विडंबना देखिए कि झूठ परोसने में माहिर कांग्रेस और मीडिया के एक वर्ग ने भारतीय किसानों के हितों को बाली में गिरवी रखने के इस अधम को महत्वपूर्ण जीत के तौर पर पेश किया, जबकि हकीकत यह थी कि पश्चिमी देशों को खुश करने के लिए मनमोहन सरकार ने किसानों के हितों को गिरवी रख दिया था।

मोदी सरकार ने साहसिक कदम उठाकर टीएफए पर हस्ताक्षर करने से किया इन्कार

यह भारतीय किसानों का सौभाग्य था कि छह महीने बाद नरेंद्र मोदी सत्ता में आए और सत्ता संभालते ही कांग्रेस के इस अधम को पहचान लिया। मोदी सरकार ने महसूस किया कि यह समझौता भारतीय कृषि के लिए विनाशकारी होगा। उसने किसानों के हित में पूर्ववर्ती सरकार द्वारा किए गए अंतरराष्ट्रीय समझौते को अहमियत न देते हुए टीएफए पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करने का साहसिक कदम उठाया। इसके लिए कुछ विकसित देशों ने मोदी सरकार की आलोचना भी की, पर उसने किसानों के हितों को सर्वोपरि रखा। नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका यात्रा के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को इस पर सहमत कर लिया कि भारत और अन्य विकासशील देश अपने किसानों को जब तक चाहें, सब्सिडी और समर्थन दे सकते हैं।

कांग्रेस का झूठा आरोप: मोदी सरकार एमएसपी समाप्त करने की साजिश कर रही

इस मुद्दे पर बहस का स्वागत है, पर कांग्रेस के साथियों द्वारा यह कहना कि मोदी सरकार एमएसपी समाप्त करने की साजिश कर रही है, चौंकाने वाली बात है। झूठे आरोप लगाने से बहस समृद्ध नहीं होती। विपक्ष की विश्वसनीयता समाप्त होने का मुख्य कारण है उसके ट्रैक रिकॉर्ड का हकीकत से मेल नहीं खाना। एमएसपी की तरह जीएसटी के मामले में भी कांग्रेस जब सत्ता में थी तो कुछ और कह रही थी और अब जब विपक्ष में है तो कुछ और कह रही है। विपक्ष के साथियों से मेरा नम्र निवेदन है कि जब वे अपने अतीत और वर्तमान कार्यों की संजीदगी से तुलना करेंगे तभी देश की बेहतर सेवा कर पाएंगे।

( लेखक असम सरकार में मंत्री हैं )